चल उड़ जा रे पंछी – उमा वर्मा : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi: जानकी का मन ठीक नहीं है आज ।घर का सौदा पक्का हो गया है ।सबने मिल बैठ कर यह फैसला कर लिया है ।तय हुआ कि यह घर बेच कर मुम्बई में ही दूसरा घर ले लिया जाय ।बाल बच्चे तो वहीँ नौकरी पर हैं तो अब कौन रहने आएगा यहाँ ।

बेटे ने कहा कि नया मकान लेने के बाद बाकी बचे पैसों को बैंक में रख दिया जायेगा आपके नाम से ।तो आपको मंथली इनकम होता रहेगा ।जानकी अपने पति सोमेश के तस्वीर की ओर देख रही है ” क्या कहते हैं?” लगा जैसे पति कह रहे हैं ” ठीक ही तो फैसला किया है बच्चों ने, आखिर हमारे बाद उनही का तो है सब” तुमने तो सब दिन समर्पण ही किया है

जानकी तो आज एक बार फिर सही ” जानकी जबसे ब्याह कर ससुराल आई तो समर्पित ही रही घर परिवार में, अपनी इच्छाओं को ताक पर रख दिया और परिवार के लिए जीती रही ।सोमेश सरकारी नौकरी में थे तो सुख सुविधा मिलती रही थी ।पैसे थोड़ी कम जरूर थे लेकिन संयमित जानकी सबको लेकर चली ।

कपड़े कम रहते लेकिन चमकते रहते ।जानकी ने अपनी फरमाइश का बोझ पति के माथे नहीं डाली ।सुखी और संतुष्ट थी वह ।फिर आये दिन परिवार का आन जाना लगा रहता ।मुसकान बिखेरतीं जानकी सबके स्वागत में लगी रहती ।समय भागता रहा ।दो बेटे और एक बेटी की माँ बन गई थी वह।बच्चों की शिक्षा, नौकरी और शादी सब कुछ समय पर हो गया ।

एक मिनट फुर्सत कहाँ मिलती थी उसे।पाँव में जैसे चक्कर लगा था ।भागती रही सबकी जरूरत को पूरा करने के लिए ।पति के रिटायर में कुछ ही समय रह गया था ।सोमेश को चिंता होने लगी ” अपना एक छत तो होना चाहिये जानकी ,क्वाटर छोड़ना पड़ा तो हम कहाँ जायेंगे?” जानकी को घर का शौक और सपना कभी नहीं आया ।

वह सोचती कम्पनी एक बेटे को तो नौकरी देगी ही।तो क्वाटर तो रह ही जायेगा न,और जीवन का क्या भरोसा हम वहां से ही अंतिम विदा ले लें ।लेकिन सोमेश नहीं माने।देखते देखते जानकी नाती पोतों वाली हो गई थी ।बच्चों के साथ जानकी का समय कब भाग जाता पता नहीं चला ।

रिटायर होने के पहले ही सोमेश ने दौड़ धूप कर जमीन का एक टुकड़ा खरीद लिया ” अब देखना जानकी, हमारा सपनो का महल तैयार हो जायेगा ” ।बस तुम्हारा सहयोग चाहिए ।हमदोनों अपने घर में खुश रहेंगे ।बच्चे आते जाते रहेंगे पर्व त्योहार पर ।कभी हमलोग उनके पास जायेंगे ।” जानकी को विश्वास नहीं था कि इतने कम पैसों में भला घर कैसे बन सकता है ।

सोमेश ने तो भविष्य निधि से काफी पैसे निकाल लिए थे बच्चों की शिक्षा और शादी के लिए ।फिर घर में बच्चे का आगमन हुआ तो छठी, मुंडन सब कुछ तो निबटाया था ।वह एक दिन घूमते हुए एक ज्योतिषी के दुकान पर चली गयी थी अपना हाथ दिखाने ।हालांकि उसे इन बातों पर विश्वास नहीं था ।

उस ज्योतिषी ने ने तो हाथ देखते ही कहा था कि ” आपको तो चार महीने के अंदर ही घर बनना है ” उसका मजाक उड़ाती जानकी पति से बोली थी ” ये लोग भी ना दूकान खोलकर, झूठ बोल कर सबको लूटते रहते हैं ” भला इतने कम पैसों में घर कैसे बन सकता है ।” हो सकता है जानकी, उसकी बात सच हो जाय ” सोमेश बोले थे।फिर जोड़ तोड़ कर खरीदी हुई जमीन पर नींव रखी गई ।

जानकी ने ठेकेदार को बता दिया था कि मेरे पास सीमित पैसे है ।अधिक की लालसा न रखें ।ठेकेदार सोमेश के जान पहचान के थे।दिलासा दिया ” आप निश्चित रहें भाभी ,मै भी स्थिति समझता हूँ ” ।और फिर सोमेश जुट गए जी जान से ।कहाँ से गिट्टी लाना है, सरिया,बालू,सीमेंट ईट का जुगाड़ करते, दौड़ लगाते रहते ।थक कर चूर हो जाते।पर उनका अदम्य उत्साह देखते बनता था ।दोपहर को जानकी टिफ़िन भरके खाना ले आती ।

फिर दोनों छांव में बैठ कर खाते तो सारी परेशानी भूल जाते ।देखते देखते घर का ढांचा दो महीने के अंदर खड़ा हो गया ।पैसे कम पड़ने लगे थे ।गृहप्रवेश भी तो करना ही पड़ेगा ।नाते रिश्ते आयेंगे तो उनकी विदाई भी तो करनी है ।अपने जीवन का आखिरी उत्सव होगा ।वह उसमें कटौती नहीं होने देगी ।

घर बन गया था ।आगे पीछे दरवाजा लग गया ।पलस्तर बाद में देखा जायेगा ।छत तो हो गया न,बस ।सब कुछ निबटाते हुए अपने घर का सपना भी पूरा हो गया ।” इक बंगला बने प्यारा, सोने का बंगला हो, चांदी का जंगला हो, रहे उसमें कुनबा सारा —-” सोमेश अकसर गुनगुनाते रहते।।लेकिन नौकरी के सिलसिले में अपनी गृहस्थी समेट दोनों बेटे अपने कुनबे के साथ मुम्बई शिफ्ट हो गये ।अब घर में सोमेश और जानकी थे।कितने चाव से घर बना था।

पार्टी हुई ।रिश्ते दारो की लेनदेन हुई ।उनको अब अकेलापन काटने को दौड़ता ।टोले पड़ोस से अच्छी बनती थी तो समय कट जाता ।आठ साल बीत गए ।सोमेश एक रात सोये तो फिर उठे ही नहीं ।जानकी का रो रो कर बुरा हाल था ।दोनों बेटे, बेटी सभी समय पर आये ।सब कुछ निबटा कर वापस लौट गये ।

जानकी को भी कभी अपने साथ ले जाते ।कभी वह अपने घर आ जाती ।कितने अरमान से पति का बनाया हुआ है घर ।कहीं भी रह लेती है वह।बच्चे भी तो अपने ही हैं ।उनही के साथ जीवन बिताना है ।सबसे मोह ममता है ।लेकिन इस घर से भी भावना जुड़ी है ।इसे कैसे भुला दे।जानकी सोच रही है सब मोह माया है ।

बच्चे अपनी दुनिया में मगन हैं ।जब पति ही नहीं रहे तो घर का क्या मोह ? और उसे भी कितना दिन जीना है ।उम्र भी तो हो गई है ।शरीर भी साथ नहीं देता ।आखिर बच्चे ही तो देखभाल करेंगे ।चाहे जहाँ रखे ,खुश रहें ।कल मकान का ग्राहक आने वाला है ।सारे पेपर तैयार रखने होंगे ।अपने मन को मजबूत करना होगा ।यह सही है कि इसी घर में बच्चो की किलकारियां गूंजती रही उनके बच्चे, छठी, मुंडन सब कुछ देखा ।लेकिन अब यहसब क्या सोचना

मकान कभी अधूरा बना था।धीरे-धीरे पलस्तर, दरवाजा, खिड़की सब लग गया था ।बाहर गमले में फूल सज गया था ।जानकी हर्ष से दोहरी हो जाती ।आज उसी को बेच देना है ।वह उठी और पेपर समेटने लगी ।बाहर बेटे ने आवाज़ दी है ।” अम्मा, वे लोग आ गए हैं ” ।उनसे एक सप्ताह का समय लिया गया ।

मुम्बई में नया मकान देख लिया है ।बच्चे ही देख कर आये हैं ।सुना है कि तीन बेडरूम है ।घर अच्छा है ।सारी सुविधा है ।कल से सामान की पैकिंग होगी ।क्या क्या समेटे वह ? जब जीवन का ही ठिकाना नहीं है उसे कोई कहाँ समेट पाया ।सबकुछ छूट जाता है ।जीवन भी छूटने वाला है ।वह गुनगुनाते हुए कह रही है ” चल उड़ जा रे पंछी कि अब ये देश हुआ बेगाना

“—- उमा वर्मा, राँची, झारखंड, ।स्वरचित ।मौलिक ।अप्रसारित ।

 

 

 

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