दुःखों से निकलने की होड़ – कंचन सिंह चौहान : Moral Stories in Hindi

हाल चाल लेने की जनरल कॉल करती हूँ, तो उसकी आवाज़ थोड़ी डल लगती है। “क्या हाल है?” “ठीक है।” ” क्या हुआ बड़ा शोर है?” “हम्म्म.. वो यहाँ आया था ना ! नीरा दी के घर” “ओके ओके…नीरा ठीक है ?” ” अरे वो मौसी….. वो… नीरा दीदी के ससुर एक्सपायर कर गये।” “क्या … Read more

हमें इंतज़ार कितना ये हम नही जानते – कंचन सिंह चौहान  : Moral Stories in Hindi

खाना जल्दी से बना के रख देना है। वर्ना किचेन में ही आ के बैठ जायेगा। और एक बार बात शुरू होगी तो खतम ही नही होगी। फिर दीदी गुस्सा होंगी। किचेन में ही बैठकी जम जाती है तुम्हारी। वो खाना बना कर बाहर बराम्दे मे ऐसी जगह बैठी है, जहाँ से सड़क के मोड़ … Read more

मैं और कुँदरू – कंचन सिंह चौहान : Moral Stories in Hindi

कुछ चीजें पता नही क्यों बहत पसंद आने लगती हैं। इतनी कि आप उन चीजों के नाम से पहचाने जाने लगते हो। और फिर अचानक अंदर ही अंदर उससे ऊब होने लगती है, लेकिन, चूँकि आप उस चीज़ से पहचाने जाने लगे हो इस कारण आप किसी से कह भी नही पाते कि अब उस … Read more

बदजात – कंचन सिंह चौहान : Moral Stories in Hindi

दुबली पतली सी वह, बड़ी सी आँखों वाले साँवले चेहरे और थोड़े से भरे होंठ के साथ, हाथ में चाय की ट्रे लिये सिमटी सकुचाई खड़ी थी। शायद हाथ काँप रहे थे उसके। बिस्नू इधर-उधर हिल डुल कर थोड़ा संभल कर बैठने लगे थे। भईया जी ने उनके हाथ पर हाथ रखते हुए उन्हें सामान्य … Read more

क्या सितम है कि हम लोग मर जायेंगे. – कंचन सिंह चौहान : Moral Stories in Hindi

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सुबह 6 बजे से यह शेर गूँज रहा है दिल-ओ-ज़ेहन में.  अम्मा और मौसी यूँ किसी देश, किसी शहर तो छोड़िये किसी गाँव के भी इतिहास में इनका नाम दर्ज़ होने वाला नहीं. लेकिन ये दोनों अपने पिता द्वारा किये गये ‘गिलहरी प्रयास’ का  सफल रूप रहीं. उनके पिता यानी नाना जी. नाना जी जब … Read more

कितने हसीन रिश्ते हैं यहाँ पर…..! – कंचन सिंह चौहान : Moral Stories in Hindi

प्रदीप से मिली थी मैं जुलाई २००२ में। वो शांता अम्मा का बेटा था। SSC परीक्षा द्वारा हिंदी अनुवादक पद पर चयन होने के पश्चात मुझे पहली पोस्टिंग मिली थी अनंतपुर, आंध्र प्रदेश में। सन् २००१ का अंत मेरे लिये ऐसे घटनाक्रमों का वर्ष था जो मेरी सपनो की तो सीमा में था लेकिन कल्पनाओं … Read more

मुक्ति (भाग-6) एवं (अंतिम भाग ) – कंचन सिंह चौहान : Moral stories in hindi

” क्या मतलब ?” “मतलब तो तुम ही जानती हो शायद ! उन सब बातों का मतलब जो तुम्हारे लिये होती हैं। ऐसी बातें सब क्यों करते हैं तुम्हारे लिये ?” सारिका ने मुझे प्रश्नवाचक दृष्टि से देखते हुए कहा और मैं उस दृष्टि का सामना नही कर पाई। मैं दूसरे कमरे में जा के … Read more

मुक्ति (भाग-5) – कंचन सिंह चौहान : Moral stories in hindi

मैं आगे बढ़ कर पीछे के रास्ते निकली और पड़ोस का पिछला दरवाजा खटखटाने लगी गाँवों के लिये तो उस समय आधी रात का समय था। एक अधेड़ उम्र की महिला ने दरवाजा खोला। मैने उन्हे देखते ही सारिका को उनके पैरों पर रख दिया। “चाची जिऊ ! एकर जिनगी बचाइ लें।” ” का भै … Read more

मुक्ति (भाग-4) – कंचन सिंह चौहान : Moral stories in hindi

ससुराल में आने के बाद कभी-कभी ओसारे में बाबू जी को खाना देने आती थी। वो भी तब जब ये नही होते थे। वो मेरी आखिरी सीमा रेखा थी। लेकिन आज मुझे अपनी कोई भी सीमा रेखा नही याद थी। मैं नंगे पैर ही उधर दौड़ पड़ी जहाँ से गाँव भर की आवाजें आ रही … Read more

मुक्ति (भाग-3) – कंचन सिंह चौहान : Moral stories in hindi

ये आवाज तो इनकी थी। मैने सारिका को जहाँ का तहाँ छोड़ा और दौड़ कर दरवाजा खोलते ही इनसे लिपट कर फिर उसी बेग से रोने लगी। ये कुछ भी समझने में असमर्थ थे। ऐसी स्थिति अब तक कभी नही हुई थी। इन्होने मुझे पकड़े हुए ही दरवाजा धीरे से लगाया और एक मजबूत रक्षक … Read more

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