अपनों के बीच – ‌ऋतु गुप्ता

शांता के पति श्यामलाल उसे समझाते हुए कहते हैं, कितनी बार कहा है शांता तुम्हे कि बहू के आगे पीछे मत घूमा करो, उसे काम संभालने में दिक्कत होती है,मुझे भी बिल्कुल अच्छा नहीं लगता जब बहू तुम्हें नकारते हुए मना करती है।

 अब अपना मन मोह माया से हटाकर प्रभु सुमिरन में लगाओ, क्यों बार-बार बहू से कहती हो कि कुछ काम हो तो बता दो, मुझे ये तुम्हारा तिरस्कार लगता है शांता जी। अब इस उम्र में कौन सा काम तुम कर सकती हो ? जरा सोचो तो।

इस पर शांता भारी मन लेकर आंखों में आंसू भर कर कहती है, देखो जी मैं जानती हूं बड़े-बड़े काम इस उम्र में मुझसे नहीं होते, पर मै क्या करूं ? मै अपने बच्चों के बीच रहना चाहती हूं, यूं अकेले अकेले मेरा मन नहीं लगता। छोटे-छोटे काम करके भी तो मैं पोते पोती और अपने बच्चों के बीच रह सकती हूं।



अब तो हमारा बेटा भी कभी मुझसे नहीं कहता कि मां बहुत दिन हो गए, मेरे सिर की मालिश कर दो या सूजी का हलवा बना दो, तुम्हारे हाथ का हलवा मुझे बहुत पसंद है, मैं अपने पोते पोती के सिर की मालिश करना चाहती हूं ।सब के साथ टीवी टीवी देखते हुए मटर छीलना चाहती हूं, इतने छोटे-छोटे काम तो मैं कर ही सकती हूं। 

मैंने बच्चों से कभी धन दौलत नहीं मांगी, मैंने सिर्फ मांगा है तो अपनों के बीच थोड़ा सा समय, क्या इतना भी ये बच्चे हमारे लिए नहीं कर सकते? क्या बुढ़ापे का मतलब सिर्फ रोटी खाना और अकेले कमरे में पड़े रहना है?इन छोटे-छोटे कामों से ही अपनापन बढता है ,जीवन में प्यार बढ़ता है, घर में सुख शांति आती है। क्या मैं गलत हूं आप यह तो बताइए।



उन दोनों की ये बातें वहीं खेलता हुआ उनका आठ वर्षीय पोता शौर्य बड़े ध्यान से सुन रहा था। वो दौड़ कर जाता है, और तेल की शीशी हाथ में लेकर आता है ।कहता है दादी दादी आप मेरे सिर की मालिश कर दो ना,आपके हाथों की मालिश से मुझे बहुत अच्छी नींद आती है।

फिर क्या था श्यामलाल और शांता दोनों की आंखों में खुशी के आंसू आ गए और दोनों ने अपने पोते को सीने से लगा लिया।

 

‌ऋतु गुप्ता

खुर्जा बुलन्द

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