भ्रम…. घर की मालकिन हो तुम…..!! – भाविनी केतन उपाध्याय 

नए घर की नेम प्लेट पर अपना नाम देखकर खुशी से झूम उठी गरिमा…. पर ये खुशी चंद सैकड़ों तक ही सीमित रही…. जैसे ही गरिमा सपनों की पंखों को बंद कर वास्तविकता की धरातल पर उसने क़दम रखा उसके सपने चूर चूर हो गए। आंखों में आसूं लिए अपने नाम पर हाथ फेरते हुए ना चाहते हुए भी गरिमा अपने भूतकाल में चली गई।

हर वक्त हर बार उसे यानिकि गरिमा को अहसास दिलाया जाता कि इस घर की मालकिन हो तुम…!! परंतु एक छोटी से छोटी चीज भी इधर से उधर हों जाए तो पतिदेव मनीष के साथ साथ सासूमां रमा जी की भी सौ बातें सुनने को मिलती। वो अपनी मर्जी से घर के लिए एक चम्मच तक खरीद नहीं सकती है फिर भी सुनने को मिलता की घर की मालकिन हो तुम…!!

गरिमा को बिल्कुल याद है शादी के शुरुआती दौर में ही    अपने मायके से आई हुई क्रोकरी में मनीष के दोस्तों को खाना परोसा था ,तब मनीष ने सब के सामने उसका अपमान करते हुए कहा था कि,” घर की मालकिन हो तुम …!! और तुम्हें पता नहीं है कि मुझे किस तरह की क्रोकरी पसंद है ? ऐसी घटिया हरकत करते हुए तुम ने एक बार भी मेरे स्टेटस के बारे में सोचा नहीं ? अभी के अभी क्रोकरी को बदलो फिर हम खाना खाएंगे…”  तब गरिमा,मनीष भरी हुई आंखों से उसे देखते ही रह गई…..

सब के सामने तमाशा ना हो इसलिए अपमान के घूंट पीकर खून के आसूं रोते हुए चुप सी हो गई। तभी से लेकर आज तक उसने कई दफा सुने होंगे कि घर की मालकिन हो तुम…!!

मनीष ने आकर कहा,” खुश हो अपने नए घर की मालकिन बन कर ?” 

” आज तक मुझे आप ने भ्रम में ही रखा है,यह कहते हुए कि घर की मालकिन हो तुम…!! पर सच बताइए मैं कौन से घर की मालकिन हूॅं ? क्या घर पर नेम प्लेट लग जाने से मैं सचमुच में इस नए घर की मालकिन गई ? जब घर में मेरी मर्जी और मेरी पसंद का कुछ हैं ही नहीं तो कहां से हूॅं मैं घर की मालकिन ? जब सबकुछ मेरी मर्जी और पसंद से होगा और हर छोटी बड़ी चीज़ या बात में मैं खुल कर अपनी राय दें सकूंगी तब बनूंगी मैं सचमुच की घर की मालकिन ” कहते हुए झटके से गरिमा ने घर पर चिपकाई गई नेम प्लेट को उखाड़ दिया। 

गरिमा का यह रुप देखकर मनीष चुप हो गया क्योंकि उसे भी गरिमा की बातों में सच्चाई नजर आ रही है…. थोड़ी देर की चुपकिदी के बाद मनीष ने गरिमा के हाथों में से नेम प्लेट लेकर कहा,” मुझे माफ़ कर दो, मैं तुम्हें कभी भी समझ ही नहीं पाया। घर की मालकिन तो बताता हूॅं पर घर के सारे हक, अधिकार मैंने अपने पास ही रखा ।‌ पर अब आगे से ऐसा नहीं होगा , घर पर अब सिर्फ और सिर्फ तुम्हारा ही हक, अधिकार होगा और नेम प्लेट पर भी…!!

#अन्याय 

स्वरचित और मौलिक रचना ©®

धन्यवाद

भाविनी केतन उपाध्याय 

 

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!