सुन रही हो , दस बज गए …अभी तक उठने का नाम नहीं है ….पापा ऑफिस चले गये हैं….पता नहीं कैसे कटेगी इसकी जिंदगी…..दिन भर सोना और देर रात तक मोबाइल चलाना …!
जब ससुराल जायेगी ना तब पता चलेगा….. ऐसा बड़बड़ाना साधना के जिन्दगी का एक हिस्सा बन गया था I रोज बेटी तान्या की नींद इन्ही वाक्यों से खुलती है….और आँख खुलते ही तान्या मजाकिये स्वर में पूछती….
किसे पता चलेगा मम्मी …? मुझे या सास को….!!
बस फिर क्या था… ये सुनते ही साधना की गुस्से से काम की तीव्रता और बढ़ जाती I
कभी-कभी साधना वास्तव में बहुत चिंतित रहती थी ….लड़की है , कितना भी पढ़ ले, नौकरी कर ले पर घर तो सम्भालना ही पढ़ता है ….और यही चिंता वो अपने पति प्रदीप के समक्ष भी रखती…!
स्वभाव से शांत प्रदीप हमेशा साधना को समझाते जब समय आयेगा सब ठीक हो जायेगा I पर कहते हैं ना …
* माँ तो माँ होती है *
हर परिस्थिति में बच्चों को योग्य बनाना चाहती है I
तान्या लगभग आठ दस वर्षों से बाहर पढ़ाई कर रहीं थीं और अब तो नौकरी भी लग गई है I कोरोना के कारण वर्क फ्राम होम होने से काफी समय बाद इतने लंबे समय के लिए घर पर है….!!
पढ़ने में तेज आत्मविश्वास से भरी तान्या…. हमेशा सच का साथ देने वाली एक ऐसी जिन्दगी की तलाश में थी , जिसमें वो अपनी एक अलग पहचान बना सके I जिंदगी में बहुत ऊँची उड़ान भरना चहती थी तान्या……!!
इसी बीच साधना और प्रदीप ने तान्या की शादी कर दी…..शादी के बाद तान्या ने अपनी नौकरी और गृहस्थी के बीच बहुत अच्छा सामंजस्य स्थापित किया था I फोन पर साधना रोज बात कर के हालचाल पूछती रहती थी…I तान्या का ये जवाब …
“सब ठीक है मम्मी ”
कभी साधना को संतुष्ट नहीं कर पाया
शादी के एक साल पूरे हो गये …कोरोना और न्यू जॉब के चलते तान्या एक बार भी मायके नहीं आई थी…साधना और प्रदीप ने तान्या के शादी की पहली सालगिरह पर तान्या के घर ही जाने का प्रोग्राम बनाया….!
बेटी के घर पहुंचते ही साधना की आंखें खुली की खुली रह गई… एकदम साफ़ सुथरा, व्यवस्थित घर , जो तान्या दिन में दस ग्यारह बजे तक सोकर नहीं उठती थी…. अब वो नास्ता खाना बना के नौ बजे घर से ऑफिस के लिए निकल जाती थी…शाम को लौटने के बाद चाय नास्ता सब कुछ तो सम्भाल लिया था तान्या ने…!!
साधना को अपनी आँखों पर विश्वास ही नहीं हो रहा था …जितना फोन पर तान्या बताती थी उससे कहीं ज्यादा व्यस्त रहती थी बेटी तान्या…I
…..और उस समय साधना अपनी आँखों से आते आंसू को रोक नहीं पाई जब …..तान्या की सास ने बड़े प्यार से कहा……
मेरी तो बेटी नहीं थी… बेटी का सुख तो मैंने कभी जाना ही नहीं था….पर इस कमी को तान्या ने पूरी कर दी … मेरे जन्मदिन पर सरप्राइज गिफ्ट और पार्टी देना… उस दिन मेरी पसंद के व्यंजन बनाना…. मेरी खुशी के कितने ऐसे छोटे-छोटे पहलू को कभी बेटों ने ध्यान ही नहीं दिया….!
सच कहूं …शायद बेटी होती तो वो भी इतना ध्यान नहीं देती जितना बहु के रूप में तान्या बेटी देती है….I
तान्या के आने से घर में एक रौनक आ गई है… आप लोगों का बहुत-बहुत धन्यवाद जो आपने बेटी के रूप में तान्या को देकर हमें भी खुश और आनंदित होने का मौका दिया…!
लौटते वक्त प्रदीप गर्व से बोले…देखो साधना मैं बोलता था ना समय सब कुछ सीखा देता है….
हाँ मुझे भी लग रहा है तान्या को और आराम क्यों नहीं करने दिया मैंने….
उसे काम सिखाने के पीछे ही पड़ी रहती थी मैं…….मुझे क्या मालूम था हमारी बिटिया रानी इतनी सयानी है .. साधना ने मुस्कुराते हुए कहा I
साथियों… सच मे कभी भी बेटियों की क्षमता को कम ना आके ….! समय आने पर वो अपना हुनर दिखा ही देती हैं….I
अतः प्यार से समझाएं जरूर…. पर घर मे अनावश्यक तनाव पैदा ना करें….!!
(स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षित रचना )
संध्या त्रिपाठी