बच्चे मन के सच्चे – मनी शर्मा

बच्चे कितने सरल होते हैं। ऊँच नीच जात पात किसी का भेद नहीं समझते बस अपनी सच्ची नज़र से दुनिया देखते हैं।

उस दिन हमारे घर काम करने वाली सोनी के साथ उसकी पाँच वर्ष की बेटी आई। एक बार तो मैं देखती रह गई। गोरा रंग, बड़ी बड़ी आँखों में मोटा मोटा काजल ,गोल मटोल बहुत ही प्यारी लग रही थी।

मैंने पूछा ,”क्या नाम है बेटा ?“

“परी” इठलाते हुए उसने जबाब दिया।

“अच्छा यहाँ बैठ जाओ मम्मी को काम करने दो “मैंने स्टूल सरकाते हुए कहा।

चचंल आँखें मटकाते हुए परी बैठ गई पर उसका मन चुपचाप बैठने का न था। वह कभी इधर भागती कभी उधर भागती कभी सोनी को परेशान करती। मुझे ज़्यादा शोर शराबा पंद नहीं है तो मैंने एक कॉपी पेंसिल लाकर कहा ,”तुम स्कूल जाती हो”

“हाँ” वह ज़ोर के बोली।

“अच्छा !जो टीचर सिखातीं हैं,वह लिख के दिखाओ”मैंने कहा।

“क्या दोगी “? बहुत भोलेपन से उसने पूछा।

“एक थप्पड़ लगाऊगी “सोनी ने ग़ुस्सा किया ,”सबसे कुछ न कुछ माँगती रहती है”।

“अच्छा लिखो फिर कुछ दूँगी”मैंने मुस्कराते हुए कहा।

बेमन से उसने कॉपी ली और कुछ लिखने लगी। मैं भी एक किताब लेकर पास ही सोफ़े पर बैठ गई।

कनखियों से कभी कभी उसकी ओर

देख लेती।

ज़रा देर में परी सोनी के पास पहुँच कर बोली ,”मम्मी लिख लिया “।

“आंटी को दिखा दे ,मैं काम कर रही हूँ “सब्ज़ी काटते हुए सोनी ने कहा।


“देखो आंटी “कॉपी लेकर सोनी मेरे सामने खड़ी हो गई।

मैंने कॉपी देख कर कहा ,”अरे ! यह “ज “तो तुमने ग़लत बनाया है ।”

परी मुँह में उँगली डालकर सोच में पड़ गई । तभी सोनी ने कहा ,”कॉपी टेढ़ी पकड़ी है आपको इसलिए लग रहा है “। माँ किस तरह अपने बच्चे का बचाव करती है सोच कर मैं मन ही मन मुस्करा उठी।

कुछ देर में सोनी का काम ख़त्म हो गया ,वह परी को लेकर जाने लगी तो मैंने पास बुला कर कहा ,”परी बेटा ! यह कॉपी तुम ले जाओ”।

उसने कॉपी की तरफ़ देखा फिर बोली ,”और ?

सोनी ने हाथ पकड़ कर बोली,”घर चल तेरी ख़बर लेती हूँ “।

मैंने रोक कर कहा ,”यह पेंसिल भी ले जाओ “।

उसने फिर पूछा ,”और ?

“अब तुझे कहीं नहीं लेकर जाऊँगी”सोनी परी को बस मारने ही वाली थी ।

मैंने पूछा ,”और क्या चाहिए ?

परी बड़ी मासूमियत से बोली ,

“रबर”

“ओह! वह तो नहीं है “सोनी !मैंने सोनी से कहा ,”पैसे ले जाओ रबर और चॉकलेट परी के लिए ख़रीद लेना”।

सोनी शर्मिंदा हो रही थी। कहने लगी ,”दीदी! माफ़ करना आपको बहुत परेशान किया है आगे से नहीं लाऊँगी”।

“अरे !मुझे तो बहुत अच्छा लगा“

परी के सिर पर हाथ फेरते हुए मैंने कहा ,”बच्ची ही तो है ,बचपन बिना किसी बनावट बिना कोई छल कपट लिए होता है । बच्चे मन के सच्चे होते हैं,जो सरलता इनमें है वह हम बड़ों में कहाँ ? जब मन करे आ जाना बेटा “।

“मुझे पढ़ाओगी आंटी ! परी के चेहरे पर एक मीठी मुस्कान थी ।

“हाँ बिल्कुल “मैंने उसकी मुस्कान को और गहरा कर दिया।

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