मानो मेरी बोली लगाई जा रही थी…. – भाविनी केतन उपाध्याय 

” तुम्हारे तो मज़े है भाई , ससुराल भी नजदीक और खुद का घर भी …. रोज़ ससुराल आना जाना लगा ही रहता होगा और मुझे लगता है कि तुम बहुत किस्मत वाले हो जो दो दो घरों का खाना खानें को मिलता है । कभी कभी हमें तुम्हारी ईर्ष्या होने लगती है…” केन्टिन में खाना खाते हुए संदिप ने अपने सहकर्मी और दोस्त राजेश को कहा।

” हमम ” राजेश ने सिर्फ इतना ही कहा।

” क्या तुम खुश नहीं हैं इस शादी से ?”संदिप ने राजेश की ओर देखते हुए कहा।

” इसमें मेरे खुश होने या नहीं होने की तो बात ही नहीं है ना…! ! जो आता है मेरा इस्तेमाल कर के चलें जाता है , कभी किसी ने मेरे बारे में कुछ सोचा ही नहीं है तो सोचने से क्या ?” राजेश ने लंबी सांस लेते हुए कहा।

” मतलब ? तुम कहना क्या चाहते हो,साफ़ साफ़ बता मेरे दोस्त…!! मैं तुम्हें इस क़दर उलझे हुए और घूट घूट कर जिंदगी जीते हुए नहीं देख सकता  ” संदिप ने राजेश के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा।

” अब क्या बताऊं तुम्हे ? अपने मातापिता की सच्चाई या पत्नी की ? दोनों के बीच मैं फंस कर एक सेन्डवीच की तरह हालात हो गए हैं मेरे …!! ” राजेश ने रुंआसी स्वर में कहा।

” चल यहां से इधर बैठ कर ऐसी बातें करना अच्छा नहीं… सब सुनेंगे तो तुम्हारे बारे में क्या क्या सोचने लगेंगे ? इससे अच्छा हम दोनों आधे दिन की छुट्टी लेकर कहीं पार्क या हॉटल में जाकर बैठते हैं, जहॉं हमें कोई पहचानने वाला या जानने वाला ना हो और तुम अपनी बात शांति से और बेफिक्र होकर कह सको ” कहते हुए संदिप ने दोनों का टिफिन बॉक्स बंद किया और राजेश को लेकर आधी दिन की छुट्टी लेकर ऑफिस से निकल गया।




दोनों दूर एक हाइवे के धाबे पर आकर बैठ गए,चाय नाश्ता का ऑर्डर कर संदिप ने राजेश से कहा कि,” अब जो कहना चाहता है कह दें, मैं सुन रहा हूॅं और समझने की कोशिश भी करुंगा।”

” मुझे मेरे मातापिता ने बेच दिया है …” राजेश ने कहा

“क्या कहा तुमने ?”संदिप ने चौंकते हुए कहा।

” मतलब, यहीं की मुझे पालने पोसने में और पढ़ाई लिखाई, यहां तक कि मेरी शादी तक का हिसाब लगाया है उन्होंने और मेरे ससुर जी से बोली लगाई है। तुम जानते हो मेरी कीमत क्या है ? मेरी कीमत एक तीन बेडरूम का फूल्ली फर्निशड फ्लैट और पचास लाख नगद…। मैं कहने को तो ससुर जी के पास वाले फ्लैट में रहता हूॅं पर मेरे घर की हर बात हर चीज का उन्हें पता होता है।

मेरे घर में आज खाना क्या बनेगा से लेकर मैं उनकी बेटी को कहॉं घुमाने ले जा रहा हूॅं वो सब मेरे सास ससुर मिल कर तय करते हैं। एक बात बताऊं मेरी ही पत्नी मेरे साथ नौकरों जैसा व्यवहार करती है, मुझे कामवाली बाई के सामने अपमानित करती है और मैं कुछ नहीं कर सकता सिर्फ चुप रह जाता हूॅं।

एक दो बार मैंने अपनी पत्नी और सास ससुर से इस बारे में बात करना चाहा तो उन्होंने मुझे साफ़ साफ़ मुझे कह दिया कि हम ने तुम्हें तुम्हारे मातापिता से खरीदा है तो हम जो चाहे कर सकते हैं।  फिर मैंने अपने मातापिता से बात की तो उन्होंने कहा कि वो लोग जैसा चाहते हैं वैसे रहो क्योंकि इस मामले में अब हम कुछ नहीं कर सकते कह कर उन्होंने पल्ला झाड़ लिया मुझसे । अब तुम्हीं बताओ कि मैं क्या करूं और कहां जाऊं ? ” राजेश ने इस कदर दीन स्वर में कहा कि संदिप का दिल कांप गया।




 

” तुमने इस बात का विरोध क्यों नही किया ? अब तक चुप क्यों बैठे हो ?” संदिप ने राजेश का हाथ थामे हुए कहा।

” दोस्त, तुम्हें लगता है कि मैंने विरोध नहीं किया होगा ? मुझे शुरुआत से ही यह दहेज़ प्रथा पसंद नहीं है इसलिए मैंने अपनी एडी चोटी का जोर लगा कर पूर जोश से विरोध किया। मैंने घर छोड़ जाने की धमकी दी तो तुम्हें सुनकर आश्चर्य होगा कि उस धमकी के सामने मुझे मेरे मातापिता ने ब्लैक मेल करते हुए कहा कि अगर तुम घर छोड़कर जाओगे तो हम दोनों हमारी जान दे देंगे और इसका कसूरवार तुम्हें ही ठहराएंगे।

दुनिया में ऐसे मातापिता होते हैं जो अपने बच्चों के लिए अपना सबकुछ न्यौछावर कर देते हैं और एक ये मेरे मातापिता है जो मुझे पैदा करने से लेने तक से आत्मनिर्भर बनाने तक का हिसाब लगा रहे हैं मानों मेरी बोली लगाई जा रही थी….” राजेश ने टूटते हुए स्वर में कहा।

” दोस्त, अब ऐसे मातापिता का तो हम कुछ नहीं कर सकते परन्तु एक बात याद रखो कि जब तक तुम तुम्हारे साथ हो तो कोई तुम्हारा कुछ भी नहीं बिगाड़ सकता। तुम अपनी कमाई के दम पर एक अपना नया मुकाम और अपना नाम कमाओ और अपनी पत्नी और सास ससुर को बता दो कि तुम्हारे मातापिता ने उनके बेटे को बेचा है तुम्हारी भावनाओं और लगन को नहीं ” कहते हुए संदिप ने राजेश को गले लगा लिया।

#अन्याय 

स्वरचित और मौलिक रचना ©® 

धन्यवाद,

आप की सखी भाविनी केतन उपाध्याय

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