समझाइश  – पुष्पा जोशी

पार्थ ने फोन का रिसीवर रखा और एक लम्बी सांस ली।उसके चेहरे पर चिंता की लकीरें उभर आई, वह सोच रहा था कि जब स्मिता  मौसी घर आएगी, वह सबके साथ साम्य कैसे स्थापित करेगा।पत्नी रूपा अपनी जिद पर अड़ी है।माँ बीना इस पूर्वाग्रह से बाहर ही नहीं आ पा रही है, कि वे जो कर रही है वहीं सही है, उसकी बात पत्थर की लकीर है और सभी को माननी है।

पार्थ अपनी  स्मिता मौसी को माँ से भी ज्यादा प्यार करता था।पिता का देहांत होने के बाद मौसी ने ही इनके परिवार को सहारा दिया था।माँ ज्यादा पढ़ी लिखी नहीं थी और स्मिता  मौसी विद्यालय में उच्चश्रेणी  शिक्षक थी।जब तक पार्थ की नौकरी नहीं लगी उन्होंने परिवार की जिम्मेदारी को सम्हाला।पार्थ की नौकरी लगने के बाद उन्होंने शादी की, मौसाजी की मल्टीनेशनल कंपनी में नौकरी थी। वे  किसी प्रोजेक्ट को पूरा करने के लिए अमेरिका गए थे, आज तीन सालों के बाद मौसी इंडिया आने वाली थी। पार्थ नहीं चाहता था कि घर में चल रहै तनाव के बारे में मौसी को पता चले।

दौ दिन बाद मौसी  आई, पार्थ उन्हें घर लेकर आया।इसके पूर्व उसने माँ और रूपा दोनों को समझाने की कोशिश की  लेकिन…..।मौसी घर पर आई तो बीना जी और रूपा दोनों ने उनका दिल से स्वागत किया। मगर घर में फैला तनाव और पार्थ की दुविधा उनकी आँखो से छुप नहीं सकी।

रात को भोजन करने के बाद जब सब सो गए तो पार्थ मौसी के कमरे में गया और पूछा मौसी किसी चीज की जरूरत तो नहीं है, तो वे हँसकर बोली बस बेटा तेरे बालों को सहलाना चाहती हूं, पार्थ उनकी गोदी में सिर रखकर लेट गया,उनकी उंगलियां पार्थ के बालों को सहला रही थी, और पार्थ को सुकून दे रही थी।

मौसी ने पूछा बेटा क्या  परेशानी है,क्या मैं इतनी पराई हो गई, कि मुझे कुछ नहीं बताएगा, ऐसा कुछ नहीं है मौसी आप तो मेरे अपने हो जरा सी बात है मौसी, न माँ  गलत  है न रूपा।माँ चाहती हैं कि रूपा सुबह-सुबह उसके मायके में फोन नहीं लगाए,पहले सारे काम निपटाए उसके बाद वह भले ही बात करें।

और रूपा का कहना है कि वह अपने माँ पापा को वचन देकर आई है, कि वह सुबह-सुबह उन्हें फोन लगाएगी।इससे उसका मन दिन भर प्रसन्न रहता है। मौसी वह सब काम व्यवस्थित करती है,खाना अच्छा बनाती है,मगर माँ की यह रोक-टोक उसे पसंद नहीं, मौसी वह उसके माँ पापा की इकलौती संतान है, और कहती हैं कि वह अपने माँ पापा के लिए इतना तो कर ही सकती है,समझाता हूँ तो वह भी नहीं समझती, कुछ बचपना है उसके अन्दर। मैं माँ से कुछ कह नहीं सकता, सुबह-सुबह




उसके हाथ में फोन देखते ही भड़क जाती है और फिर उसे चौके में आने ही नहीं देती । सारा काम निपटा कर ही दम लेती है।

मौसी ने कहा-‘ तू चिंता मत कर मैं सब ठीक कर दूंगी।’

कुछ देर बाद पार्थ सोने के लिए चला गया।

सुबह चाय पीते समय मौसी जी ने बीना जी से कहा- ‘दीदी आज टेकरी वाले मंदिर चलते हैं माताजी के दर्शन के लिए।’ फिर रूपा से कहा-‘ बेटा तू सब काम सम्हाल लेगी ना?’जी मौसी जी मैं सम्हाल लूंगी आप जाइये।

बीना जी ने कहा – ‘नहीं-नहीं पार्थ को १० बजे ऑफीस जाना पड़ता है,उसे देर नहीं हो जाए। मंदिर शाम को चले चलेंगे।स्मिता ने जिद की और बीना जी को सुबह मंदिर जाना पड़ा।जब वे दर्शन कर ११ बजे वापिस आई तो पार्थ ऑफिस जा चुका था और पूरा भोजन तैयार था, रुपा ने भोजन परोसा, मौसी ने कहा कि बहू भोजन बहुत अच्छा बना है,बीना जी कुछ नहीं बोली।

अब रोज सुबह स्मिता मौसी बीना जी को सुबह कहीं न कहीं ले जाती,यह क्रम पांच दिन चला, पांचवें दिन बीना जी ने भी भोजन की तारीफ की।एक दिन शाम को बीना जी अकेली बैठी थी तब मौसी ने कहा दीदी रूपा अभी बच्ची है, लेकिन अपनी जिम्मेदारी समझती है।बीना जी बोली क्या जिम्मेदारी समझती है ? सुबह-सुबह फोन लेकर बैठ जाती है।

तो क्या हुआ दीदी काम तो सब व्यवस्थित करती है ना, आप कब तक काम करेंगी,आगे का जीवन इन बच्चों के सहारे ही काटना है। दीदी घर में शांति बनी रहै।पार्थ पर घर की और बाहर की जिम्मेदारी है,वह बच्चा घर के क्लेश से परेशान हो जाता है

बीना जी बोली कुछ नहीं, मगर उन पर स्मिता की बातों का असर जरूर हुआ,दूसरे दिन रूपा के सुबह फोन उठाने पर बीना जी नाराज नहीं हुई।सबने मिलकर  प्रेम से भोजन बनाया।घर का माहौल खुशनुमा हो गया था। एक दिन मौसी जी ने रूपा को भी समझाया बेटा घर में बस तुम तीन सदस्य हो प्रेम से रहते हो तो घर सुहाना लगता है, दीदी दिल की बुरी नहीं हैं,जीजाजी की असमय मृत्यु से वे  कुछ चिड़चिड़ी हो गई है,

अगर वे किसी बात पर नाराज़ हो जाए तो ध्यान मत देना,उनका तुम्हारे सिवा कौन है।मैं तो कल चली जाऊंगी, मैं चाहती हूं कि तुम सब प्यार से रहो। बेटा,आज दीदी  हैं, तुम्हें अपना समझती हैं तो टोकती हैं,कल जब वे….. कहते -कहते मौसी की आवाज भर्रा गई थी,उनकी आँखें भर आई थी। रूपा ने उन्हें बीच में रोकते हुए कहा मौसी अब आप निश्चिंत रहें, मुझे अपनी गलती का एहसास हो गया है,रूपा भावुक होकर मौसी के गले से लिपट गई।

प्रेषक-

पुष्पा जोशी

स्वरचित, मौलिक, अप्रकाशित

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