दुपहिया एवं कार डेकोर व्यवसायी नरेश जी अक्सर अपनी दुकान पर आए दुपहिया वाहन चालकों को हेलमेट खरीदने हेतु प्रेरित किया करते, कभी-कभी तो लागत मूल्य में भी ग्राहकों को हेलमेट बेच दिया करते,
पिताजी की यह आदत 20 वर्षीय राघव को बिल्कुल भी पसंद नहीं आती,
वह अक्सर कहा करता..!!
~ क्या पापा आप भी…?? बिना मुनाफ़े का सौदा क्यों करते हो..??
पिताजी का एक ही जवाब होता..
° यदि थोड़े से मुनाफ़े के बदले यदि किसी का जीवन बचता है तो मुझे यह घाटा हमेशा मंज़ूर है बेटा..!!
राघव हंसकर बात को टाल देता।
21वें जन्मदिन पर नरेश जी ने राघव को मनपसन्द बाइक उपहार में दिलवाई किन्तु एक आदेश के साथ।
° तुम कभी भी बिना हेलमेट इसे नही चलाओगे ओर जो भी तुम्हारे साथ इस पर रहेगा उसे भी बिना हेलमेट अपने साथ नही बैठाओगे।
राघव ने उस वक़्त तो बात मान ली, किन्तु राघव को तो पसंद था बाइक को खिलौने की तरह उड़ाना और हवा से बातें करना।
एक दिन पिताजी से अनुमति लेकर राघव अपनी बचपन की खास दोस्त दीपिका के साथ निकल पड़ा
लॉन्ग-ड्राइव पर, शहर से बाहर निकलते ही राघव ने हेलमेट उतार हैण्डिल पर टांग दिया,
बहुत रोका दीपिका ने, लेकिन उसका एक ही जवाब था।
~ चल.. आज हवा से बातें करवाता हूँ तुझे..
किन्तु दीपिका ने नरेश जी की बातों का अनुसरण नहीं छोड़ा।
कहते हैं ना, सावधानी हटी और दुर्घटना घटी,
सामने एक कुत्ते के आ जाने से गाड़ी जो स्लीप हुई कि दोनों स्पीड में बहुत दूर तक घिसटते हुए बिजली के खंभे से टकरा गए।
कुछ ही देर पश्चात दोनों शहर के सिद्धि-विनायक हॉस्पिटल के बेड की शोभा बढ़ा रहे थे।
दीपिका का एक हाथ और एक पैर फ़्रैक्चर हो चुका था, किन्तु राघव जो हेलमेट उतार चुका था उसे सिर में ऐसी गहरी चोट लगी की खून के थक्के दिमाग में जम चुके थे जिसे दूर करने में शायद सालों-साल लग जाए।
राघव आज जिंदा तो है किंतु वो भी एक व्हील चेयर पर, उसका दिमाग एक बच्चे की तरह हो चुका है, पता नहीं कितना वक्त और लगेगा
…या शायद…??
क़रीब 4 वर्षों के बाद आज नरेश जी ने सपरिवार शिरक़त की दीपिका के विवाह उत्सव में, जिसे कभी अपने घर की बहू बनाने सपना संजोया था उन्होंने, और ऐसे कितने ही अरमान दम तोड़ चुके थे नरेश जी और उनकी धर्मपत्नी जी के..!!
ना जाने कितने ही लोगों की अपनी नेक सलाह और बिना मुनाफ़े का सौदा कर के जीवन बचाने वाले नरेश जी आज मजबूर है अपने इकलौते लाडले को इन हालातों में देखने के लिए।
क्योंकि..??
“उसे हवा से बातें करना जो पसन्द था”।
©विनोद सांखला
#कलमदार