बुआ जी,मेरे पिता ने मुझे दौलत नहीं संस्कार देकर विदा किया है – गीतू महाजन

भैया बहुत ही अच्छा रिश्ता है.. अच्छे खाते पीते लोग हैं और लड़के की एक ही छोटी बहन है..छोटा सा परिवार है। माता-पिता भी बहुत अच्छे स्वभाव के हैं और क्या चाहिए” सुहासिनी बुआ की आवाज़ सुन कॉलेज से वापिस आई दिशा के पांव ठिठक गए।मां से पूछने पर पता चला कि सुहासिनी बुआ उसके लिए एक रिश्ता लेकर आई थी। सुहासिनी बुआ उसके पापा की छोटी बहन थी जो कि पास वाले शहर में ही रहती थी। 

“मुझे नहीं करनी कोई शादी अभी..अभी मुझे नौकरी करनी है”,दिशा दनदनाते हुए कमरे में आ पहुंची थी।”

“क्यों नहीं करनी शादी…और कब तक बैठी रहेगी.. तेरे पिता को अभी दो और भी लड़कियां ब्याहनी है।कुछ सोचा है तूने.. जब तू ही विदा नहीं होगी तो उनकी बारी कब तक आ पाएगी” सुहासिनी बुआ ने बोला।

दिशा उनकी बात सुन एक पल के लिए चुप कर गई और पिता की ओर देखने लगी।पिता के चेहरे पर आए भावों से उसे लगा कि शायद पिता भी इस बार बुआ की बात से सहमत हो चुके हैं।दिश की दो छोटी और बहनें थीं।वो पोस्ट ग्रेजुएशन कर रही थी और उसके बाद नौकरी करना चाहती थी पर उसके पिता पिछले एक बरस से ही उसके लिए रिश्ते की तलाश कर रहे थे।




दिशा के पिता का अपना व्यवसाय था।बहुत बड़ा व्यापार तो नहीं था पर फिर भी अच्छी गुज़र बसर हो जाती थी।उसके पिता चाहते थे कि वह समय रहते ही अपने हाथों से अपनी बेटियों को विदा कर दें। शाम के समय मां ने भी दिशा को समझाया कि सुहासिनी बुआ सही कह रही हैं और उन्होंने भी किसी से पता किया है कि लड़का और उसके माता-पिता बहुत अच्छे हैं ऐसे में उसे और क्या चाहिए।

दिशा ने अपने माता-पिता की बात मान ली और उसके पिता ने लड़के वालों को बुलावा भेज दिया।तय समय पर लड़के वाले उसे देखने आए। सौरभ अपने पिता के साथ ही व्यापार में हाथ बंटा रहाा था और सच में दिशा को बातचीत करने में वह एक भला इंसान ही लगा।

खैर,सारी बातचीत हो गई। लड़के वालों को दिशा पसंद आ गई थी और दिशा के घर वालों को भी सौरभ अपनी बेटी के लिए सही लड़का लगा था।दिशा ने भी अपनी सहमति दे दी थी।तीन महीने के बाद शादी का मुहूर्त निकाला गया।दिशा के पिता अपनी बेटी को हर चीज़ देना चाहते थे जैसे कि हर मां बाप चाहते हैं।दिशा की मां और सुहासिनी बुआ ने मिलकर शादी की सारी लिस्ट बनाई और शादी की खरीदारी शुरू कर दी। 

धीरे-धीरे 3 महीने बीतने को आए थे।इस दौरान दिशा और सौरभ फोन पर आपस में बातचीत कर लेते।दिशा को बातचीत से ही सौरभ एक अच्छे दिल का व्यक्ति लगा था।तय समय पर शादी हुई और वह दुल्हन बन अपने ससुराल में आ गई।उसके पिता ने अपने सामर्थ्य अनुसार दान दहेज दिया था।हालांकि सौरभ के माता-पिता की तरफ से कोई भी डिमांड नहीं रखी गई थी पर जैसा दस्तूर है वैसे ही दिशा के घर वालों ने भी उसके साथ काफी सामान भेजा था।




शादी के बाद दिशा और सौरभ घूमने चले गए और कुछ दिनों बाद वापिस आए।दिशा की सास सुधा जी एक स्नेहिल महिला थी।आस-पड़ोस और रिश्तेदारी में भी उनकी सबके साथ खूब बनती थी। उन्होंने कभी भी अपनी बहू  को किसी काम के लिए नहीं टोका था… हां पर उसे अपने घर की गरिमा बनाए रखने के लिए पूरी हिदायत भी दी थी।

सौरभ की छोटी बहन अवनि भी अपनी भाभी के साथ मिलकर खूब मस्ती करती।दिन बीतते जा रहे थे।दिशा शादी के समय तो सभी रिश्तेदारों से मिल नहीं पाई थी पर हां बीच-बीच में कोई मिलने आता तो उसकी सास सबके सामने अपनी बहू की खूब तारीफ करती। दिशा थी भी बड़ी प्यारी… उसने सब के दिलों में कुछ ही महीनों में अपने लिए जगह बना ली थी.. सब उससे बहुत खुश थे।उसकी शादी को लगभग 6 महीने हो चुके थे। 

“कल सौरभ की बुआ आने वाली है बहू..तुम शादी के बाद घूमने चली गई थी तो उनसे ज़्यादा मिल नहीं पाई। इस बार वह कुछ दिन रहने आने वाली हैं” सुधा जी ने कहा। 

“मांजी..मुझे भी बहुत अच्छा लगेगा बुआ जी से मिलकर।”  

अगले दिन सुबह ही सौरभ की बुआ आ गई।दिशा ने उन्हें प्रणाम किया और आदर पूर्वक बिठाकर चाय लेने चली गई।




“यह क्या सुधा.. तूने बहू को अक्ल नहीं दी.. सिर ढक कर नहीं रहती क्या वह ससुराल में”?

“नहीं जीजी क्या ज़रूरत है सिर ढक कर रखने की.. बच्ची ही तो है.. जैसी अवनि वैसी ही बहू।”

 “यही तो तुम लोगों की गलती है.. आजकल बहू और बेटी में फर्क नहीं करते तभी तो सिर चढ़ जाती हैं।अरे संस्कार नाम की भी कोई चीज़ होती है।”

रसोई में चाय बनाती दिशा सब कुछ सुन रही थी और वहीं से उसने सास की तरफ देखा जो शायद अपनी ननद के सामने कुछ बोलने से डरती थी। दोपहर का समय हुआ… दिशा ने सब को बहुत प्यार से खाना खिलाया। दो-तीन दिन ऐसे ही बीते।सौरभ की बुआ बीच-बीच में दिशा को संस्कारों के नाम पर कोई ना कोई ताना सुना ही देती थी पर वो बेचारी आगे से कुछ ना बोलती।

एक दोपहर को दिशा के सिर में तेज़ दर्द हो गया तो सुधा जी ने उसे लेटने के लिए कह दिया।उस दिन सौरभ की बुआ जी ने अपनी एक सहेली को भी बुला लिया था।बहू को सोया हुआ देखकर बुआ जी बोली “सुधा यह क्या.. तुम काम कर रही हो और यह बहू अंदर क्यों लेटी हुई है”?

“जीजी उसके सिर में दर्द है.. थोड़ी देर सोएगी तो ठीक हो जाएगा।”




“बस यही तो मैं तुम्हें समझा रही हूं कितने दिनों से.. लेकिन.. तुम सुनती कहां हो? तुमने तो उसे सिर पर चढ़ाने की सारी हदें पार कर दी हैं।अच्छा लगता है वह अंदर आराम करें और तुम रसोई में खटती रहो।इसके पिता ने कौन सा इसे बहुत सारी दौलत दे कर भेजा था… चार डिब्बे लेकर आई थी अपने घर से.. भूल गई क्या.. सारी बिरादरी में नाक कटवा कर रख दी थी।”

“जीजी ऐसे क्यों बोल रही हो.. अच्छा खासा सामान दिया था उसके पिता ने.. सब कुछ बहुत अच्छा किया था.. सारा इंतज़ाम भी कितना अच्छा था और हमें क्या चाहिए.. सब कुछ तो भगवान का दिया है हमारे पास” सुधा जी बोली।

“हां हां.. तुम बस अपनी बहू की पैरवी करती रहो।”

दिशा ये सारी बातें अंदर सुन रही थी।बड़े दिनों से ही वह बुआ जी की बातों को नज़रअंदाज़ करती जा रही थी पर अब उसके पिता के लिए जो शब्द बोले गए थे उसे बर्दाश्त नहीं कर पाई और उसका खून खौल उठा।बाहर आकर उसने बहुत ही विनम्र शब्दों में बुआ जी को बोलाा “बुआ जी मेरे पिता ने बहुत सारी दौलत तो मुझे नहीं दी पर हां..एक चीज़ है जो बहुत सारी मुझे मेरे पिताजी ने दी है और वह है संस्कार।अपने संस्कारों की वजह से मैं अपने ससुराल में सबकी चहेती हूं यह तो आप भी जान गई होंगी और इन्हीं संस्कारों की वजह से इतने दिनों से मैं आपके द्वारा किए हुए कटाक्ष भी सह रही हूं और साथ ही साथ मेरे पिता ने एक बात यह भी समझाई थी कि अगर कोई अन्याय हो रहा हो तो उसके लिए कभी चुप मत बैठना इसलिए मैं आप से यह प्रार्थना करती हूं कि कृपया कुछ भी बोलने से पहले आप एक बार ज़रूर सोच लें।”

“देख लिया ना सुधा.. अपनी बहू की चटर-पटर और ना मानो मेरी बात” 




“बुआ जी आप जो यह दौलत की बात कर रही हैं तो मेरे पिता की तो और दो बेटियां हैं इसलिए वह मुझ पर अपना सारा खज़ाना तो नहीं लुटा पाए लेकिन आपकी तो इकलौती बेटी है और मैंने सुना है उसके ससुराल वालों ने उसे वापिस भेज दिया है।आपने अपनी बेटी को क्यों नहीं अपनी पूरी दौलत उन्हें दे दी।एक ही तो बेटी है ना आपकी।”

यह सब बातें सुन सौरभ की बुआ का चेहरा एकदम से सफेद पड़ गया।सच्चाई सामने आते ही सारी हेकड़ी निकल गई हो जैसे।अब उनसे कुछ भी कहते नहीं बना और वह चुपचाप बैठ गई।रात का खाना भी उन्होंने चुपचाप ही खाया।सारी रात बुआ ने आंखों में काटी.. एक एक दृश्य उनकी आंखों के सामने आ गया था जैसे.. उन्होंने अपनी बेटी को दान दहेज तो दिया था पर संस्कार तो बिल्कुल नहीं सिखाए थे।अपनी बेटी को वह हमेशा यही कहती कि उसे किसी भी बात के लिए ससुराल वालों के साथ एडजस्ट नहीं करना चाहिए। दिन-रात वह बेटी के कान भरती रहती और शायद इसी वजह से उनकी बेटी को उसके ससुराल वाले वापिस छोड़ गए थे।अगले दिन सुबह होते ही वह वापिस जाने की तैयारी करने लगी।

“बुआ जी अगर आपको मेरी किसी भी बात का कोई दुख लगा हो तो मैं आपसे क्षमा चाहती हूं।कल शायद मैं कुछ ज़्यादा ही बोल गई” दिशा ने बुआ जी के समक्ष जाकर कहा।

“नहीं बेटी तूने तो मुझे आईना दिखा दिया है। सच में किसी की बेटी के लिए ऐसे शब्द बोलना किसी को भी शोभा नहीं देता और बेटियां तो अपने मायके से संस्कार ही लेकर आएं तो वो ही सबसे बड़ी अनमोल दौलत है।मैं शायद इतनी उम्र में भी भटकी हुई थी पर तेरे शब्दों ने मुझे सच्चाई का रास्ता दिखा दिया है।माफी तो मुझे मांगनी चाहिए।” 

“नहीं बुआ जी आप मुझसे बड़ी हैं आप मुझसे माफी क्यों मांगेगी।”




“सही कहा बेटी लेकिन अभी मुझे और भी जाकर बहुत कुछ सही करना है मुझे लगता है शायद मेरी इसी रवैये ने ही मेरी बेटी का भी घर नहीं बसने दिया।यहां से जाकर सीधा मैं उसके ससुराल जाकर अपने व्यवहार के लिए माफी मांगूंगी और उन्होंने आगे बढ़कर दिशा को गले लगा लिया।

दरवाज़े पर खड़ी सुधा जी मन मन मुस्कुरा रही थी जो वह इतने सालों में नहीं कर पाई उनकी बहू ने एक ही दिन में कर दिखाया था।

#स्वरचित

#संस्कार

गीतू महाजन।

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