बदनसीब – आसिफ शेख : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi: वह उम्र मे मुझसे बड़ी थी इसलिए मैं उन्हें बाजी कहकर बुलाता था, उनका नाम “ताज बानो” था लेकिन मैं उन्हें प्यार से ताजू बाजी बूलाता था , वह सुबह- सुबह काम करने हमारे घर आ जाती, और रात को अपने घर सोने चली जाती, मैं बचपन से यही दिनचर्या देखता आया था।

वह हमारे पड़ोस में रहती थी, एक बार मेरी माँ मुझे बताने लगी कि ताज बानो जब बहुत छोटी थी, तभी उसके पिता और माँ की मृत्यु हो गई थी, ताज की नानी उसे यहाँ ले आइ,लेकिन जब ताज 15 साल की थी, तब उसकी नानी भी चल बसी।

उसी दिन तुम्हारे पिता ताज बानो को हमारे घर ले आए और मुझसे कहने लगे,” जवान लड़की हैं अनाथ और असहाय भी है , इसे अपने पास रख लो” समय बड़ा खराब चल रहा है वैसे, ताज बानो दिन भर हमारे घर पर रहती थी, लेकिन रात होते ही अपने घर जाने की जीद्द करने लगती।

क्योंकि उसे अपनी नानी के बिस्तर पर ही शांति मिलती थी, और वही नींद भी आती थी, पहेले पहल तो तुम्हारे पिता मूझे उस के साथ भेज देते थे, फिर तेरे जन्म के समय से यह सिलसिला बंद हो गया।

मैंने अपनी माँ से पूछा कि “ताजू बाजी” की शादी क्यों नहीं हूई? “बेटा! इस बदनसीब की किस्मत में सुख-शांति कहाँ लिखी है, ताज 22 साल की थी मौहोल्ले पड़ोसियों ने तरस खा कर जैसे तैसे इस किस्मत की मारी लड़की की शादी कर दी।

लेकिन इस गरीब की किस्मत ही खराब थी। इसका पति शराबी निकला, ससुराल वाले भी क्रूर लोग थे, वह भी इस गरीब पर ध्यान नहीं देते थे।

वह लोगों के बर्तन और कपड़े धोकर अपना गुजारा करती थी, वह पैसे भी उसका पति शराब पीने के लिए हतीया लेता था, और अगर वह मना करती तो उसे मारता पीटता वैसे भी इस असहाय लड़की का कौन था, जो इस “बदनसीब ” का समर्थन करता।

कभी-कभी तुम्हारे पिता चले जाते थे उस गरीब का हाल चाल पूछने और कुछ पैसे भी दे आते, परंतु वह पैसे भी उस का क्रूर पति जबरदस्ती छिन लेता, रोते-पीटते जीवन बीत रहा था ! किंतु किस्मत ने उस बेचारी को फीर धोखा दे दिया, और उसके पति की अत्यधिक शराब पीने के कारण मृत्यु हो गई, शादी के 5 महीने बाद ही “ताज बानो” विधवा हो गई।

पति की मृत्यु के बाद ससुराल वालों ने इस अभागन का जीना दूभर कर दिया, उसे भूखा-प्यासा रखा, ताने दिए कि तुम्हारे कारण हमारा बेटा मर गया, तू मनहूस है, तुम्हारे पग जहां भी पड़ते हैं, विनाश छा जाता है।

एक दिन तो उसके ससुराल वालों ने अत्याचार की सीमा ही लांघ दी, उसे घर से ही निकाल दिया, और तब से यह बेचारी यहीं आकर रहने लगी। माँ ने दुःखी स्वर में कहा और अपने काम में व्यस्त हो गई।

“ताजू बाजी” बहुत दयालु और प्रेमपूर्ण सेवा करने वाली महिला थीं, बहुत प्यारी! वह अपने चेहरे से भी बहूत सुंदर और प्यारी लगती थी, बचपन से मेरे सारे काम “ताजू बाजी” ही किया करती थी, उन्होंने मुझे अपने सगे भाई की तरह प्यार दिया और मुझे एक माँ की तरह पाला था।

उन की इतनी दुःख भरी कहानी सून कर मै तड़प उठा, मेरा दिल भर आया, घर के एक कोने मे छुप कर मै बहुत रोया, उनके लिए मेरे मन में सम्मान और प्रेम पहले से अधिक बढ़ गया।

अब मैं हर दिन कॉलेज से आते समय उनके लिए समोसा, भेल ​​पूरी, चना जोर गर्म या आइसक्रीम लेकर आता था, और वह अपनी प्यारी सी मुस्कान के साथ कहती थी ” आशु बाबा तुम मेरी आदत खराब कर रहे हो” और मेरे हाथ से चीजें ले कर जोर से हंसते हूए खाने लगती।

उनकी आंखों में आंसू आ जाते वे मुझे गले लगाते हुए कहती , “आशू बाबा, क्या मूझ बदनसीब के नसीब में इतना प्यार लिखा है? क्या ये सत्य है या कोई स्वप्न हैं? ना आशु बाबा आप मूझ बदनसीब से दुर रहा करो! मझे अपने आप से भय मालुम होता है।

आप दुनिया में मेरे सबसे प्यारे भाई हैं, मैने जीवन में बहूत कुछ खोया है, अब आप को नहीं खोना चाहती, आप मूझ से हट कर रहा करो, मेरी बदनसीबी का साया कहीं आप पर ना पड जाए, और वह झटके से अलग हो जाती और कहती “हट पाजी मुझे रुला देता है” और उठकर अपने आँसू छुपाने के लिए दौड़ पड़ती।

मैं कॉलेज जाने के लिए तैयार हो रहा था, “ताजू बाजी” मेरी शर्ट प्रेस कर रही थी और मैं बार-बार उनसे कह रहा था “बाजी जल्दी करो, मुझे देर हो रही है” ताजू बाजी अपनी आँखें घुमाती और नकली गुस्से से मेरी तरफ देखती। ओय होय “आया बड़ा लाट साहब,अफसर बना फिरता है।

“जनाब को देर हो रही है, महाशय को इतनी जल्दी होती हैं तो कृपया पहले प्रेस के लिए बोल दीया करे सर” उन्होने मूह बनाकर कहा और हम दोनों हंसने लगे।

तभी बाहर से माँ की आवाज़ आई, “आशू बेटा, तुम्हारा दोस्त फ़याज़ आया है। “माँ, उसे अंदर भेज दो।” फ़याज़ पहली बार मेरे घर आया था, वह अभी अभी अपने परिवार के साथ इस शहर में आया था, और कॉलेज में दाखिला लिया था, कूछ दीनो में ही हम गहरे दोस्त बन गए थे।

“फ़याज़ इन से मिलो , ये है मेरी सबसे प्यारी बहन “ताजू बाजी” और ये है मेरा दोस्त फ़याज़! ताजू बाजी मुस्कुराईं। जवाब में फ़याज़ भी मुस्कुराया और बोला, “बाजी, मैं खास तौर पर तुमसे मिलने आऊंगा, अभी कॉलेज के लिए देर हो रही है।

फ़याज़ बहुत खुश था, वह बार-बार ताजो बाजी का जिक्र कर रहा था, उनके बारे में सब कुछ जानने की कोशिश कर रहा था, मैने फ़याज़ को ताजू बाजी की सारी कहानी सूना दी, ताजू बाजी की हकिकत जान कर फ़याज़ भी रो पडा और कहेने लगा कि आज से उन का एक और भाई है।

रविवार को फ़याज़ ने अपने पूरे परिवार के साथ अचानक मेरे घर में डेरा डाल दीया, उसने आते ही अपने बड़े भाई की ओर इशारा करते हुए कहा, ”ये मेरे बड़े भाई अज़हर भाई हैं, पेशे से वकील है, मैं इनके रिश्ते के लिए आया हूं. ताजो बाजी के लिए! खुशी से मेरे आंसू बहने लगे, मैं आगे बढ़ा और फ़याज़ को गले लगा लिया माँ और अब्बू की आँखें भी भर आईं।

जैसे ही ताजू बाजी हमारे घर आईं, मैंने उन्हें गले लगा लिया, ताजू बाजी ने कहा, ” क्या बात है आशू बाबा? आज बहुत प्यार जता रहे हो, कोई खास बात है क्या? “हां बाजी” मैं बस इतना ही कह सका और मेरी आंखें भर आईं लेकिन मैं बाजी से अपने आंसू छिपाने में कामयाब रहा और हंसते हुए बाहर निकल आया।

माँ ने ताजू बाजी को सारी बातें बताईं। अबू ने ताजू बाजी के सिर पर हाथ फेरा और उन्हे बहुत प्यार से समझाया, “बेटी, इतना अच्छा रिश्ता किस्मत से मिलता है। लड़का वकील है। घर में केवल तीन लोग हैं, फ़याज़, उसका भाई और उसकी माँ। और सबसे महत्वपूर्ण बात ये की वे तुम्हारे बारे में सब कुछ जानते हूए भी खूद चल कर रिश्ता लाए है, वे बहुत अच्छे लोग हैं जो खुद रिश्ता लेकर आए हैं, जिंदगी अकेले नहीं कटती, बेटा।

रुख़सती (विदाई) के समय ताजो बाजी के सामने जाने की मेरी हिम्मत नहीं हो रही थी, लेकिन आख़िरकार मेरी माँ ने मुझे बुला भेजा। बाजी ने जैसे ही मुझे अपने सामने देखा, एक मासूम बच्चे की तरह मुझसे लिपट गयी और रोने लगी, मेरा संयम भी टूट गया।

बाजी रोते हुए कह रही थी, “आशू बाबा अलविदा” तूम ने अपनी बाजी को जिंदगी से निकाल दीया” न बाजी, न तुम तो दिल में बसी हो, कैसे निकाल पाउंगा ? मेरा बाबा बहुत बड़ा हो गया है बहोत बाते बनाने लगा है, मेरे गाल थपथपाते हुए बाजी बोली और कार में बैठ गई।

ताजू बाजी बहुत खुश थीं,अज़हर भाई उनसे बहुत प्यार करते थे, उनका बहुत ख्याल रखते थे, फ़याज़ सगे भाई की तरह उन की सेवा करता था, और सास भी उन्हें माँ की तरह प्यार करती थीं, मैं भी हर शाम ताजू बाजी से मिल आता। फीर आगे की शिक्षा हेतू मै दूसरे शहर चला गया कभी कभी छुट्टी मे घर आता परंतु ताजू बाजी के घर जाने का अवसर नहीं मिलता, माँ से ही बाजी के हाल-चाल पूंछ लेता।

दो साल बाद, जब मैं अपनी पढ़ाई पूरी करके शहर लौटा, तो सबसे पहले ताजू बाजी से मुलाकात की, मुझे यह जानकर बहुत खुशी हुई कि ताजू बाजी बिल्कुल, ताजू बाजी की तरह एक परी की माँ बन गई थी। उनकी एक फुल सी बेटी थी।

एक दिन वे मुझसे कहने लगी, “आशु बाबा, शायद यह सब आपकी दुआओं का असर है। यह आपकी सेवा और आपकी दुआओं का ही नतीजा है कि अल्लाह ने मुझे इतनी खुशियाँ और इतनी अच्छी ज़िंदगी दी है, नहीं तो मैंने कहा, ” बदनसीब”

मैंने ताजो बाजी के मूह पर हाथ रखकर कहा ” बाजी आप तो बहूत खूशनसीब हो, बहुत मंगलमय हो, आप बहुत धन्य हों। जिन लोगों ने आपकी कद्र नहीं की, जीन लोगों के नसीब मे आप का साथ नही था, जिन्होंने आप को कष्ट दीए जो आप के प्रेम आप के सेवाभाव को समझ नहीं पाए, वे लोग थे बदनसीब बहुत बड़े “बदनसीब”

*समाप्त* 28/08/23

स्वलिखित आसिफ शेख

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