लव आजकल  – डॉ उर्मिला शर्मा

लड़के- लड़कियां होटल के बाहर ओला कैब के आने का वेट कर रहे थें। तभी शिवानी की मम्मी का कॉल आया- कहाँ हो बेटे?”

“बस! मम्मी निकल रही हूं, ओला का वेट कर रही। होस्टल पहुंच कर फोन करती हूं।”

रात के साढ़े ग्यारह हो गये थे। शिवानी जब भी होस्टल से बाहर जाती मम्मी को बताकर जाती। उसकी मम्मी मना नही करती थीं पर समय से लौटने की ताकीद जरूर करतीं। जब तक उन्हें वापस होस्टल पहुँचने की खबर न मिल जाती तब तक उन्हें चैन नही पड़ता। रोजाना सुबह शाम फोन करती थीं। बाकी लड़कियों के साथ यह नहीं था। 

ज्यादातर तो घर पर बताती ही न थी। और न ही उनके गार्जियन ही इतने जागरूक थे। दो- चार दिनों पर उनके फ़ोन आते थे। महक की बर्थडे पार्टी थी आज। बीती रात बारह बजे ही सारे फ्रेंड्स ने मिलकर खूब धूम- धड़ाका किया था। सबने मिलकर खूब सुंदर डेकोरेशन भी किया था। लड़कियां देर रात होस्टल पहुंची थीं किसी तरह गार्ड को पटाकर। 

आते ही कपड़े चेंज कर अपने- अपने बेड पर ढेर हो गईं। इंजीनियरिंग कॉलेज में तो ये आये दिन होते रहता था। कभी इस लड़की का बर्थडे तो कभी उसका…तो कभी किसी बात का सेलिब्रेशन.….तो कभी किसी लड़की के बॉयफ्रैंड का बर्थडे। लड़कियों को मजा भी खूब आता था कि सज- धज कर बाहर निकलने का मौका जो मिलता था। 

चाहे उनकी आर्थिक पृष्ठभूमि जो भी हो यहाँ फ़ैशन में कोई किसी से कम नहीं। खुद का न भी हो तो सहेलियों के बीच एक- दूसरे से ड्रेसेस या अन्य ‘एसेसरीज बौरो’ करना तो चलता ही रहता है। शिवानी के होस्टल रूम में चार लड़कियां थीं। स्नेहा, ऋषिका व अंजली। रूम नम्बर फोर था उसका। रूम फाइव की रुपाली, किरण और विजयलक्ष्मी भी अच्छी फ्रेंड्स थी। शिवानी थी ही इतनी अच्छी और कुशाग्र बुद्धि। सीधे सादे परिवार से आनेवाली  छल – प्रपंच से दूर।




               शिवानी के रूम की तीनों लड़कियों के बॉयफ्रेंड थे। यदि नहीं था तो उसी का। ऐसा नहीं था कि उसे कोई जँचा ही नहीं था। निखिल को वह मन ही मन पसन्द करने लगी थी, लेकिन वह संकोची कुछ कह पाती उससे पूर्व अनन्या उसे ले उड़ी। सबकी अपनी- अपनी कहानी थी। हर शाम अपने बॉयफ्रेंड के साथ सभी कैम्पस से बाहर घूमने निकल जातीं। बाहर नहीं तो कैंपस में ही पार्क में बैठतीं। 

देर रात तक एग्जाम के पूर्व लाइब्रेरी में बॉयफ्रैंड के साथ पढ़ाई करतीं। बॉयफ्रेंड होने एक विशेष फायदा यह भी था कि लड़के कई अन्य फ़ेवर के साथ नोट्स भी कहीं से जुगाड़कर अपनी गर्लफ्रेंड को देते थे। वहीं लड़कियां अपनी फ्रेंड्स को ये सब शेयर नहीं करतीं। उसकी रूममेट स्नेहा तो हर समय फोन पर लगी रहती थी शिवम से बात करने में। घण्टों फोन पर पढ़ाई भी उसके साथ मिलकर करती रहती। रूम में होकर भी वह मानो न होती थी। अपनी दुनिया में मस्त। अंजली व अमित भी अपनी जिंदगी में खुश थे। उन्होंने तो ये अनुबंध ही कर रखा था कि चार साल तक ही उनकी दोस्ती रहेगी। पढ़ाई खत्म, रिश्ता खत्म। चुकि अंजली एक कट्टर राजपूत फैमिली से आती है, इसलिए उससे ज्यादा की उम्मीद वह नहीं कर सकती। दूसरी तरफ ऋषिका और आसिफ की दोस्ती भी अलग तरह की थी। उनकी तो स्कूल टाइम से दोस्ती चली आ रही थी। 

पर दोनों ने इतने सालों की रिलेशनशिप के बावजूद शादी की न सोची। ऋषिका के पेरेंट्स तो अभी से ही एक धनाढ्य फैमिली में उसका रिश्ता तय कर रखे थे। वहीं विजयालक्ष्मी और वरुण की अपनी कहानी थी। विजया सम्पन्न फ़ैमिली से थी जबकि वरुण साधारण परिवार से। उनके बीच भी करार था कि उनका सम्बन्ध भी पढ़ाई तक ही रहेगा। रुपाली का इनदिनों ब्रेकअप हुआ था इसलिए वह दुःखी थी, पर एक बेहतर फ्रेंड की तलाश में थी क्योंकि उसका बॉयफ्रैंड भी तो क्लास की सबसे स्टाइलिश लड़की एन. आर.आई कोटे से आनेवाली डेल्फी के चक्कर में उसे छोड़ा था। किरण का भी अलग रोना था। 




उसकी अपनी बेस्टफ्रेंड तृषा न जाने कब उसके बॉयफ्रेंड की चहेती बन बैठी थी, उसे पता ही चला। ये उसी के बाद हुआ जब तीन दिन के ट्रिप पर वह एक और कपल फ्रेंड के साथ तृषा को साथ लेकर गयी थी। रुपाली की रूममेट तन्वी ने अपने बॉयफ्रेंड तुषार के विषय में घर मे बता रखा था। 

आधुनिक ख्याल परिवार होने की वजह से वह उसे घर भी ले जाती थी और तुषार के परिवार से मिल उन्होंने भविष्य में विवाह की बात भी कर रखी थी। कॉलेज में ऐसा ही माहौल था। जैसे बॉयफ्रेंड रखना किसी लड़की के काबिलियत का मानदंड हो। जिसका कोई बॉयफ्रेंड न हो तो उसे बड़ा ऑकवर्ड फील होता या कॉम्प्लेक्स होता। जैसे फैशन की सारी चीजों में एक बॉयफ्रेंड होना भी जरूरी था।

 एक छूत की बीमारी सी एक से दूसरे को लगती है। ऐसा लगता था जैसे प्रेम के मामले में सचमुच जमाना बदल गया है। एक जमाना था जब लड़की चित्र- दर्शन या स्वप्न में देख किसी प्यार कर बैठती थी। उसे आजीवन मन मंदिर में बिठा लेती थी। फिर जमाना आया एक एक बार किसी लड़की का कहीं विवाह तय होता था और किसी कारणवश या हादसा के कारण वह विवाह न हो पता तो लड़की दूसरी शादी करने से यह कहकर इंकार कर देती की वह तो उसे ही पति मान बैठी थी जहाँ उसका विवाह तय हुआ था।

 अब तो वह दूसरे का ख्याल भी मन में नहीं ला सकती। पर अब सचमुच पढ़ी- लिखी लड़कियों का एक समूह लगता है अपनी भावनाओं पर विजय प्राप्त करना सीखने लगी हैं। बड़ी सहजता से वो एक सम्बन्ध से निकल ‘मूव ऑन’ की नीति को अपना लेती हैं। भावना ही दुखों का मूल है। परिवर्तन तो शाश्वत तत्व है। पर इस परिवर्तन को हम सकारात्मक रूप में लें या …..।

 

—डॉ उर्मिला शर्मा

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