बस अब और नहीं…  – संगीता त्रिपाठी

“तू इतनी देर से आ रही राधा वो भी दो दिन बाद,कभी तो समय पर आ जाया कर “कहते हुये गुस्से से मैंने राधा को देखा।” ये क्या तेरा चेहरा इतना सूजा क्यों हैं,ये कटे होंठ… क्या बात हैं राधा। “कुछ नहीं दीदी”..राधा ऑंखें चुराते बोली।”नहीं कोई बात तो हैं और तू इतनी देर कैसे कर दी, बिना बताये दो दिन गायब रही, मोबाइल पर कॉल किया था तो स्विच ऑफ़ आ रहा था “।

 

    बताती हूँ दीदी काम खत्म कर लू पहले, नहीं तू पहले बता फिर काम करना। दो कप चाय बना, एक कप राधा को थमा दूसरा कप ले मै वही बैठ गई। जानती हो दीदी, उस दिन तुम्हारे यहाँ से काम करके निकली तो रोड के दूसरी तरफ वाले बँगले में, अरे वही जो नये -नये किरायेदार आये, वो मैडम बोली मेरा सामान जमाने में एक -दो घंटे मदद कर दें मै अच्छे पैसे दूंगी।मै तैयार हो गई, मुनिया की नई किताब -कॉपी खरीदनी थी, तो मैंने सोचा कुछ पैसे आ जायेंगे तो अच्छा हैं। काम करते -करते कब अंधेरा हो गया पता नहीं चला। मैडम ने कहा रात हो गई हैं मै ड्राइवर से तुम्हे घर छुड़वा देती हूँ। जैसे ही मै घर पहुंची, मुनिया का बापू मुझ पर चिल्ला पड़ा- कहाँ से मुँह काला कर के आ रही हैं, किसकी गाड़ी से आई हैं गालियाँ देता मुझे मारने लगा। मेरे बार -बार सफाई देने पर भी वो मेरा विश्वास नहीं कर रहा था। बस अचानक मेरा आत्मसम्मान जाग उठा, माना मै घरों में झाड़ू -पोछा और बर्तन धोने का काम करती हूँ तो क्या मेरी इज्जत नहीं, जब मैंने कोई गलत काम किया ही नहीं तो बच्चों के सामने क्यों जलील होऊं,पत्नी होने का मतलब नहीं कि हर गलत बात को सहती रही, वो भी तब,जब बात मेरे चरित्र की हो, अरे पति -पत्नी में विश्वास नाम की कोई चीज होती हैं।बस फिर क्या था मैंने मुनिया के बापू का हाथ पकड़ लिया -खबरदार जो मुझ पर हाथ उठाया या मेरे चरित्र पर कुछ बोला, तोड़ दूंगी तुम्हारे हाथ, मुझे शेरनी बने देख वो उस समय तो चुप हो गया पर सुबह फिर गालियाँ देने लगा।मुझे लगा अब मै समझौता नहीं कर सकती, चुपचाप दूसरा कमरा ले, बच्चों के साथ आ गई। मुझमें अभी इतनी क्षमता हैं कि मै बच्चों की परवरिश अकेले कर सकूँ।

 

               मै सात घरों में काम कर घर चलाती हूँ अभी तक तो उसकी हर गलत बात को बर्दाश्त कर रही थी पति हैं, थोड़ा बहुत रूआब तो दिखायेगा,पर चरित्र पर लांछन मै नहीं सह पाई। राधिया क्या -क्या बोलती रही, मुझे कुछ नहीं सुनाई दिया, बस सब जगह आत्मसम्मान… आत्मसम्मान की पुकार गूंज रही थी। राधिया तो पढ़ी -लिखी नहीं थी पर उसे भी अपने आत्मसम्मान की चिन्ता थी, पर मै…



यानि संध्या तो पढ़ी -लिखी, एक अच्छे परिवार से ताल्लुक रखने वाली कामकाजी महिला हूँ, फिर भी आत्मसम्मान की परिभाषा नहीं समझ पाई। अनायास हाथ कलाई पर चला गया, जो कल ही बेरहमी से मोड़ा गया था। सर के उस भाग में जहाँ बेदर्दी से बाल खींचा गया था, माथे के किनारे उस गुमड़ में जिसे बालों की स्टाइल बना, मैंने खूबसूरती से छुपा रखा था, हर जगह पीड़ा तेजी से उभर आई, उस अपमान की जिसकी हक़दार मै नहीं थी ने दर्द की एक तेज लहर शरीर के हर भाग में उठा दी ।मै कराह उठी। “क्या हुआ दीदी “राधा ने घबरा कर पूछा।”कुछ नहीं रे, तेरी तकलीफ से मन भर आया “। कह मै वहाँ से उठ गई।दिल का दर्द तो मै होठों की हँसी में छुपा लेती। शरीर की चोट भी छुपाने में मै पारंगत हो गई, पर आखिर क्यों…??क्या गलती थी मेरी, क्या ऑफिस में देर हो जाने पर पुरुष सहयोगी का घर छोड़ देना,या किसी पुरुष से बात कर लेना,चरित्र हनन का माप -दंड हैं। क्या ये मेरी गलती हैं अगर मै किसी की सुरक्षा ले घर आई।तो मै चरित्र हीन हो गई।कितनी बार अभय देर से आये, कितनी बार उनकी महिला सहयोगी उनके साथ टूर पर जाती हैं,पर मैंने तो कभी शक नहीं किया। फिर मेरे लिये माप -दंड अलग क्यों..? क्यों मै चुपचाप उन अनदेखी गलतियों की सजा को सहती रही, जो मैंने नहीं किया..। क्या मै भीरू हूँ… नहीं, मै चुप हूँ तो अपने बच्चों के लिये, पर क्या तू परिधि को भी,बिना आत्मसम्मान के जीने की शिक्षा नहीं दे रही। मन का तर्क -वितर्क मुझे को विचलित कर रहा था। राधा तो काम करके चली गई पर आज मेरे आत्मसम्मान को चुनौती दे गई। कल की तकलीफ की वजह से मै ऑफिस नहीं जा पाई थी, आज अब कायरता की शाम हो गई, कल आत्मसम्मान की सुबह आने वाली हैं।

 

                          अभय के दोहरे चरित्र का अनावरण करना जरुरी हो गया। अब डट कर विरोध करना हैं,जो खुद अपने आत्मसम्मान की रक्षा नहीं करते, दूसरा भी उनका सम्मान नहीं करता। राधा ने सही किया।अभय का गुस्सा अभी उतरा नहीं था, रात दुबारा प्रसंग उठा उसने फिर हाथ उठाया ही था, एक पल को मै आँखों बंद कर ली, तभी बंद आँखों में राधा का अक्स कौध गया, चेहरे पर पड़ने से पहले मैंने मजबूती से उन हाथों को पकड़ कर मोड़ दिया। अभय को धक्का दे मै बाहर निकल आई। परिधि और अनंत के सहमे चेहरे देख मैंने दोनों को प्यार से आश्वासन दिया, अब डरने की जरूरत नहीं हैं। बच्चों के साथ उनके कमरे में आ दरवाजा बंद कर, आज एक अरसे बाद मै सुकून से सोई। कल मेरे लिये नया सूरज निकलने वाला हैं, जहाँ मेरे आत्मसम्मान को कुचलने वाला कोई नहीं होगा, और मै होने भी नहीं दूंगी, बस अब और नहीं….. अगली सुबह मै बच्चों के साथ अभय का घर छोड़ दिया।

#आत्मसम्मान 

 —संगीता त्रिपाठी

 

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