बहुत कर लिया बर्दाश्त  –  ज्योति आहूजा

आज सुधा अपनी जिंदगी का वह हिस्सा फिर से याद कर बैठी जिसमें  वह इतनी कमजोर और लाचार थी कि आज भी वह समा उसके जहन में कड़वी याद के रूप में उभर कर सामने अा गया।

“बात उन दिनों की है जब सुधा जीवन के उस मोड़ पर थी जब वह ना तो बच्ची थी ना ही पूर्णतया जवान। जीवन के 16 बसंत पूरे किए थे उसने अभी कुछ दिन पहले।

“जीवन काल का यह समय ऐसा होता है जब लड़की किशोरी होती है ।उसमे अनेक शारीरिक परिवर्तन अा चुके होते है। उसके स्वभाव में भी थोड़ा परिवर्तन अा रहा होता है।अपने में रहना,ज्यादा किसी से बात नहीं करना।अपने मन की बाते किसी से सांझा नहीं करना।और यदि स्वभाव अंतर्मुखी हो तो वह किशोर या किशोरी तो बिल्कुल ही अपने मन के भाव किसी से पूर्णतया स्पष्ट नहीं कर पाते।

“सुधा भी कुछ ऐसी ही थी।ज्यादा किसी से अपने मन की बात सांझा नहीं करती थी और थोड़ा सहमी सी अपने में ही रहती थी।

एक दिन सुधा जब स्कूल से घर लौटी तो उसकी मम्मी ने उसे अपने पास बुलाया और कहा “,बेटी सुधा! इधर आओ।

सुधा पास आकर बोली” हां मम्मी।बोलो।

तभी सुधा की मां शारदा जी अपने पास बैठे हुए व्यक्ति  का परिचय कराते हुए कहती है।”ये मेरे कजिन मामा का बेटा है ।किसी काम से पहली बार इस शहर में आया है। और थोड़े दिन हमारे पास ही रुकेगा।

“सुधा पहली बार अपने दूर के मामा को मिल रही थी।उसने  उन्हें नमस्ते किया।

इस पर शारदा जी का भाई अनिल कहता है” अरे ये तो बड़ी जल्दी इतनी बड़ी हो गई दीदी और कितनी सुंदर भी हो गई है ।

“जिस प्रकार से अनिल सुधा को देख रहा था वह कुछ अजीब था।पर ज्यादा ना तो शारदा जी ने नोटिस किया और ना सुधा ने।

“अगले दिन नाश्ते की मेज पर।



“सब लोग साथ बैठकर नाश्ता कर रहे थे। उस दिन रविवार की छुट्टी थी।तो सुधा का स्कूल भी नहीं था तो मां ने उसे भी साथ ही नाश्ता करने को कहा।

“खाते वक्त किसी ना किसी बहाने अनिल सुधा को गलत तरीके से छूने लगा।

“कभी प्लेट लेने के बहाने कभी सब्जी लेने के बहाने।बार बार उसे छूने लगता।जो कि सुधा को बिल्कुल अच्छा नहीं लग रहा था।

“लेकिन अंतर्मुखी स्वभाव की वजह से वह ना तो मां को बता  पाई ना ही पिता को।बस अंदर ही अंदर सहम सी गई।

“अब तो जितने दिन भी अनिल वहां रहा काम से वापिस आकर सुधा के आगे पीछे ही घूमता रहता।

“मां शारदा जी भी  यही सोचती कि मामा है भांजी पर तो लगाव होता ही है। पर उन्हें क्या पता था कि अनिल के क्या गलत इरादे हैं?

“सुधा को इन दिनों इस सब से अंदर ही अंदर उदासी हो रही थी।

“उसने मां को बताने की कोशिश की पर घबरा गई कि मां  कहीं गलत ना सोचे या उसकी बात पर विश्वास ही ना करे।

इन सब की वजह से अनिल की हिम्मत बढ़ गई थी और एक दिन तो अति तब हो गई जब उसने कमरे में आकर उसे गलत तरीके से चूम लिया। उस पर सुधा बहुत घबरा गई थी।और रोते रोते कमरे से बाहर निकल गई।

“ये बात उसके जहन में हमेशा के लिए घर कर गई।

“आज सुधा एक पत्नी है।बहुत अच्छा घर मिला है उसे।उसका पति भी उससे प्यार करता है।

“ससुराल में पति के साथ एक छोटी ननद जो उम्र में सुधा के पति नरेश से काफी छोटी थी। बस तीन लोग ही रहते है।



“आज जो हुआ वह आज से कई साल पहले सुधा के साथ घटित हुआ था।

“दरअसल तीन दिन पहले सुधा के  चाचा का बेटा साहिल  किसी कंपटीशन की तैयारी करने बहन के पास कुछ दिन रहने आया था जब तक उसे कोई ढ़ंग का पीजी नहीं मिल जाता।परंतु जैसे ही साहिल ने  जिस तरह से सुधा की ननद गरिमा को देखा था उसे अपना समय याद अा गया।लेकिन उसने उस वक्त कुछ नहीं कहा ।क्योंकि उसे लगा ये उसका वहम हो शायद।

“हद तो तब हुई जब बिल्कुल एसा ही गरिमा के साथ घटित हुआ जैसा आज से कुछ साल पहले सुधा

के साथ हुआ था और उसने रोते रोते अपनी भाभी को सारी बात बताई।क्योंकि वह फिर भी थोड़ा बहिर्मुखी स्वभाव की थी।उसने तुरंत भाभी को बताना उचित समझा।

“तब जो हुआ उसका अंदाजा खुद सुधा को भी नहीं था।

उसने छोटे भाई को पास बुलाया और जोरदार एक थप्पड़ जड़ दिया।और आग बबूला होकर उससे बोली”तेरी हिम्मत कैसे हुई मेरी बेटी को गलत तरीके से हाथ लगाने की।ये मेरी ननद नहीं बल्कि बेटी है।तुझे शर्म नहीं आई ये सब ओछी हरकत करते हुए।

ऐसा कहकर गुस्से में आगबबूला हुई सुधा ने उसे एक दो थप्पड़और  जड़ दिए ।और कहा अभी यहां से निकल जा।

“अब बर्दाश्त नहीं करूंगी।अब बर्दाश्त नहीं करूंगी।ये शब्द  सुधा  के मुंह से बार बार निकल रहे थे।जैसे वो ये कह रही हो कि काश ये सब हिम्मत मैं उस समय कर पाती जब ये सब उसके साथ हुआ था ।पर नहीं कर पाई थी।

“आज ये हिम्मत उसे कहां से मिली उसे नहीं पता ।पर बहुत जरूरत है ऐसी हिम्मत की ।नहीं तो न जाने मेरे और गरिमा जैसी लड़कियों को यह सब गलत सहना पड़ेगा।जो कि सहन करना अपराध है ।

“आज सुधा को अपनी हिम्मत पर फक्र महसूस हो रहा था।उसने जो किया बहुत अच्छा किया।

“उसके मन से एक ही आवाज अा रही थी।”एक लड़की की इज्जत के आगे 100रिश्ते कुर्बान।

दोस्तो ये कहानी आपको कैसी लगी।

दोस्तों इस कहानी का उद्देश्य सिर्फ यह बताना है कि यदि एक लड़की या स्त्री को कुछ भी इस तरह का गलत आभास लगे या उसके साथ हो रहा हो चाहे वह उसके रिश्तेदार हो या कोई बाहरी व्यक्ति।चुप्पी साधना इसका समाधान नहीं है।तुरंत हिम्मत जुटा कर गलत के खिलाफ़ आवाज उठानी  ही होगी।

और ये कदापि जरूरी नहीं कि सभी ऐसे होते है।परन्तु यदि जरा सा भी आभास हो तो उसे तुरंत  अवश्य रोके।

पढ़कर अपनी प्रतिक्रिया दे।

आपकी दोस्त।

ज्योति आहूजा।

 

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!