लंचबॉक्स – प्रियंका सक्सेना  : Moral Stories in Hindi

शहर से दूर एक छोटे से शहर नूरपुर में सुबह होते ही बच्चे अच्छे धुले साफ़ सुथरे कपडे पहनकर हाथों में बस्ता लेकर विद्यालय की ओर चल पड़े।  सरकारी विद्यालय नूरपुर में छठी कक्षा में मास्टरजी के आते ही सभी बच्चों ने समवेत स्वर में गाकर उनका स्वागत किया। होने को तो बच्चे अभिवादन कर … Read more

चिरवंचिता – प्रियंका सक्सेना : Moral Stories in Hindi

समिधा अपने माता-पिता की इकलौती संतान थी।‌ बचपन से ही उसे वह सब कुछ मिला जिसकी किसी भी बच्चे को चाहत हो सकती थी, ढेर सारे खिलौने, गेम्स,  चॉकलेट्स, वेकेशन पर बाहर घूमने जाना, मूवीज़, आए दिन रेस्टोरेंट्स में खाना खाना…. उसकी बाॅर्बीज़ का कलेक्शन तो सहेलियों में ईर्ष्या का विषय था‌। ऊपर से सब … Read more

मानू चला गया – प्रियंका सक्सेना : Moral Stories in Hindi

मानू जब घर में आया तो घर में मानो बहार आ गई, हो भी क्यों नहीं? वासंती जी और रवींद्र जी के बड़े बेटे अमित की पहली संतान जो था। कविता भी अपने बेटे को सास-ससुर और देवर सुनील के द्वारा मानू को हाथों-हाथ रखने से बहुत खुश थी। मानू को पलकों में सहेज कर … Read more

मान सम्मान मायके का! – प्रियंका सक्सेना : Moral Stories in Hindi

दिल्ली से रक्षा बुआ के आते ही दोनों बच्चे बुआ के पास दौड़े चले आए। आठ साल का सोहम और छह साल की सलोनी कल से बुआ के आने का इंतज़ार कर रहे थे। और हो भी क्यों न! आखिरकार बुआ शादी के बाद पहली बार जो आ रही थीं। “बच्चों, बुआ अब आ गई … Read more

कुछ तो लोग कहेंगे… – प्रियंका सक्सेना : Moral Stories in Hindi

रविवार की छुट्टी  के बाद सोमवार के दिन यूँ तो मन अलसाया रहता है लेकिन काम तो आखिर करने ही होते हैं।  गौतम के ऑफिस जाने के बाद माला जी और दीपा ने नाश्ता किया। तभी ऑटोमेटिक मशीन ने कपड़े धुलने का सिग्नल दिया। बाल्टी में कपड़े निकालकर दीपा छत पर कपड़े फैलाने चली गई … Read more

घुंघरू – प्रियंका सक्सेना : Moral Stories in Hindi

आठ साल की सिया अपनी उम्र से कहीं ज्यादा चंचल और खुशमिजाज बच्ची थी। उसका मन हर उस चीज़ में लगता था, जिसमें रचनात्मकता और कला का कोई भी अंश हो। जब वह घर के आंगन में नाचती, तो उसकी हर हरकत मानो कहती कि यह उसकी जिंदगी का सबसे प्यारा पल है। उसकी मां … Read more

डोंट जज ए बुक बाय इट्स कवर! – प्रियंका सक्सेना : Moral Stories in Hindi

“आ गई दिव्या, चलो हाथ मुंह धोकर डाइनिंग रूम में आ जाओ।‌ चाय के साथ आलू प्याज के पकौड़े बनाएं हैं।” सुरेखा ने बेटी से कहा “वाह पकौड़े बनाएं हैं आपने! बस मैं पांच मिनट में आई।” कहकर दिव्या अपने रूम में चली गई। झटपट हाथ मुंह धोकर कपड़े बदलकर वह नीचे पहुंची। “मम्मी, आपके … Read more

आहत ना करें – प्रियंका सक्सेना : Moral Stories in Hindi

हमारी कॉलोनी में बरसों से एक धोबिन आती है। सभी पुराने लोग यानि जो स्थायी निवासी हैं वो उसी धोबिन से कपड़े प्रेस करवाते हैं। हमारे घर में भी बचपन से उन्हें ही आते देख रही हूँ। शुरू से ही मौसी कहती आई हूँ। मौसी दिन भर प्रेस करती हैं। इसके लिए सुबह घर घर … Read more

एक साड़ी ही तो है! – प्रियंका सक्सेना : Moral Stories in Hindi

 “अपनी सास के सामने कैंची की तरह जुबान चलाए जा रही है, हिम्मत तो देखो इस लड़की की । दादी सास का भी लिहाज़ नहीं है।” कहते हुए कामिनी  जी अपनी बहू रिया को सुना सुना कर कोसे जा रही हैं “आने दो सुनील  को। सब बातें बताउंगी उसे।  उसे  भी तो पता चले तुम्हारा … Read more

गूंज तमाचे की! – प्रियंका सक्सेना : Moral Stories in Hindi

नैना एक हफ़्ते की छुट्टियों में घर आई है। वह इलेक्ट्रिकल   इंजीनियरिंग सातवें सेमेस्टर की विधार्थी है। सेमेस्टर ब्रेक में घर आकर उसकी खुशी बातों से ही महसूस की जा सकती है। सारे घर में आज़ाद पंछी की तरह कभी इस कमरे में तो दूसरे ही पल अगले कमरे में पाई जाती है। बाबा … Read more

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