अपने मन की सुनना – विभा गुप्ता Moral Stories in Hindi

” प्रतिभा जीजी…. क्या करुँ…कुछ समझ नहीं आ रहा है।आप तो जानती ही हैं कि मानसी ने एनडीए की परीक्षा पास कर ली है।अब उसे इंटरव्यू के लिये दिल्ली जाना है।लेकिन लोग कह रहें हैं कि ज़माना बहुत खराब है..अकेली लड़की..पता नहीं वहाँ कैसे-कैसे लोग होंगे तो…आप क्या कहती हैं?” 

      ” देख रंजना…लोगों का तो काम ही होता है बातें बनाना लेकिन तुम क्यों उनकी बातों पर कान देती हो।भूल गई..तुम्हारी माँ ने इन्हीं लोगों की बातों में आकर तुम्हारी…।अब तुम इतनी समझदार होकर बचकानी बातें मत करो और वो करो जिसे तुम्हारा दिल सही माने..।” कहकर प्रतिभा जीजी ने फ़ोन डिस्कनेक्ट कर दिया।    

      रंजना सोफ़े पर बैठ गई और मेज पर रखी फ़ोटो फ़्रेम में लगी अपनी तस्वीर निहारने लगी।सफ़ेद टीशर्ट- स्कर्ट पहने और हाथ में हाॅकी स्टिक पकड़े पूरी टीम के साथ खिंची फ़ोटो में वह कितनी अच्छी लग रही थी।

           स्कूल से ही रंजना को हाॅकी खेलने का शौक था।दो-तीन टूर्नामेंट में भी उसका प्रदर्शन सराहनीय था।काॅलेज़ में जब ‘स्टेट हाॅकी टीम’ में उसका सिलेक्शन हुआ तो वह बहुत खुश थी।उसके पिता भी चाहते थे कि बेटी स्पोर्ट्स में अपना नाम रोशन करे लेकिन तब माँ ने मना कर दिया।उसके पिता से कहने लगीं कि लोग रंजना को लेकर तरह-तरह की बातें बनाने लगे हैं।इसका खेल-वेल बंद कीजिये और इम्तिहान खत्म होते ही अच्छा लड़का देखकर इसे विदा कर दीजिये।उसके पिता ने समझाने की बहुत कोशिश की लेकिन उसकी माँ अड़ गईं।

      कुछ महीनों बाद प्रशांत जो म्युनिसिपल काॅरपोरेशन में नौकरी करते थें, के साथ रंजना का विवाह हो गया और वह घर-गृहस्थी में व्यस्त हो गई।

      दो साल बाद रंजना ने एक बेटी को जनम दिया जिसका नाम उसने मानसी रखा।तब रंजना ने सोच लिया कि वह अपनी बेटी के सपनों को ज़रूर पूरा करेगी।मानसी स्कूल जाने लगी तब वह फिर से गर्भवती हुई और इस बार भी उसने एक फूल-सी बच्ची को जनम दिया जिसका नाम उसने पायल रखा।प्रशांत अपनी दोनों बेटियों के साथ बहुत खुश थें लेकिन उनकी माताजी अप्रसन्न थीं।

      रंजना जब भी ससुराल जाती तो उसकी सास उसे बेटा न होने का ताना देती।प्रशांत को भी कहती कि बेटियों से क्या होगा…वो तो पराई होती हैं…वंश तो बेटा ही बढ़ायेगा…।प्रशांत उनकी बातों को अनसुना कर देता।

      एक दिन मानसी और पायल ने अपनी दादी से कुछ खाने की ज़िद कीं तो उनकी दादी ने उन्हें दुत्कार दिया।बच्चियाँ रोने लगीं…रंजना को बहुत दुख हुआ।उसकी आँखों में आँसू आ गये।उस समय उसकी ननद प्रतिभा जीजी भी वहीं थी।उन्होंने बच्चियों को चाॅकलेट देकर चुप कराया और रंजना से बोली,” अम्मा की बात को दिल पर मत लिया कर।उनका तो यही स्वभाव है।पता है…मैं बीएड करके टीचर बनना चाहती थी…बच्चों को पढ़ाना चाहती थी लेकिन अम्मा ने मुझे पढ़ने नहीं दिया।बाबूजी से कहने लगी कि लोग बातें बना रहें हैं कि परबतिया चाची की बेटी तरह प्रतिभा भी भाग जाएगी।बहुत हो गई लिखाई-पढ़ाई..अच्छा-सा लड़का देखकर उसके हाथ पीले कर दीजिये…।अम्मा की बात बाबूजी टाल न सके और मैं चूल्हे में झोंक दी गई।” कहते हुए उनकी आँखों से झर-झर आँसू बहने लगे।अपनी आँसू पोंछकर फिर बोलीं,” अब मेरी तो बेटियाँ हैं नहीं लेकिन रंजना…चाहती हूँ कि मेरी दोनों भतीजिया खूब पढ़े और आगे बढ़े।अम्मा की तरह तुम लोगों की बातें मत सुनना..लोगों का तो काम ही होता है बातें बनाना…तुम बस अपने मन की सुनना।” 

        उस दिन के बाद से रंजना सिर्फ़ अपनी बेटियों की पढ़ाई पर ध्यान देने लगी।मानसी ने एनडीए की परीक्षा पास कर ली।उसे इंटरव्यू के लिये दिल्ली जाना था…दिल्ली में लड़कियों के साथ कुछ अनहोनी होने की घटनाएँ सुनकर उसके आस-पड़ोस बातें बनाने लगे तो वह विचलित हो उठी थी।

  ” अरे रंजना…यहाँ अकेली क्यों बैठी हो…मानसी के दिल्ली जाने की तैयारी हो गई?” प्रशांत की आवाज़ सुनकर रंजना की तंद्रा टूटी।वह धीरे-से बोली,” मैं सोच रही थी कि…दिल्ली में जो बच्ची के साथ हुआ है तो..अभी..।” कहते हुए उसकी आँखें नम हो गईं।

     सुनकर प्रशांत हा-हा करके हँसने लगे, बोले,” इसीलिए तो हमारी बेटी आर्मी ज़्वाइन करने जा रही है ताकि वो देश और समाज के दुश्मनों के छक्के छुड़ा सके।चलो…अब उसकी पैकिंग करो..कल सुबह हमें जल्दी निकलना होगा।”

       इंटरव्यू क्लियर करके मानसी ट्रेनिंग के लिये हैदराबाद चली गई।उसकी पोस्टिंग भी वहीं ही हो गई।दो साल बाद प्रमोशन के साथ उसका तबादला जालंधर हो गया।इसी बीच पायल ने भी फ़ैशन डिज़ाइनिंग का कोर्स कर लिया था और उसे मुंबई में ज़ाॅब भी मिल गई थी।

      अपनी बेटियों की सफ़लता के उपलक्ष्य में प्रशांत ने एक पार्टी दी।अपने सभी दोस्तों और रिश्तेदारों को इंवाइट किया था।सभी मानसी और पायल को बधाई और शुभकामनाएँ दे रहें थें…साथ ही, वे आपस में कह भी रहें थें कि बेटी हो तो ऐसी।तब प्रतिभा जीजी रंजना से बोली,” देखा रंजना…कल तक जो हमारी बेटियों की तरक्की में रोड़ा बने हुए थे…वही आज प्रशंसा कर रहें हैं।”

     ” हाँ प्रतिभा जीजी….काश! आज अम्मा जी होतीं तो…।”

     ” अम्मा जहाँ भी हैं..अपनी पोतियों को आशीर्वाद दे रहीं हैं रंजना।” कहते हुए प्रतिभा जीजी रंजना के साथ मेहमानों का स्वागत करने लगीं।

                               विभा गुप्ता 

                                 स्वरचित

                      ( सर्वाधिकार सुरक्षित )

# लोगों का तो काम ही होता है बातें बनाना

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!