भैरवी (भाग 4) – अंशु श्री सक्सेना : Moral Stories in Hindi

“पर मैं तो तुझे ज़िन्दगी भर नहीं भूलूँगा, ब्याह करूँगा तो सिर्फ़ तुझसे”

मल्हार ने अपनी हथेलियों में उसका चेहरा लेते हुए कहा था.

“चल झूठे” 

कहते हुए भैरवी ने शरारत से अपना मुँह बिचकाया था और फिर न जाने क्या सोचकर उसने उचकते हुए मल्हार के कपोलों पर अपने प्रेम की नन्ही सी मुहर लगा दी थी. उस समय डूबता सूरज जाते जाते दो पल को ठिठक गया था, साँझ अधिक सिन्दूरी हो उठी थी और वक्त अपनी साँसें रोककर थम गया था.

“क्या सोच रही हैं मैडम? आपकी चाय ठंडी हो रही है”

मोहना ने फिर उसे वर्तमान के कठोर धरातल पर ला पटका था, जहाँ न तो मोगरे से महकते बचपन की सुगंध थी और न ही गुलाब से महकते कैशोर्य की मादकता.

घड़ी की सुइयों के साथ समय अगले दिन में प्रवेश कर चुका था. माँ सुबह सुबह ही एयरपोर्ट के लिए निकल गईं थीं. दिन में मंत्री महोदय के साथ मीटिंग काफ़ी अच्छी रही थी. मंत्री जी भैरवी के काम करने के तरीक़े से बहुत प्रभावित थे. वैसे भी लखनऊ जैसे शहर का ज़िलाधिकारी होना कोई मामूली बात नहीं थी, जिसमें हर दिन उसका अलग अलग पार्टियों के नेताओं से आमना-सामना होता रहता था. सभी से अच्छे सम्बन्ध बनाकर रखना भैरवी को भली भाँति आता था.

दिन भर रह-रह कर भैरवी को मल्हार का ख़याल आता रहा. जबकि उसे यह भी ठीक तरीक़े से पता नहीं था कि यह वही “मल्हार वेद” है अथवा नहीं. उसके मन में मल्हार के लिए कोई बेचैनी या तड़प नहीं थी, बस एक उत्सुकता भर थी कि,

“अब वह न जाने कैसा दिखता होगा? उसने विवाह कर लिया होगा तो उसकी पत्नी भी साथ आई होगी…न जाने उसके परिवार में कौन-कौन होगा?” 

आर्ट गैलरी के उद्घाटन का कार्यक्रम समाप्त होते होते शाम के छ: बज गये थे. मल्हार का कार्यक्रम आरम्भ होने में अभी भी एक घंटा शेष था इसलिए भैरवी ने ड्राइवर से अपनी सरकारी गाड़ी घर की ओर मोड़ लेने के लिए कहा.

घर पहुँच कर उसने हल्के बसंती रंग की हरे बॉर्डर वाली अपनी मनपसंद साड़ी निकाली.

फिर अचानक ही नन्हा सा मल्हार टपक पड़ा,

“तू यह पीले रंग की फ़्रॉक में कितनी फुतरी लगती है…यह रंग बहुत जँचता है तुझपे”

“हाँ, मालूम है मुझे, माँ कहती है कि साँवली रंगत पर हल्के रंग ही फबते हैं. भगवान जी ने मुझे साँवला रंग क्यों दिया मल्हार? मैं सोनी जैसी गोरी चिट्टी क्यों नहीं”

उस समय भैरवी ने यह मासूमियत भरा प्रश्न किया था, वह नहीं जानती थी कि एक दिन यह साँवला रंग ही उसकी ज़िन्दगी बदल देगा.

ऐसा नहीं था कि अब भैरवी के जीवन में कोई कमी थी. सब कुछ तो था उसके पास…नाम, पैसा, इज़्ज़त, शोहरत…बस नहीं था तो एक अपना कहने वाला परिवार. उसके भाई बहन और यहाँ तक कि माँ को भी बस उसके पैसों और शोहरत से लगाव था, इससे अधिक कुछ नहीं. उसके भतीजे भतीजियाँ भी रोज़ अपनी फ़रमाइशों की फ़ेहरिस्त उसके पास भेजा करते,

“बुआ मुझे बैटरी वाली डॉल    चाहिए…या…बुआ मुझे लाइट वाली साइकिल”

वह जब भी अपनी सहेलियों और हमउम्र औरतों को अपने पति और बच्चों के साथ देखती तो उसके कलेजे में एक हूक सी उठती. फिर वह सब कुछ भूल कर अपने काम में जुट जाती.

जब भैरवी, मल्हार के कार्यक्रम वाले आयोजन स्थल पर पहुँची तो हॉल खचाखच भर चुका था. भीड़ देख कर भैरवी को एक सुखद आश्चर्य भी हुआ कि आज पॉप और जैज़ संगीत के ज़माने में भी लोग लोकसंगीत को इतना पसंद करते हैं. आयोजकों ने आगे बढ़कर भैरवी का स्वागत किया और उसे स्टेज के सामने सबसे आगे वाली क़तार में ले जाकर बिठा दिया.

भैरवी की नज़रें स्टेज पर टिक गईं. स्टेज के बीचोंबीच पीले सिल्क के कुर्ते और सफ़ेद पायजामे में मल्हार खड़ा था. वैसी ही पतली मूँछें और क़रीने से कढ़े हुए बाल. हाँ, उसके भी बालों में चाँदी ने घर बना लिया था. उम्र के साथ मल्हार का गोरा रंग और भी निखर आया था.

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