औकात – माधुरी गुप्ता  : Moral stories in hindi

आरती व ऊषा दोनों पक्की सहेलियां थी,एक ही कलास में होने के कारण उन दोनों की दोस्ती दिन दूनी रात चौगुनी वढ रही थी आरती पढ़ाई में जितनी फिसड्डी थी,उमा उतनी ही मेधावी थी। आरती को एक क्लास से दूसरी क्लास में जाने में उमा का बहुत सहयोग होता,सहेली होने के कारण उमा अपने अच्छे नोट्स आरती को बताती ,और आरती उन नोट्स को रट रटा कर किसी तरह पास हो जाती।हां आरती इसके लिए उमा का थैंक्स करना नही भूलती,साथ ही ंंएक दो मंहगे गिफ्ट भी उसे थमा देती।दोनों की आर्थिक स्थिति में बहुत फर्क था।

आरती जहां शहर के माने सेठ राजाराम की बेटी थी , वही,उमा साधारण परिबार से ताल्लुक रखती थी।उसके बावूजी किसी प्राइवेट कम्पनी में कार्यरत थे।घर का गुज़ारा आराम से चल जाता था। ऊषा का एक छोटा भाई भी था। बावूजी खुद अधिक पढ़ें लिखे नहीं थे,लेकिन अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा देने के सदैव पपक्ष में थे।वे सदैव अपने बच्चों को अधिक पढ़ाई करने को प्रेरित करते रहते।ऊषा व उसका भाईसमीर अपनी आर्थिक स्थिति को भलीभांति जानते थे, अतः अपना पूरा ध्यान पढ़ाई पर ही फोकस करते।दोनों भाई बहन अपने अपने क्लास में सदैब प्रथम आते।अपनी क्लासमें दो बार लगातार प्रथम आने पर सकूल बालों ने उसकी फीस माफ कर दी साथ ही उसे आगे थी पढाई के लिए स्कॉलरशिप भी मिलने लगा था।

इसके बिपरीत आरती को पढ़ाई में कुछअधिक दिलचस्पी तो थी नही,किसी तरह उमा के बनाए नोट्स की सहायता से १२th तक की परीक्षा पास कर ली थी। आरती का एक भाई भी था विकास,वह भी अपनी वहन की तरह ही पढ़ाई में अधिक रूचि नहीं रखता था।

आरती व विकास दोनो भाई वहन कीसोच एक सी थी कि बावूजी के पास इतनी धन सम्पत्ति है तो पढ़ाई में क्यों अपना दिमाग खपाना।

समय अपनी गति से बीत रहा था,आरती के बापूजी ने उसके बीस साल पूरा होते तक रिश्ता ढूंढने शुरू किया बिरादरी में उनका नाम व रसूख होने से एक व्यवसाई परिवार में रिश्ता पक्का हो गया। शादी काफी धूमधाम से सम्पन्न होगई।आरती अपनी शादी में उमा को बुलाना नही भूली थी।

आरती की शादी में साधारण सी ड्रेस व सलीके से किए गए मेकअप में भी उमा गजव की सुन्दर लग रही थी। विकास को जब यह मालूम हुआ कि यह लड़की मेरी वहन आरती की पक्की सहेली है को उसने आरती से कहा कि किसी तरह मेरा उससे परिचय करबा दें।वह उमा की सादगी व सौन्दर्य पर से बहुत प्रभावित होगया था।

आरती शादी के बाद जब मायके आई तो विकास ने अपने मन की बात आरती से कह डाली।आरती मै उमा से शादी करना चाहता हूं।

विकास की बात सुनकर आरतीने कहा , भाई ऐसा कैसे हो सकता है हमारी व उनकी आर्थिक स्थिति में बहुत अन्तर है।हमारेबावूजी कभी भी इस रिश्ते के लिए राजी नही होंगे।हमारे सामने उन लोगों की कोई औकात नहीं है।

मै कुछ नहीं जानता बस मुझे किसी भी तरह उमा से शादी करनी ही है,और इसमें सिर्फ तुम ही मेरी मदद कर सकती हो, क्योंकि वह तुम्हारी पक्की सहेली है,तो तेरी बात कभी नहीं टालेगी।

विकास की जिद आरती की मान मनौवल के आगे सेठजी ने भी अपने धन दौलत के रुतबे को दरकिनार करते हुए इस रिश्ते को अपनी मंजूरी दे ही दी।

उमा के बापूजी कोतोइस रिश्ते से कोई एतराज़ नहीं था,वे तो बहुत खुश थे कि उनकी बेटी की शादी इतने बड़े सेठ के बेटे से होरही है।जो सुख वे नहीं देपाये अपना सीमित आय के कारण ,वे सारे सुख सेठजी के घर पूरे होजायगे।

अब आरती व उमा का रिश्ता नन्द भाभी का हो गया था, शादी के कुछ दिनों तक तो आरती का व्यवहार उमा के प्रति अच्छा रहा ,फिर उसपर नन्द कारिश्ता हाबीा होने लगा।

उमा के मिलनसार स्वभाव व अच्छे संस्कारों ने ससुराल में सबकी दिल जीत लिया था, बस यहीं से ननद भाभी के रिश्ते में दरार आने लगी।

जब भी आरती मायके आती उसकी मां उमा की यानी अपनी बहू की बहुत तारीफ करती,सचआरती उमा तो सच में ललक्ष्मी साबित हुई है इस घर केलिए,उमा ने केवल पूरे घर को सम्हाल लिया है , विकास को भी अपनी समझदारी से काफी बदल दिया है।जानतीहैजो विकास कभी पढाई के लिए राजी नहीं होता था वहीं विकास उमाके समझाने पर वह अब आगे की पढ़ाई कर रहा है और व्यापार में भी हाथ बटा रहा है अपने बाबूजी का।

आरती,उमा कीतारीफ सुन घर जल भुन घर राख हो जाती ,कयोकि अब वह उसकी सहेली नहोकर उसकी भाभी जो बन गई थी,आरती जबभी अपने मायके आती,उमा के हरेक काम में मीन-मेख निकालती व उसे नीचा दिखाने की कोई कोशिश बाकी नहीं रखती।

उमा अपने स्वभावानुसार यह सोच कर आरती कीबातों को नजर अंदाज कर देती कि नन्द है इसका

कया बुरा मानना।

एक दिन आरती व उमा साथ साथ शॉपिंग करने निकली,उमा ने अपने लिए एक मंहगी साड़ी पसंद की और भी ढेर सारी मंहगी चीजें खरीद ली।जबकि आरती ने थोड़ी सी शॉपिंग की।लौटते समय आरती ने उमा को टोका उमा। तुम अपनी औकात नही भूल रही हो,दो कमरों के किराए के घर से उठ कर हमारे महल जैसे घर में आ गई और अब तो तुम्हारे पंख निकल आए हैं ,तुम तो बहुत ही उड़ रही हो हमारे पैसों पर।एहसान मानो मेरा जो मैने पिताजी को तुम्हारे बारे में अच्छा बोल कर इस घर की बहू का दर्जा दिलाया।नही तो वहीं बैठी रहती अप नेे दडवे जैसे घर में।

उमा को अपनी ननद की बातें सुन कर गुस्सा तो बहुत आया,लेकिन अब तक यही सोच कर चुप लगा जाती थी कि ननदहैबोल लेने दो इसको।लेकिन आज उमा ने भी जबाव देना जरूरी समझा क्योंकि जब पानी सर से ऊपर हो जाय तो उसे उलीचना जरूरी होता है।

उमा ने बोलना शुरू किया,आरतीये जो तुम एहसान बाली बात कर रही थी न ,सो एहसान तो तुमको मेरामें का मानना चाहिए,मेरे बनाए नोट्स पढ कर ही तुम १२th तक पहुंच पाई,नही तो तुम जानती तेो हो नअपनी पढ़ाई में रुचि के बारे में।

रही औकात की बात सेो ननद रानी औकात सिर्फ धन-दौलत से ही नही परखी जाती, अच्छा व्यवहार भी आपकी औकात को दर्शाता है। औकात की बात तो तुम न ही करो तो अच्छा है, ससुराल में तुम्हारी क्या औकात है यह तो इसी से पता चलता है,कि हर तीसरे दिन मायके में मुंह उठा कर चली आती हो।

अपने घर तुम भी चैन से रहो और मुझे भी रहने दो।

रही मंहगी साड़ी खरीदने की बात तो मेरे पति का पैसा है तुम्हारे पेट में दर्द क्यों हो रहा है।

घर पास आने पर आरती ने नमक मिर्च लगा कर सारी बातें अपनी मां को बताई कि उमा ने किस तरह उसका अपमान किया है। उससे उल्टा सीधा कह कर।

लेकिन आरती का पासा उल्टा पड़ गया।

सारी बाते सुनने के बाद उसकी मां ने कहा,पहली बात तो तुमको उमा को भाभी कहना चाहिए, क्योंकि बह अब तुम्हारे बड़े भाई की पत्नी है।रही बात उमा के उल्टा सीधा बोलने की सो ये वही उमा है जो कभी तुम्हारी पक्की सहेली हुआ करती थी,और जिसकी तारीफ करते तुम्हारी ज़बान नहीथकती थी।बही उमा अब

जब तुम्हारी भाभी बन गई है तो एकाएक इतनी बुरी हो गई कि तुम उसको उसकी औकात याद दिलाने लगी।

#औकात तोतुम भूल रही हो रिश्तेो कीमान मर्यादा भूल करअगर तुम उसकाो मान-सम्मान दोगी तो बदले में वही पाओगी,नहीं तो हम लोगों के न रहने पर कहीं तुम्हारा मायकाही न छिन जाय। आखिर कोवह अव तुम्हारी बड़ी भाभी है।

जहां तक मैंने उमा कोपरखाहै वह तो खरा सोना है। खबरदार आज के बाद हमारी बहू के बारे में कुछ उल्टा सीधा कहा तो मुझे भी तुम्हें, तुम्हारी औकात बताने में देर नहीं लगेगी।

आरती ने भी अब चुप लगाने में ही अपनी भलाई समझी।

स्वरचित व मौलिक

माधुरी गुप्ता

नई दिल्ली

#औकात

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