भाई हूँ तेरा ( भाग 2):  विभा गुप्ता  : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi : पत्र पढ़कर राजेश्वरी तो बहुत रोईं, नवल किशोर जी भी दुखी थे कि न जाने बेटा अकेले-अकेले कहाँ भटकेगा।वे रोज उसकी कुशलता के लिए प्रार्थना करते।

    हाथ में बैग लिये राघव सोचता चला जा रहा था कि आगे और कौन-कौन-सी मुसीबतें आएँगी…वह कैसे उनका सामना करेगा.. कि अचानक वह एक कार से टकराकर बेहोश हो गया।ड्राइवर ने उसके मुँह पर पानी के छींटे दिये।होश आया तो वह उठ खड़ा हुआ।कार के अंदर टेक्सटाइल मिल के मालिक श्री दीन दयाल जी बैठे हुए थे।राघव का चेहरा देखकर ही वो उसकी परेशानी समझ गये और उसे अपने साथ घर ले आये।

       दीनदयाल जी ने राघव को अपनी मिल में सुपरवाइजर की नौकरी दे दी और रहने के लिये अपने आउटहाउस में जगह भी दे दी।राघव मेहनती और ईमानदार था।दीन दयाल जी की सलाह मानकर वह नौकरी के साथ-साथ टेक्सटाइल में डिप्लोमा भी करने लगा।

      महेश की काली करतूतें सामने आई तो नवल किशोर जी ने उसे बाहर का रास्ता दिखा दिया।जब नवल किशोर जी अस्वस्थ रहने लगे तब प्रशांत ने दुकान पूरी तरह से संभाल लिया।

       महीने भर बाद राघव आउटहाउस छोड़कर किराये के एक कमरे में शिफ़्ट हो गया।डिप्लोमा की डिग्री मिलते ही उसे प्रिंटिंग डिपार्टमेंट का इंचार्ज बना दिया।कंपनी की ओर से उसे रहने के लिये दो कमरे का एक फ्लैट भी मिल गया,तब उसने फ़ोन करके पिता को अपनी कुशलता का समाचार दिया।राजेश्वरी जी तो बेटे की आवाज़ सुनकर  रोने ही लगी, तब माँ को ढाढ़स बँधाते हुए वह बोला कि परेशान मत होइये… मैं आप सबसे मिलने आता रहूँगा।

     एक दिन किसी काम के सिलसिले में राघव नवल जी के घर गया था।वहीं पर उसकी मुलाकात स्नेहा से हुई जो नवल किशोर जी की इकलौती बेटी थी।आकर्षक व्यक्तित्व के धनी राघव को स्नेहा पहली नज़र में ही पसंद करने लगी थी।स्नेहा की माँ जब दीन दयाल जी को बेटी की पसंद के बारे में बताया वे बहुत खुश हुए और एक शुभ-मुहूर्त में राघव और स्नेहा का विवाह हो गया।

      एक ही शहर में रहते हुए बेटे से अलग रहने का दुख नवल किशोर जी के लिये असहनीय हो गया था।उन्होंने बिस्तर पकड़ लिया।राघव अपनी पत्नी के साथ जब मिलने गया तब नवल किशोर जी ने हाथ के इशारे से दोनों को आशीर्वाद दिया।वे राघव से कुछ कहना चाहते थे लेकिन कह नहीं पा रहें थें।तब राघव ने उनका हाथ अपने हाथ में लेकर कहा,” पापा…,चिंता न करें…मैं हमेशा…।” राघव की बात अधूरी रह गई क्योंकि नवल जी की आँखें हमेशा के लिये बंद हो गई थी।उसने राजेश्वरी जी आश्वासन दिया कि मैं घर से दूर हूँ लेकिन आपलोगों से नहीं।

        राजेश्वरी जी ने अपने परिचित की बेटी सुनंदा के साथ प्रशांत का विवाह करा दिया।समय अपनी गति से आगे बढ़ता गया।राघव एक बेटे और प्रशांत एक बेटी का पिता बन गया।दोनों के बच्चे बड़े होने लगे और उनका व्यवसाय भी तरक्की करने लगा।

          राघव का बेटा आयुष एमबीए करने के लिये कनाडा चला गया।प्रशांत की बेटी पायल बीए के अंतिम वर्ष में थी। ग्रेजुएशन पूरा होते ही बेटी के हाथ पीले करके सुनंदा एक ज़िम्मेदारी से मुक्त होना चाहती थी,राजेश्वरी की भी यही चाहती थी कि आँखें बंद होने से पहले पोती का विवाह देख ले।प्रशांत अपनी तरफ़ से तैयारी कर भी रहा था लेकिन होनी-अनहोनी पर तो किसी का वश नहीं होता और न ही विपत्ति के आने की हमें आहट सुनाई देती है।

           दो महीने पहले प्रशांत का एक क्लाइंट से मन-मुटाव हो गया था।क्लाइंट दबंग प्रवृत्ति का था।उसने गुस्से में आकर प्रशांत के सभी क्लाइंट को भड़का दिया जिसके कारण प्रशांत के माल का सप्लाई बंद हो गया।समय पर डिलीवरी न होने के कारण ग्राहकों ने अपने पैसे वापस माँगने शुरु कर दिये।उस पर तो जैसे मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा।उसने किसी तरह से ग्राहकों के पैसे तो वापस कर दिये लेकिन अब चिंता थी कि बेटी की शादी कैसे होगी।

       शाम की चाय पीते हुए प्रशांत दुखी स्वर में पत्नी से कहने लगा,” सुनंदा….पायल के विवाह के दिन नजदीक आ रहें हैं।कपड़े-जेवर की व्यवस्था तो मैं कैसे भी कर लूँगा लेकिन समधी जी से किया गया वादा कैसे पूरा होगा…कुछ समझ नहीं आ रहा है कि इस मुसीबत की घड़ी में कौन मेरी मदद करेगा…।”

    सुनंदा बोली,” चिंता क्यों करते हैं…आपके मित्र पराग भाई ने तो कहा ही है कि शाम तक इंतज़ाम हो जाएगा।”

  ” फिर भी …।”

    तभी पराग भागा-भागा आया और प्रशांत के हाथ में रुपयों का एक बंडल थमाते हुए बोला,” प्रशांत….ये राघव भाई हैं।वक्त-बेवक्त इन्होंने हमेशा मेरी मदद की है।कल जब मैंने राघव भाई को तुम्हारे बारे में बताया तो कहने लगे कि मुसीबत के समय अपने ही तो काम आते हैं।”

 राघव को देखते ही प्रशांत के मुँह से निकल पड़ा,” आप..!”

       पराग ने आश्चर्य-से पूछा, ” तुम इन्हें जानते हो प्रशांत!”

   ” हाँ…ये मेरे बड़े भाई हैं।” कहते हुए वह राघव के पैरों पर गिरकर रोने लगा।रोते-रोते बोला,” भाई….मैंने आपके साथ कितना बुरा किया…आपको घर से बेघर कर दिया…मेरी नासमझी के कारण आपको कितनी ठोकरें खानी पड़ी होगी, फिर भी आप मेरी मदद करने के लिये आये….मुझे माफ़ कर दीजिये…।” हाथ जोड़कर प्रशांत फूट-फूटकर रोने लगा।

      राघव ने अपने छोटे भाई के आँसू पोंछे और उसे गले से लगाते हुए बोला,” भाई हूँ तेरा….इस मुसीबत की घड़ी में अकेले तुझे कैसे छोड़ देता मेरे भाई….,पापा को मैंने वचन दिया था कि सुख में हम बेशक अलग रहें लेकिन दुख में मैं हमेशा प्रशांत के साथ खड़ा रहूँगा।” 

   ” भाई…मैंने आपको गलत समझा..मुझे माफ़ कर दीजिये…।लेकिन एक बात समझ नहीं आई कि आप पराग को कैसे…।”

    हँसते हुए राघव बोला,” बुद्धु…तेरे से अलग ज़रूर रहता था परन्तु तेरी पूरी खबर भी रखता था।पायल की पढ़ाई और उसकी शादी पक्की होने की जानकारी मुझे थी।फिर मेरे ससुर जी बीमार हो गये तो…।पराग का बड़ा भाई अनुराग मेरे ही मिल में काम करता है।उसने ही बताया कि….।”

    ” मेरा राम आ गया…।” कहते हुए राजेश्वरी जी ने राघव को अपने सीने-से लगा लिया।दोनों की आँखें जल बरसा रही थी जिसमें बिछोह का दुख था तो थोड़ी शिकायतें भी थी।राघव बोला,” माँ…आपने मुझे पराया समझा…तभी अपनी परेशानी को मुझसे साझा नहीं किया।हमेशा कहती रही कि सब ठीक है…।”

  ” कैसे कहती मेरे लाल…समधी जी से मदद लेना तो उचित नहीं होता…।”

    तभी दीन दयाल जी स्नेहा के साथ आये और बोले,” राजेश्वरी जी…राघव तो बहुत दिनों से पायल के विवाह की तैयारी कर रहा था।मैंने तो कहा भी कि सबकुछ तो तुम्हारा ही है लेकिन आपके खुद्दार बेटे ने मेरी एक न सुनी और कंपनी से लोन उठा लिया।आप धन्य हैं जो अपने बच्चों को इतने अच्छे संस्कार दिये।”

         घर का माहोल अब बदल चुका था।कुछ देर पहले सबके चेहरे पर चिंता-उदासी थी, अभी उनके चेहरे पर प्रसन्नता और सुकून के भाव थे।स्नेहा भी सुनंदा और पायल से मिलकर बहुत खुश थी।तभी राघव के मोबाइल पर कैटरिंग वाले का फ़ोन आया और फिर सभी पायल के विवाह की तैयारी में जुट गये।

         विदाई से पहले राजेश्वरी जी पायल और अपने दोनों बेटे-बहू के साथ नवल किशोर जी की तस्वीर के सामने खड़ी होकर बोली,” देख रहें हैं…आपके दोनों बेटे अपने परिवार के साथ एक ही छत के नीचे खड़े हैं।आज आपकी इच्छा पूर्ण हो गई।अब सुख हो या दुख…दोनों हमेशा साथ रहेंगे।अपनी पोती को आशीर्वाद दीजिये कि वह भी अपनी गृहस्थी में खुश रहे।” 

       अपने परिवार को फिर से एक साथ देखकर नवल किशोर जी की आत्मा भी संतुष्ट हो गई थी।

                                     विभा गुप्ता 

# मुसीबत                         स्वरचित 

         हर किसी के जीवन में मुसीबत की घड़ी आती है,हमें उससे घबराना नहीं चाहिए।ईश्वर कोई न कोई मददगार अवश्य भेज देता है जैसे राघव को दीन दयाल जी मिल गये और प्रशांत को उसका भाई राघव।

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