बस इतना ही तो चाहिए…!!( भाग 3) – लतिका श्रीवास्तव: Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi : वो हमेशा सीधे पल्ले की साड़ी पहनती थीं और हमेशा सिर पर पल्ला रहता है ये बात आशी को अच्छी नहीं लगती थी वो चाहती थी मां उल्टे पल्ले की साड़ी सामान्य तरीके से पहने और ऐसे सिर ढक कर नहीं रखें…!

अकस्मात उनके दिमाग में वो घटना कौंध गई
केशव की नई शादी हुई थी नई बहू आशी बहुत सुंदर थी बहुत पढ़ी लिखी थी नौकरी वाली थी लेकिन उसे जींस शर्ट या कुछ अलग प्रकार के कपड़े ही पसंद थे …नीलिमा जी को ये बात बहुत अटपटी लगती थी उन्होंने केशव से कहा था कि जब तक आशी ससुराल में है या मेरे साथ कहीं आना जाना करेंगी साड़ी ही पहनेगी उसको समझा देना आखिर हमारी भी प्रतिष्ठा की बात है ऐसे उटपटांग ड्रेस मेरी बहू पहनेगी तो लोग क्या कहेंगे …..मुझे भी अच्छा नहीं लगेगा।

केशव ने जो भी समझाया हो लेकिन तब से आशी जब तक ससुराल में रही एक भी दिन जींस या पेंट नहीं पहनी उसने मेरे साथ जब भी कहीं गई साड़ी ही पहन कर गई।

नीलिमा जी के मन में हलचल सी मच गई थी….
जो उस समय मेरे मन की स्थिति थी वही आज आशि के मन की भी है
मेरे कहने और घर के रिवाज के अनुसार जब उस समय उसने मेरी बात मानी और खुशी खुशी मेरी इच्छा अनुसार खुद में थोड़ा सा बदलाव कर लिया.. क्योंकि वो रिश्तों की समझ रखती है…साड़ी पहनी वहां के अनुसार व्यवहार किया तो आज उसकी इच्छा उसके यहां के रिवाज के अनुसार मैं भी थोड़ा सा क्यों नही बदल सकती!!

आदतों में रहन सहन में थोड़ा सा बदलाव किसी की भावनाओं का सम्मान करना भी बन सकता है ..एक दूसरे की भावनाओ का छोटी छोटी इच्छाओं का आदर करना ही तो बेमतलब होते जा रहे रिश्तों को निखार देता है…..बस इतना ही तो चाहिए किसी भी रिश्ते को संवारने के लिए!!

अचानक दुख और अपमान की भावना तिरोहित हो गई थी उनके मन से।
तुरंत वो किचन में गईं बड़े उत्साह से थोड़ा पंजीरी का प्रसाद पंचामृत और मखाने चिरौंजी का पाग बनाया भोग लगाने को और अपने लिए चाय बनाई।
फिर अपने पसंद की एक साड़ी निकाली और मुस्कुराते हुए आज वर्षो के बाद उल्टे पल्ले में पहनी…. आइने में खुद को पहचान ही नहीं पा रहीं थीं कढ़ाईदार ब्लाउज था सिर पर साड़ी का पल्लू रखने के बजाय कंधे से लटका लिया उन्होंने….वास्तव में आज वह खुद अपने आपको पसंद कर रहीं थीं…!
अरे वाह मां नजर ना लग जाए आज आपको मेरी !!कितनी सुंदर दिख रही हो आप…..आशी की खुशी भरी तेज आवाज से नीलिमा जी चौंक उठीं …””अरे आज ऑफिस से इतनी जल्दी आ गए कहते हड़बड़ा कर आदत के अनुसार सिर पर पल्ला रखने लगी तभी आशी ने आकर हाथ पकड़ लिया..” हां मां ऑफिस में मन नहीं लगा….अरे अरे मां प्लीज मत करो ना देखो तो आप कित्ती प्यारी लग रही हो यही वाली मां मुझे चाहिए मैं बस यही तो चाहती थी मां!!
आशी ने उन्हें हुलसकर गले से लगा लिया था।
लगता है आज दोनो सास बहू रीमा के उत्सव की मुख्य अतिथि बनने वाली हैं केशव ने पीछे से आते हुए कहा जो महक सूंघता पहले किचेन में गया था और पाग का एक बड़ा सा टुकड़ा खाते हुए दोनों के मजे ले रहा था
अरे कृष्णा जूठा क्यों कर दिया तूने वो भोग बनाया था बेटा कान्हा के लिए नीलिमा जी आशी से छिटक कर अलग होते हुए बोल पड़ीं
हां तो आपका ये कान्हा ही तो भोग लगा रहा है मां…!केशव ने मां के पास आते हुए कहा।
तो लाओ मैं भी भोग लगा लूं आशी ने आधा उसके हाथ से छीनते हुए कहा
चलिए मां रीमा के घर के लिए ये पंजीरी है और हम लोग ढेर सारे फल मिठाई और मेवा भी ले आए है केशव बता रहे थे आप व्रत रहेंगी ही तो हमने भी लंच नहीं खाया आइए पहले हम सब कुछ फलाहार ले लेते हैं फिर आप मुझे भी अपने जैसी साड़ी पहना दीजिएगा फिर चलेंगे रीमा के घर।
हां भाई मुख्य अतिथि तो तुम्हीं लोग हो …..केशव ने फिर हंसते हुए चुटकी ली तो नीलिमा जी भी आशी के साथ हंस पड़ीं ….सोच रहीं थीं बस इतना ही चाहिए रहता है हर किसी को …!!

समाप्त

स्वरचित
लतिका श्रीवास्तव

 

1 thought on “बस इतना ही तो चाहिए…!!( भाग 3) – लतिका श्रीवास्तव: Moral Stories in Hindi”

  1. बहुत सुन्दर कहानी के माध्यम से रिश्तो की सच्चाई। हमेशा हम अगर एक ही पहलू से सोचेंगे वहीं टकराव होता है ।

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