बेमिसाल मित्र –  लतिका श्रीवास्तव

   ….दोस्ती तो सुदामा और कृष्ण की थी ..अविनाश हमेशा अपने दोस्त अमित से कृष्ण सुदामा की दोस्ती की कहानी मनोयोग से सुनाते हुए कहा करता था…..बेमिसाल अनुपम और आत्मिक…..और सांसारिक स्वार्थो से परे…..हम दोनों की भी वैसी ही है….बहुत गर्व से कई बार कहा उसका ये वाक्य अमित के  दिमाग में कौंध रहा था…..

……………आज अपने परम सखा मित्र अविनाश ,माननीय जिला प्रभारी मंत्री के राजसी वैभवयुक्त चैंबर के बाहर तीन घंटे से प्रतीक्षा रत अमित बीती यादों में खोया था…बचपन से बेपरवाह उन्मुक्त तेज तर्रार धनाढ्य परिवार का अविनाश पढ़ाई के साथ साथ सभी गतिविधियों में सक्रिय रहता था जबकि अमित सिर्फ पढ़ाई और अपने माता पिता की देखभाल में….दोनो की दोस्ती मशहूर थी स्कूल में भी फिर कॉलेज में भी।

………अविनाश ने उसके पूछने पर बताया था

बचपन में तो सुदामा ही कृष्ण का ख्याल रखा करते थे….गुरु सांदीपनी के आश्रम में जहां गरीब अमीर छोटे बड़े के विभेदों से परे ज्ञान का खजाना निर्बाध निरंतर लुटाया जाता था वहीं पर दोनों की दोस्ती ने नए पड़ाव पार किए ….एक दिन जंगल में लकड़ियां लाने के लिए जाते समय खाने के लिए गुरु माता द्वारा दिए गए चने सुदामा ने कृष्ण को नहीं दिए थे और अकेले ही दोनों के हिस्से के चने

खा लिए थे …कृष्ण के बहुत मांगने पर भी  गुरु माता ने कुछ भी नही दिया है ……  ये झूठ भी बोल दिया था….. कर्मों की गति और विधि का विधान …..अविनाश बताते हुए थोड़ा रुका तो अमित ने उत्सुकता जाहिर की थी…..इसमें क्या कर्मों की गति!!सुदामा को ज्यादा भूख लगी होगी तो उन्होंने खा लिए …दोस्ती में तो ये सब चलता है

हां दोस्ती में सब चलता है लेकिन यहां प्रश्न गुरुमाता के सुदामा पर विश्वास का था अविनाश ने बताया था… जिसके आधार पर उन्होंने कृष्ण के हिस्से के चने भी सुदामा की जिम्मेदारी पर दिए थे…..गुरुमाता द्वारा सौंपी गई इस जिम्मेदारी का सुदामा ने निर्वहन नहीं किया और ठंड और भूख से पीड़ित अपने मित्र कृष्ण के मांगने पर भी उसकी सहायता नहीं की झूठ भी बोला और उस हिस्से को भी खा लिया जिस पर सुदामा का कोई अधिकार ही नहीं था…..सुदामा इस बात से बिलकुल अनजान थे कि कृष्ण सब जानते थे समझ रहे थे फिर भी जाहिर नहीं कर रहे थे ….सुदामा अनजाने में अपनी आने वाली  जिंदगी का एक हिस्सा अंधकार मय कर रहे थे…जिसे उनके परम मित्र कृष्ण उस समय चाह के भी रोक नहीं पाए थे।



आने वाली ज़िंदगी में ऐसा क्या हुआ सुदामा के साथ…अमित की उत्सुकता बढ़ चली थी!

सुदामा की आने वाली ज़िंदगी अत्यधिक निर्धनता में बीत रही थी और कृष्ण की अत्यधिक राजसी वैभव में…..एक दिन सुदामा की पत्नी ने उन्हें उनके मित्र कृष्ण की याद दिलाते हुए मित्रता का हवाला दिया और राजा कृष्ण से घोर निर्धनता से उबारने का रास्ता दिखाने हेतु उनके पास जाने को सुदामा को विवश कर दिया……..

 

……..समय का पहिया घूमता रहा ..अमित ने कई प्रतियोगी परीक्षाएं उत्तीर्ण की चयनित भी हुआ परंतु अपने अक्षम माता पिता की देखभाल की जिम्मेदारी ने उसे उसी पैतृक गांव में ही खेती और शिक्षकीय कार्य में बांध दिया था…. उसने सामर्थ्य से बढ़कर अपने पुत्र को उच्च शिक्षा दिलाई और आज वो डॉक्टर बन गया था ..परंतु अमित की दिली अभिलाषा अपने पुत्र को उसी गांव में ही सर्व सुविधायुक्त हॉस्पिटल खोलकर गांववालो को अच्छी चिकित्सा  उपलब्ध करवाने की थी…..

इसीलिए बहुत संकोच से आज वो अपने बचपन के परम मित्र जो अब उसी के जिले का प्रभारी मंत्री भी बन गया था के पास अंतिम प्रयास और अंतिम आस लेकर पूरी हिम्मत बटोर कर आया था ….बचपन से खुद्दार और अंतर्मुखी अमित को किसी के भी सामने हाथ फैलाना मंजूर नहीं था …..भले ही परम मित्र हो!!पर पुत्र गांव और प्रदूषित व्यवस्था की मजबूरी उसे आज यहां खींच लाई थी।

आवेदन का कागज उसकी जेब में मंत्री जी  की स्वीकृति मुहर की प्रतीक्षा कर रहा था…..!तीन घंटे केअसहनीय इंतजार ने उसके मित्र मिलन उछाह और आवेदन रूपी अंतिम कोशिश को मृतप्राय कर दिया था……!

बड़े बड़े दावे और बातें करना अलग बात है ….कृष्ण और सुदामा की बाते कहानी में ही अच्छी लगती हैं….. अमित सोच रहा था…!वरना तो जब सुदामा इसी तरह मजबूरी में राजा कृष्ण के पास सहायता के लिए गए थे तब द्वारकाधीश ने महारानी रुक्मणि  सहित नंगे पांव आकर मित्र सुदामा का स्वागत और सम्मान किया था!!!…


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और….आज का कृष्ण …अविनाश ……जिसने तीन घंटे से अपने मित्र को बिठा कर रखा है!!अब उसे अमित नामक मित्र याद भी नहीं होगा!!!मैं यहां क्यों आ गया!!कितनी बेइज्जती महसूस हो रही है!!!अमित बहुत निराश हो चुका था और वापिस जाने की सोच ही रहा था कि चिट में उसका नाम पुकारा गया….कुछ सोच कर अंतिम प्रयास मान कर वो चैंबर के अंदर गया ….क्या ठाट बाट थे उसके मित्र के!!!वो दंग रह गया देख कर ही….क्या बोलने आया था ….आवेदन लाया था ..सब भूल गया ….अविनाश ने हंसकर बस इतना ही कहा…अरे तुम अमित हो ना काफी बदल गए हो ..!कैसे हो !!कैसे आना हुआ!!”

कोई पुरानी दोस्ती की खुशबू नही …… कोई गहरी मित्रता का भाव नहीं….!!खुद्दार अमित और भी सहम कर अंतर्मुखी हो गया…”.बस ऐसे मिलने आ गया मैं… यहां आया था कुछ काम से तो सोचा तुमसे नहीं…. आपसे मिलता चलूं…”.पता नही जैसे तैसे इतना ही बोल कर वो वहां से अविनाश के रोकते रोकते भी भाग आया….!ना चाहते हुए भी अपना आवेदन किसी के समझाने पर ऑफिस में बाबू के पास जमा कर आया।

सुदामा भी तो कुछ नहीं मांग पाए थे ….अमित को याद आ गया।

दुविधाओं,चिंताओं और ग्लानि से व्यथित अमित दूसरे दिन अत्यधिक क्लांत हृदय से सिर झुकाए अपने गांव पहुंचा और  बुझे मन से चुपचाप अपने घर में प्रविष्ट हुआ….तभी उसका पुत्र बहुत उत्साह से उसके पास आकर बोला ….अरे वाह पापा आपके मित्र तो वाकई सच्चे मित्र हैं….ये देखिए मेरा इसी गांव का पोस्टिंग ऑर्डर और साथ ही सर्व सुविधायुक्त हॉस्पिटल खोलने की मंजूरी वाला सरकारी आदेश अभी फैक्स से आ गया है……!

सुदामा तब भी चुप था…. अनजान था…..सुदामा,अमित आज भी चुप था अनजान था…!कृष्ण तब भी सब जानते थे अपने दोस्त के बारे में  .बिना मांगे अपने दोस्त की खुद्दारी का सम्मान रखना कृष्ण तब भी जानते थे…कृष्ण अविनाश अब भी  जानते हैं…।

अमित अपने दोस्त की दोस्ती के प्रति नतमस्तक था।

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