बहु का विश्वास – दीपा माथुर

अम्मा रिटायरमेंट के बाद बाबूजी चिड़चिड़े से हो गए है

पहले कितने हसमुख थे।

अम्मा  निक्कू के बालो में तेल लगाती हुई बोली ” अब पहले समय ऑफिस में कट जाता था।

अब सुबह सुबह सैर पर जाकर आ जाओ फिर दिनभर खटिया पर पड़े रहो।

कुछ भी हो दिव्या ( बहु) फर्क पड़ जाता है।

मैं तो बच्चो में छोटे मोटे काम में लग कर अपने आप को व्यस्त रख लेती हु।

पर तुम्हारे बाबू जी कमरे में अकेले पड़ जाते है ना।

तभी निक्कू बोली ” दादी तो दादा साहब हमारे साथ क्यों नही खेलते।”

दादी ने हल्के हाथो से सिर पर मारा और बोली ” तुम लोगो के हाथ से मोबाइल छूटे तो तुम्हे फुर्सत मिले अपने दादा साहब से बाते करने के लिए।

निक्कू हस दी और फिर बोली ” दादी साहब आप जल्दी से मेरी चोटी बना दो मैं भैया को लेकर दादा साहब के कमरे में जा रही हु।”

दादी के चोटी बनाते ही निक्कू अपने छोटे भाई वितान को लेकर दादा साहब के कमरे में चली गई।

दोनो भाई बहन दादा साहब के साथ खूब खेले उनके पलंग पर लेट गए और बोले ” दादा साहब कहानी सुनाओ ना।”




दादा साहब बोले ” कहानी तो कल सुनाऊंगा आज एक भजन सुनाता हु।”

बच्चे खुश होकर  बाहर आए और खेलते खेलते ही भजन गुनगुनाने लगे।

ये बात दिव्या को अच्छी लगी।

तुरंत दोनो के स्कूल बैग लेकर दादा साहब के कमरे गई।

पापा जी अब आज से आप ही दोनो का ध्यान रखेंगे

इन्होंने होम वर्क किया या नही।

लेसन लर्न है या नही..

अब आप इनका टाइम टेबल बना लीजिए ।

पहले तो बाबू जी हिचकिचाए पर दिव्या ने जिद्द कर उन्हे मना ही लिया।

बस फिर क्या था?

बाबू जी का चिड़चिड़ापन एक दम गायब हो गया ।

अब वे भी व्यस्त हो गए थे।

शाम को बच्चो में दौड़ का कंपीटिशन करवाते और अच्छी अच्छी कहानियां सुनाते।

उसके लिए लाइब्रेरी से बुक लाते और बच्चो के स्कूल टाइम में उसे पढ़ते ।

अब बाबूजी का समय भी पंख लगा कर उड़ने लगा था।

और बच्चो के हाथो से मोबाइल भी छूमंतर हो गया।

और बच्चो को खेलने के लिए साथी मिल गया।

अब तो बाबू जी सुबह सुबह मॉर्निंग वॉक से आते ही अपने पर्सनल काम करके तैयार रहते ।

ताकि बच्चे स्कूल से आए और वे उनके साथ का एक पल भी मिस ना कर पाए।

वास्तव में यदि घर के बुजुर्गो पर विश्वास कर के

बच्चो को शुरू से उनके पास जाने की रहने की आदत डाल दे तो आज डिजिटल महामारी से आसानी से छुटकारा मिल जाएगा।

पर उसके लिए हमे भी अपने घर के बुजुर्गो का ध्यान रखना ही पड़ेगा।

दीपा माथुर

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