मेरे पापा  – बेला पुनीवाला

 

          मुझे आज भी याद है, जब मैं छोटा था, तबसे मैं  थोड़ा ज़िद्दी था, मुझे जो भी चाहिए वो मैं लेकर ही रेहता था, अगर मुझे मेरी चीज़ ना मिले तो मैं पूरा घर सिर पे उठा लेता था, माँ भी कितना समझाती थी मगर मैं  किसीकी नहीं सुनता। मेरे दोस्त के पास जो भी होता मुझे मेरे पास हर वो चीज़ चाहिए थी। और मेरे पापा इतने अमिर तो नहीं थे की मुझे वो सारी महँगी चीज़ दिला सके, फिर भी मेरी ज़िद्द के आगे वो हर बार कुछ ना कुछ पैसों का जुगाड़ करके वो चीज़ मेरे लिए लाते थे, क्यूँकि वो जानते थे एक ना एक दिन मुझे अपनी गलती का एहसास ज़रूर होगा, और पैसो की सही ऐहमियत भी पता चल जाएगी। (वो मेरी माँ को समझाते की )

पापा : ” वक़्त आने पे सब कुछ ठीक हो जाएगा।”

         (दिन गुज़रते गए, मैं  बड़ा होने लगा, और मेरी माँगे भी बढ़ती गई। एक दिन मेरे पापा बहोत बीमार हो गए, उनके घुटने का दर्द इतना बढ़ गया था, की अब तो उनसे खड़ा भी नहीं रहा जाता था, डॉक्टर ने तुरंत ऑपरेशन के लिए बोला, मगर मेरे पास इतने पैसे नहीं थे, और पापा जो भी कमाते थे उसमे से आधा पैसा घर के खर्चे में और आधा पैसा मेरी ज़िद्द पूरी करने में ख़तम हो जाता था, तो ज़्यादा कुछ बचता ही नहीं था, जैसे तैसे घर चल जाता था। मगर अब क्या करें? पापा तो चल भी नहीं सकते। 

 

    मैंने माँ  से कहा, की ” तुम्हारे पास तो पैसा होगा ना, तुम क्यों नहीं दे देती पापा के ऑपरेशन के लिए ? बाद की बाद मे देख लेंगे।”

 

    तब मेरी माँ ने कहा, की ” बेटा, अगर तेरे पास कुछ पैसे हो तो दे दो शायद पापा के ऑपरेशन में काम आ जाए। “

 

     मैंने कहा, की ” नहीं माँ, मेरे पास भी कुछ ख़ास पैसे नहीं बचे, कल ही दोस्तों के साथ पार्टी थी, तो सारे पैसे उसी में खर्च हो गए।”

 



    तब माँ ने कहा, की ” मेरे पास भी तो कुछ ख़ास नहीं है, क्यूंँकि तेरे पापा जो भी पैसा कमाते थे उसमे से आधा पैसा घर खर्च में और आधा तेरी बेफिज़ूल की माँगे पूरी करने में खर्च हो जाते थे, पैसे बचते ही कहाँ थे, तेरी माँगे पूरी करने में ना तो हम आज तक कहीं घूम फिर सके और ना कभी अच्छे कपडे ले सके, साल में दो साडी मेरे लिए, और साल में दो जोड़ी कपडे तेरे पापा के लिए और हर हफ्ते तो तेरे लिए नए कपड़े, नई किताबे, तुम्हारी नई घड़ी, तुम्हारे जुटे, चप्पल, तुम्हारी पार्टी, तुम्हारे लिए नया फ़ोन, नया लैपटॉप, तुम्हारी ज़िद्द की वजह से मेरे मना करने के बावजूद भी तेरे पापा, जो तुम माँगो सब दिला दिया करते थे, और आज उनकी ये हालत के ज़िम्मेदार भी तुम ही हो, और तुम्हारी वजह से ही आज मुझे मेरे गहने और ये घर दोनों गिरवी रखना होगा, तभी तुम्हारे पापा का ऑपरेशन होगा… मगर तू आज भी किसी बात की चिंता मत करना, तुझे जो चाहिए वो तुझे मिल जाएगा, तू क्यूँ  फिक्र करता है, तू जा अपनी पार्टी enjoy  कर।” (माँ ने अपने गहने और घर दोनों गिरवी रख दिया। तब जाके पापा का ऑपरेशन हुआ, मैं उसी दिन पापा से मिलने अस्पताल गया, और उन्होंने मेरे सिर पे हाथ रखा और सिर्फ इतना ही कहा की ) 

     ” तू फिक्र मत करना, सब ठीक हो जाएगा, में ठीक हो जाऊँगा, फिर में तेरी माँ के गहने और घर दोनों जो गिरवी रखे है, छुड़ा लाऊंँगा।” ( पापा की ये बात सुनकर मेरी आँखों में आँसु आ गए और मैंने अपने पापा से अपनी बेवकूफी की  माफ़ी मांँगी )

 

     मैंने पापा से कहा, की “आप ऐसे मत बोलो, अब आपको कुछ करने की ज़रुरत नहीं है, मैं हूँ ना, अब काम करने की आपकी नहीं मेरी बारी हैं, आपने अब तक बहुत कर लिया मेरे लिए, फ़िक्र मत करो पापा। अब में कुछ ना कुछ करके माँ के गहने और अपना घर दोनों छुड़ा लाऊँगा।” (मैं रोते हुए पापा का आशीर्वाद लेके वहाँ से निकल गया, उस दिन पहली बार पापा के आँखों में ख़ुशी के आँसु आ गए। )

 

    (मैंने पापा को बोल तो दिया की )

    मैं सब ढीक कर दूँगा लेकिन मेरी समझ में कुछ भी नहीं आ रहा था, की” क्या करूँ, कैसे करू ?” मैं बहोत परेशान था, क्यूँकि कभी इसके बारे में सोचा ही नहीं था, मैं नौकरी की तलाश में निकल पड़ा। मेरे पापा के दोस्त ने मुझे एक जॉब दिला दी, मगर उसमें भी कुछ ख़ास पैसा नहीं मिलता था, तब मैंने पार्ट टाइम जॉब भी शुरू कर दी… रात दिन पैसे जुटाने में लग गया, अब मुझे पता चला की पैसो की अहमियत क्या होती है, पापा के बिना कुछ समझाए मैं सारी बात समझ गया और फिर पापा की दिलाई हुई वो सारी किमती चीज़ें भी बेच डाली जो अब मेरे कुछ काम की नहीं थी। मैंने अपनी कमाई सीधे जाकर अपने पापा के हाथों में रख दी। उस दिन पापा ने मेरे सिर पे हाथ रखकर माँ को सुनाते हुए कहा की)

 

    ” देखो, आज मेरा बेटा सचमे बड़ा हो गया है।” और मुझे तुमपे बहुत गर्व भी है की तू मेरा बेटा है, ( और हम दोनों एक दूसरे के गले मिलकर रोने लगे)

    पापा ने कहा, की ” बेटा, कभी हमे हमारे ऊपर के लोगो को नहीं देखना चाहिए की उनके पास क्या है ? हमे अक्सर यही देखना चाहिए की हमसे जो निचे के लोग है, उनसे तो हम बेहतर ही है, जो है जितना है उसी में खुश रहना चाहिए, ना की जो नहीं है उसी के पीछे भाग के वक़्त और खुशियाँ बर्बाद करनी चाहिए। ) ( धीरे धीरे करके मैंने अपनी माँ के गहने और हमारा घर दोनों जो गिरवी रखे थे वो छुड़ा लिया। आज मेरे भी बच्चे है उनको भी में यही बात सिखाता हूँ जो मेरे पापा ने सिखाई थी मुझे।)

 

     तो दोस्तों, हमारे parents को हम से और कुछ नहीं चाहिए, हमारा अच्छा इंसान बनना ही हमारी  उनके लिए बड़ी गिफ्ट है, कयुँकि एक अच्छा़ इंसान और संस्कारी बेटा ही अपने माँ-बाप का सहारा बनके उनके साथ रेहता है । जैसे हमारे माँ-बाप ने  बिना किसी स्वाथॅ के हमारी जिम्मेदारी उठाई, वेसे ही हमें उनके बुढा़पे की लाठी बनना है।

 

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