बहू भी तो बेटी ही है – सुषमा यादव : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi : शादी होने के कुछ महीनों बाद मैं प्रिया को देख रही थी,वह अपने मायके आई थी। मैंने उसे देखा तो हैरान रह गई। शादी से पहले वाली ही प्रिया थी। शर्ट और पैंट पहने। शादी के कोई भी चिन्ह उसके शरीर में नहीं थे। ना मांग में सिंदूर ना हाथों में चूड़ियां।ना माथे पर बिंदी। लग ही नहीं रहा था कि वह शादीशुदा है।

मैंने हंसते हुए कहा, यह क्या? तुम्हारी तो शादी हो गई है। क्या तुम वहां भी ऐसे रहती हो।

प्रिया ने कहा, नमस्ते मौसी। आपने सही कहा। मैं वहां भी ऐसे ही रहतीं हूं।

मैंने उसे अपने घर बुलाया। उसने अपने ससुराल की बातें बताना शुरू किया तो मैं उसकी किस्मत पर नाज़ करने लगी।

प्रिया का मायका एक संयुक्त परिवार है। छः भाईयों में उसके पापा सबसे छोटे थे और इंजीनियर थे। प्रिया पढ़ने में बहुत होशियार थी, उससे घर में कोई काम नहीं करवाता था। खूबसूरत, नम्र व्यवहार मधुर वाणी हंसमुख स्वभाव के कारण सबकी चहेती थी। मम्मी पापा उस पर जान छिड़कते थे।  उसकी शादी एक बहुत बड़े घर में हुई। शादी के समय उसकी मां बहुत चिंता कर रही थी। मुझसे कहने लगी, दीदी,आपके इधर तो सास बहुत तेज तर्रार होतीं हैं। प्रिया को तो कुछ भी नहीं आता है, कैसे उसका गुजारा होगा।

लेकिन जब प्रिया ने अपनी सास के बारे में बताया तो मुझे सुखद आश्चर्य हुआ।

प्रिया शादी के दूसरे दिन सुबह जल्दी उठकर नहा-धोकर किसी तरह साड़ी पहन कर बाहर आई और रसोई में जाने लगी तो उसकी सास और बड़ी ननद ने कहा, तुम्हारी आज रस्मोरिवाज के अनुसार पहली रसोई है। हमें मालूम है कि पढ़ाई बाहर करने के कारण तुम्हें खाना वगैरह बनाना नहीं आता। उसकी साड़ी ठीक करते हुए ननद बोली,चलो प्रिया, रसोई में खड़ी रहो, मैं हलुआ,खीर बना देती हूं। सास ने कहा, बेटी,कल से तुम्हें जल्दी उठने की जरूरत नहीं है। कुछ दिन आराम से रहो, फिर तो गृहस्थी के चक्कर में फंसकर रह जाओगी।

और हां,जब सब मेहमान दो चार दिन में चलें जाएं तो तुम सलवार सूट और जो भी अपने मायके में पहनती थी वही सब यहां भी पहनो। मैंने अपनी बेटी को सब आजादी दे रखी है, उसके ससुराल वाले भी उस पर कोई पाबंदी नहीं लगाते। तुम भी मेरी बेटी जैसे रहो। वैसे हमारे घर के अंदर पुरुष जल्दी नहीं आते हैं इसलिए उनकी फिक्र करने की जरूरत नहीं है। कभी कोई बाहरी महिलाएं आ जाए तो सिर पर दुपट्टा डाल लेना।आखिर एक मां छोड़कर अपनी दूसरी बड़ी मां के पास ही तो आई हो। तुम्हें यहां घबराने की कोई जरूरत नहीं है।

तुम आराम से अपनी बाकी की पढ़ाई पूरी करो। मैंने खाना बनाने से लेकर हर काम करने के लिए दो मेड अतिरिक्त रख ली है।

हर मां चाहती है कि उसकी बेटी जैसे मायके में रहती है वैसे ही ससुराल में रहे। तो आज से यह घर भी तुम्हारा है।

तुम अपने मायके जैसे ही यहां भी रह सकती हो, जैसे पहले रहती थी। मुझे लोगों के कहने की कोई परवाह नहीं है।आज से मेरी दो दो बेटियां हैं।

आखिर बहू भी तो बेटी ही होती है।

अब सबको अपनी सोच बदलनी होगी, ताकि घर के सभी लोग एक-दूसरे की भावनाओं को समझते हुए एक आदर्श परिवार की तरह रहें।

प्रिया  खुश होकर सासू मां के चरण स्पर्श करने लगी तो उन्होंने उसे उठा कर गले लगा लिया, नहीं बेटा,पैर नहीं छूते मैं तो तुम्हारी बड़ी मां हूं ना।कहो, बड़ी मां।

प्रिया ने कहा, बड़ी मां और उनके गले लग गई।

मैंने प्रिया को शुभकामनाएं दी और कहा कि अगर थोड़ा सा भी सभी सास इस तरह समझ लें तो बहू की जिंदगी संवर जाए। लेकिन हां,बहू को भी उनका मान सम्मान बनाए रखना चाहिए।

सत्य घटना पर आधारित।

सुषमा यादव, पेरिस से

स्वरचित मौलिक अप्रकाशित

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!