बाँसुरी – सेतु

नींद के मामले में वैसे तो मैं बदकिस्मत नही रहा हूँ. बिस्तर पर आते ही आंख लग जाया करती है.

पर उस दिन नींद के साथ आंखमिचौली कुछ ज्यादा ही हो रही थी.खिड़की से पर्दा हटा कर देखा तो सामने के मकानों में रात के वक्त जलने वाले बल्ब अभी जगमगा रहे थे.शर्दी की रात थी तो बाहर एकदम सन्नाटा पसरा था.पता नही क्यो आज मेरा मन इस काली अंधेरी रात में घर के बाहर की सड़क पर कुछ दूर तक चलते चले जाने को कर रहा था.माथे पर पास रखी मंकी कैप,पैरों में मौजे-चप्पल और बदन पर चादर लपेटकर बाहर निकल आया था.

धुंध भरी काली रात में ज्यादा दूर तक साफ साफ नही दिख रहा था.मैं पायजामे की जेबो में दोनों हाथ डालकर धीरे धीरे आगे बढ़ रहा था.

“अरे तुम इतनी रात ऐसी शर्दी में यहां क्या कर रही हो”

अचानक सामने पीली बॉर्डर वाली गुलाबी साड़ी,बालो में मोगरे का गजरा,हथेलियों में भर भर कर रंग बिरंगी चूड़ियां पहने मुस्कुराती बांसुरी को देख मैं आश्चर्य से भर गया था.

“बुद्धू कहि के…जानती थी तुम्हे तो कुछ याद रहने वाला नही है.इसलिए मैं ही आ गयी तुम्हे याद दिलाने.”

खिलखिलाते हुए बांसुरी ने मेहंदी लगी दोनों हथेलियां मेरे आगे कर दी थी.

” कुछ याद आया मिस्टर भुलक्कड़… नही आया न ? आज की ही सुबह विवाह के लिए लड़की देखने जाने से पूर्व तुम भगवान के दर्शन के लिए मंदिर आये थे.मंदिर की भीड़ भाड़ में मैं तुमसे टकरा गई थी और पहले तो मेरी पूजा की थाल में रखी दूध की लुटिया छिटककर तुम्हारे शर्ट पर जा गिरी थी और फिर चंदन और सिंदूर ने बाकी काम पूरा कर दिया था. तुम्हारे सारे कपड़े रंगीन हो गए थे.पहले मैं डर गई थी फिर तुम्हारे चेहरे का रंग देख जोर की हंसी आ गई थी बेचारे पंडितजी भागते भागते आये थे और तुम एकदम हताश होकर मंदिर की सीढ़ियों में बैठ गए थे.”



बांसुरी बोलती जा रही थी और मेरे आंखों के सामने वो सारा दृश्य एकदम जीवंत हो उठा था.

“पंडितजी अब मैं लड़की देखने क्या पहनकर जाऊंगा…एक ही तो नई ड्रेस थी मेरे पास”

मेरी मायूसी पर पंडितजी ने मेरे माथे पर हाथ रखते हुए कहा था,” शायद ईश्वर ने यही कन्या चुनी हो तुम्हारे लिए.”

पंडितजी के इस कथन पर हमदोनो भौचक रह गए थे पर मेरी माँ और बांसुरी के पीछे खड़े उसके भाई और पिता की आंखे जैसे चमक उठी थी.

जल्द ही मैं और बांसुरी विवाहबन्धन में बंध गए थे.बांसुरी ने जैसे दुनियाभर की खुशी मेरी झोली में डाल दी थी.दो साल तो दो दिन की तरह निकल गए थे.तभी एकदिन बाँसुरी ने पेट में दर्द की शिकायत की तो डॉक्टर ने सम्भावना जताई कि शायद घर मे नया मेहमान आने वाला है.

अब तो मैं खुद को दुनिया का सबसे अमीर इंसान महसूस करने लगा था.

पर जब मेडिकल रिपोर्ट्स आयी तो बांसुरी की आंतो में कैंसर के संकेत मिल रहे थे.बाँसुरी की गहन जांच हुई.पेट का कैंसर काफी दूर तक फैल चुका था.देखते ही देखते मुट्ठी की रेत की तरह बाँसुरी मेरे जीवन से फिसल चुकी थी. सबकुछ खत्म हो गया था.

मैंने बाँसुरी की हथेलियों को अपनी आंखों के पानी से भिंगो दिया था.उसकी मेहंदी मानो फिर से गीली हो गयी थी.हंसती खिलखिलाती बाँसुरी ने गीली हथेली को मेरे चादर में रगड़ कर उसे आज फिर रंगों से भर दिया था.ठीक पहली मुलाकात की तरह.

उजाला होने लगा था धुंध छंट गयी थी.मैं अपनी कल्पनाओं को अपनी चादर में लपेटे घर आकर अपनी रंग भरी चादर को देख रहा था.उसकी मेहंदी की खुश्बू को महसूस कर रहा था.

रंगों से शुरू हुआ मेरे जीवन का सफर कितनी जल्दी रंगहीन हो गया था.

पर आज के दिन हर साल वो जाने कब कहाँ से आकर मुझे रंगों में सरोबोर कर ही जाती है.

सेतु

गोरखपुर

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