बड़ा कौन? – प्रतिभा गुप्ता

एक आदमी था।उसका नाम था राजेश वह बहुत महत्वाकांक्षी था।उसके पास सब कुछ होने पर भी उसके मन में और अधिक पाने, कमाने का लालच समाया रहता था।वह एक एक रूपए की कंजूसी करने में विश्वास करता था। कभी किसी भिखारी को देख लेता तो मुंह घुमा कर निकल लेता।यदि कभी किसी ने आवाज लगा कर भिक्षा मांग ली तो समझिए उसको इतना लैक्चर पिलाता जितना कोई प्रोफेसर अपने छात्रों को भी नहीं सुनाता।

एक दिन उसे अपने पैतृक गांव में किसी समारोह में जाना हुआ। वहां उसे अपने बचपन का दोस्त मिला ।वह अपने पुश्तैनी धंधे खेती बाड़ी को ही कर रहा है,यह जानकर उसे बहुत हैरानी होती है। वह उसे बहुत मामूली बेचारा समझता है और अपने को बहुत बड़ा और अमीर।वह उससे पूछता है कि भाई सुरेश जहां तक मुझे याद है तुम तो कालेज में पढ़ने शहर चले गए थे, तो फिर तुमने वहीं कोई काम वगैरह क्यों नहीं कर लिया यहां क्यों लौट आए। यहां खेती बाड़ी में तुम कितना ही कमा पाते होंगे। कैसे खर्चा चलता होगा। कैसे जी रहे हो यहां।

तब सुरेश ठहाका लगा कर हंसा और बोला बस कर मेरे भाई। इतना परेशान मत हो ।चल मेरे घर। वहीं चल कर आराम से शांति में बैठ कर बातें करेंगे। राजेश अपनी उत्सुकता में भरा सुरेश के साथ उसके घर चला गया।


वहां पहुंच कर राजेश का बहुत प्यार और सम्मान से स्वागत हुआ। वह सुरेश के मां पिताजी दोनों  के पैर छूकर उनके हालचाल पूछने लगा तब उन्होंने कहा_जिसके घर में सुरेश जैसा सपूत हो,उन मां बाप को और क्या चाहिए। सुरेश ने अपना कालेज पूरा करने के बाद गांव लौट कर खेती में नये नये प्रयोग करके खुद भी बहुत मुनाफा कमाया और गांव के दूसरे किसानों को भी सब सिखा कर उनकी उन्नति में भी सहायक बना। फिर इसने सबके सहयोग से गांव में भी आगे की पढ़ाई के लिए लड़कियों का कालेज तो खुलवा दिया है अब लड़कों के लिए प्रयास कर रहा है।इसने अपनी पढ़ाई का फायदा पूरे गांव को पहुंचाया है।अब तो यह गांव का सरपंच भी बना दिया गया है। और देख लो गांव अब किस चीज में शहर से कम है।पक्की सड़कें, पक्की गलियां,साफ सफाई, बिजली के खंभे,सब कुछ तो है यहां। बल्कि जो शहर में नहीं वो भी है।

यह सुनकर राजेश हैरान हो गया और पूछा कि क्या नहीं है शहर में।तब बुजुर्ग बोले अरे बेटा शहर में हरियाली नही है।ना बाहर ना भीतर। राजेश फिर हैरान होकर बोला मतलब कहां बाहर भीतर। तो उन्होंने मजे लेते हुए कहा बेटा-न तो शहर में गाँव जैसे खेत खलिहान ही हैंऔर न इतने पेड़ पौधे.न किसी के मन  के भीतर दूसरे के लिए संवेदना ही हैं, हर आदमी को बस अपनी ही चिंता है, पड़ौसी चाहे मरे या जीये, कोई फर्क नहीं पड़ता है किसी को.

सुनकर राजेश का सिर शर्म से झुक गया.वह सोचने लगा कि मैं कभी किसी की चिंता नहीं करता, कभी किसी के दुख मे भी शामिल नहीं होता कि कहीं कोई कुछ मांग न ले.

तभी सुरेश बोला कि भाई रही बात कमाई की, तो मैं इतना कमा लेता हूं कि मेरा घर भी चल जाता है, कर्ज भी चुकता हो जाता है और कुछ रूपये मैं आगे चढ़ा भी देता

 

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