चाहत को मिले पंख – लतिका श्रीवास्तव

अरे सुधांशु ए सुधांशु….पापा की अनवरत आती हुई आवाजों ने सुधांशु को बेचैन कर दिया वो लपक कर कमरे से बाहर निकल आया .. हां पापा क्या हुआ !!!ऐसे क्यों आवाज़ दे रहे हैं आप..!बताइए क्या हो गया बहुत परेशान दिख रहे हैं….!!बेटा बैंक से मेरे रुपए कोई निकालता जा रहा है .. ये देखो बार बार मैसेज आ रहा है …अभी तक बीस हजार रुपए निकल गए ये देखो फिर से मैसेज आया फिर बीस हजार गए…...!!कुछ करो नहीं तो आज मेरा पूरा बैंक बैलेंस खत्म हो जाएगा….बदहवास से गोपाल जी  अपना मोबाइल सुधांशु को देते हुए हांफने लग गए थे…!

ओह पापा कैसे क्या हुआ …… आप थोड़ा तसल्ली से बताइए तो मुझे आइए …..बैठिए पहले आप यहां आराम से घबराइए नहीं….सुधांशु  पापा  की असीम घबराहट देख कर चिंतित हो उठा था।उसने उनका हाथ पकड़ कर आराम से अपने पास बिठाया….अरे बेटा मुझे एक कॉल आई कि हम आपके बैंक से बोल रहे हैं और आपके खाता नंबर का वेरिफिकेशन होना है कुछ जानकारी चाहिए आप बता दीजिए ..मैने सोचा बैंक की महत्वपूर्ण जानकारी है मेरे पेंशन से संबंधित होगी तो सभी जानकारियां जो वो पूछ रहे थे मैं बताता गया फिर एक ओटीपी आई वो भी मैने उनको बता दिया…बस उसीके थोड़ी देर बाद पांच हजार रुपए निकलने का मैसेज आ गया तभी मुझे समझ में आ गया कि मुझसे भयंकर भूल हो गई …इसीलिए तुमको आवाज दी ….क्या करूं बेटा ….बुढ़ापा आ गया है तुमने भी कई बार समझाया है न्यूज में भी अक्सर बताया जाता है फिर भी मुझसे इतनी बड़ी लापरवाही हो गई …पता नहीं बैंक  के नाम से भरोसा हो गया और मेरे दिमाग से सारी सावधानियां हट ही गईं…..गोपाल जी बहुत दुखी चिंतित और शर्मिंदा थे बेटे के सामने।

सुधांशु ने तुरंत उनकी सिम लॉक करवाई …..बैंक को फोन किया ……पुलिस थाने को सूचना दी….फिर भी गोपाल जी के करीब पचास हजार रुपए निकल ही गए।

गोपाल जी शाम को ये पूरी घटना अपने मित्रों को बहुत अफसोस के साथ बता रहे थे….”दोस्तों कितना खराब समय आ गया है किसी पर भरोसा करने लायक ही नहीं रह गया ….मुझ बूढ़े आदमी की मेहनत की पेंशन की कमाई हड़प गया कोई अंजान आदमी वो भी मेरी ही बेवकूफी की वजह से ….!!धोखाधड़ी की कोई सीमा ही नहीं रह गई है…!!

दीना नाथ जी हंसने लगे …. हां यार…पर हद है मैंने तुझसे ऐसी बेवकूफी की उम्मीद नहीं की थी तू तो हमेशा बताता रहता था किसी अंजान कॉल मत उठाओ ना ही अपने बैंक डिटेल्स की कोई भी जानकारी इस प्रकार के फ्रॉड नंबर्स को दो और खुद ही भूल गया…!……कल मैं भी एक ऑन लाइन ग्रुप से जुड़ा हूं फेस बुक के माध्यम से कहानी लेखन का ग्रुप है….!




…….बिलकुल नहीं जुड़ना गोपाल जी ने तुरंत टोकते हुए कहा ये सब फर्जी ग्रुप होते हैं बड़ी बड़ी बातें करते हैं नई नई तरकीबें प्रस्तुत करते हैं मेंबर बनाने के लिए फिर धीरे से ठग लेते हैं….

“अरे नहीं भाई ये बहुत विश्वसनीय ग्रुप लगता है…..तुम लोग तो जानते हो मैं साहित्य प्रेमी आदमी हूं और चिंतक भी हूं … लिखने का तो जैसे कोई कीड़ा मेरे अंदर है बस उसी के लिए खुराक मिलने जैसा है ये ग्रुप…. घर बैठे मेरा शौक पूरा होने का गोल्डन अवसर जैसा है ये ….मैंने तो कल अपनी पहली कहानी लिख कर भेज भी दी है….एडमिन अप्रूव करेंगे अब..!!दीनानाथ जी काफी उत्साह से बता रहे थे।…..और हां प्रथम तीन कहानियों को पांच सौ रुपए का इनाम भी भेजा जाएगा…!

एक लेखक बनने की चाहत उनके मन में बचपन से पल रही थी ….थोड़ा बहुत लिखने का जब भी अवसर मिला कोशिश करते रहे थे प्रशंसा भी मिली थी….परंतु उनकी दिली चाहत थी जिंदगी में कोई ऐसा अवसर मिले जहां उनकी रचना कतिपय नहीं विशाल पाठकों तक पहुंच जाए.. उन्हें अपने लेखन पर गर्व और सम्मान की अनुभूति करवाए..!!

संभल जा दीना संभल जा…. अब तो मोहन जी का धैर्य जवाब दे गया था  हड़काते हुए कहने लगे…..अव्वल तो तेरी कोई कहानी अप्रूव होने वाली ही नहीं….प्रकाशित करने के लिए भी कुछ शर्ते मनवाएंगे कोई बॉन्ड भरवाएंगे …कुछ फीस मांगेंगे….ऐसा कोई साहित्य  सेवी आजकल नहीं है जो बिना किसी स्वार्थ के तुझ जैसे अपरिचित नए लेखक की रचनाएं छापे….अरे यही किसी लोकल समाचार पत्र में एक छोटी सी कविता छपवाना हो तो कितना जोर लगाना पड़ता है ….!रहने दे भाई अपनी कहानी छपने की और अपने लेखक बनने की कपोल कल्पना से बाहर आजा।….अगर अपने ग्रुप के प्रचार के लिए तेरी कहानी उन्होंने छाप भी दी तो ये इनाम विनाम तो दूर के ढोल सुहावने वाली बात जैसे ही रहेंगे….कोई ऑन लाइन ग्रुप तुझे घर बैठे पांच सौ रुपए क्यों देगा!!जरूर कुछ गड़बड़ है …पूरी दुनिया धोखा धडी के तरीके अपना कर रुपए छीनने में लगी है ….!!!कोई भरोसा नहीं है ऐसे ऑन लाइन ग्रुप का!!

दीनानाथ जी भी गोपाल जी के साथ घटी  बैंक के नाम से ठगी वाली घटना से काफी सहम गए थे और कहानी लिखने भेजने और प्रकाशित होने का उनका सारा उत्साह इस बातचीत से खत्म हो चुका था सही बात है मैंने भी कैसे भरोसा कर लिया ऐसे ग्रुप पर!!!दुखी होकर वो सोचने लग गए थे…. लिखने की… लेखक बनने की मेरी ख्वाहिश मेरी चाहत कभी पूरी नहीं होगी…इतना आसान नहीं होता सब कुछ!!!




अब तो कहानी भेज ही दी है मैने …देख लेता हूं क्या होता है हां सतर्क रहूंगा …तुम लोगों से पूछ कर ही आगे कुछ करूंगा..कहते हुए काफी निराश से वो अपने घर आ गए।

दूसरे ही दिन उस ग्रुप में अपनी कहानी को आकर्षक रूप में प्रकाशित देख कर फिर से उत्साह में आ गए ….देखो मेरी कहानी छप भी गई  कितना विश्वसनीय ग्रुप है अपने मित्रों को अत्यधिक हर्ष से दिखाते हुए दीनानाथ जी कह रहे थे….बधाई हो लेखक बन्धु परंतु अब इसके बाद अगली कोई कहानी छापने से पहले कई शर्ते पूरी करने के लिए तैयार रहना….और हां वो पांच सौ रुपए तुझे मिलेंगे ये तो नहीं सोचने लग गया अब..!!गोपाल जी ने ठहाका लगाते हुए चुटकी ली तो सभी हंसने लगे …हां भाई देख बता देना …!छुपाना मत पार्टी देने के डर से..!!

दीनानाथ जी का सारा उत्साह अपने मित्रों की हंसी उड़ाने वाली बातों से फिर गायब हो गया….।

कुछ ही दिनों के बाद दीनानाथ जी की लिखी कहानी ने तृतीय स्थान हासिल कर लिया ….दीनानाथ जी का हर्ष और उत्साह आज दुगनी रफ्तार में था…सबने बधाई तो दे दी पर रुपए खाते में आयेंगे इस पर किसी को रत्ती भर यकीन नहीं था… उस ऑन लाइन कहानी ग्रुप ने दीनानाथ जी से अपना   पेटीएम बताने को कहा जो उनका बना ही नहीं था उनके बेटे का था पर बेटे ने कोई इसका गलत फायदा ना उठा ले आशंका से बताने से सख्त इंकार कर दिया….।

गोपाल जी का एटीएम था परंतु एक बार धोखा खा चुका उनका मन अब किसी पर भी भरोसा करने को तैयार नहीं था….!दीनानाथ जी काफी उदास थे तभी गोपाल जी ने उनकी गहन उदासी देख कर अपना पेटीएम उन्हें दे दिया.बोले…..इस बार अपनी दोस्ती की खातिर फिर से धोखा खा लेंगे …!

….. चंद दिनों बाद ही गोपाल जी के पेटीएम खाते में पांच सौ रुपए आ गए…!तत्काल उन्होंने दीना को फोन किया….आज शाम को तेरी तरफ से समोसा चाय पार्टी है पार्क में …..!!!जिंदगी में प्रथम बार अपनी लेखनी की प्रतिभा के दम पर पांच सौ रुपए मिल गए सोच कर ही दीनानाथ जी की प्रसन्नता का पारावार ना था ।

उनकी लेखकीय चाहत को आज पंख ही नहीं मिल गए थे बल्कि पंखों की उड़ान के लिए एक विशाल उन्मुक्त पारदर्शी आसमान भी मिल गया था ।

स्वादिष्ट गरम समोसे खाते हुए आज सभी मित्र दीना नाथ जी को बधाई देने के साथ ही…. इतनी सुगमता और निष्पक्षता से रचना छपने पाठकों की घर बैठे तारीफे पढ़ने और साथ ही शानदार लेखक सम्मान सर्टिफिकेट भी पुरस्कार राशि के साथ ही भेजने वाले ऐसे साहित्यिक ग्रुप के प्रति अटूट भरोसा व्यक्त कर रहे थे ।

सच है जब तक ऐसे ऑन लाइन ग्रुप हैं लेखनी के निष्पक्ष विकास का भरोसा बना रहेगा …..और लेखक बनने की चाहत को नए पंख भी मिलते रहेंगे।

#चाहत 

लतिका श्रीवास्तव 

 

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