अपने अपने संस्कार – निभा राजीव “निर्वी”

आज बड़े दिनों के बाद निधि की बचपन की सहेली विनीता उससे मिलने आई थी। यूं तो दोनों एक ही शहर में रहते थे मगर कामकाजी होने के कारण व्यस्तता इतनी हो जाती थी कि मिलना कभी-कभार ही हो पाता था। निधि ने बड़े मन से विनीता के पसंद का बेसन का हलवा बनाया था ढेर सारे मेवे डालकर। अभी प्लेट उसके आगे रखी ही थी तभी बाहर से उसका बेटा नमन पड़ोसी के बेटे मोहित के साथ खिलखिलाते हुए अंदर घुसा। दोनों की धमाचौकड़ी में मोहित का हाथ लगा और कोने में रखा फूलदान टूट गया। पिछले हफ्ते ही यह फूलदान खरीद कर लाई थी निधि। बेहद पसंदीदा था उसका। उसका चेहरा उतर गया पर उसने अपने आप को संभाल कर मोहित को समझाते हुए कहा, “-बेटा, घर के अंदर ऐसे धमाचौकड़ी नहीं करते। देखो नुकसान हो गया ना।”

मोहित ने सहमकर कहा, “- सॉरी आंटी!गलती से हो गया!”

निधि ने कहा “-कोई बात नहीं, आप दोनों बैठकर लूडो खेलो!” और टूटे हुए फूलदान के टुकड़े समेटने लगी।

अभी तो वह सारे टुकड़े समेट भी नहीं पाई थी कि तभी उसकी पड़ोसन मोहित की माँ धमधमाते हुए आ पहुंची और तीखे स्वर में निधि से बोली, “- निधि, तुमने अपने बच्चे को कुछ तमीज सिखाई भी है या नहीं। सोफे पर पानी गिरा डाला। पूरे 55000 का सोफा है हमारा! अरे दूसरों के घर जाते हैं तो कम से कम तमीज से रहना तो सीखें।”

        उसके बेटे नमन ने यह सब सुनकर सहमते हुए कहा,”- मम्मी, मैं तो मोहित को बुलाने गया था और वहां पानी पीने लगा तो कुछ बूंदें सोफे पर छलक कर गिर गईं। मम्मी, मैंने ऐसा जानबूझकर नहीं किया था।”




          कर्कशा पड़ोसन ने उसे फिर से डपटा, “- तू तो चुप ही रह। बित्ते भर का छोकरा और जुबान गज भर की। अपने घर में ऐसी चीजें हो तब तो समझेगा, पूरा सोफा बिगाड़ दिया….. निधि, तुम आइंदा से कभी इसे मेरे घर भेजना तो थोड़ी तमीज सिखा कर भेजना… आगे से फिर ऐसा हुआ तो फिर मैं आगा पीछा कुछ नहीं सोचूंगी हां…”

 निधि को क्रोध तो बहुुत आया फिर भी उसने शांत स्वर में पड़ोसन से कहा, ” मिसेज मेहरा, आप चिंता ना करें, मैं इसे समझा दूंगी, बच्चों से छोटी मोटी गलतियां होती रहती हैं।”

       मिसेज मेहरा फिर बिफरी,”-अरे तुम इसे छोटी गलती कह रही हो, इसने आज ऐसा किया है कल कुछ और करेगा…. लगाम कसो इसकी…।”

           अब विनीता से नहीं रहा गया। उसने उठकर कहा,”- मिसेज मेहरा,बस बहुत हो गया। निधि आपसे कुछ नहीं कह रही है इसका मतलब यह नहीं कि आप कुछ भी बोलते जाओ….अभी-अभी आपके बेटे के हाथों से लगकर यह फूलदान टूट गया है पर निधि ने तो आपसे इसकी शिकायत नहीं की। उसने प्यार से आपके बेटे को समझा दिया। अगर नमन से पानी की कुछ बूंदे सोफे पर छलक भी गईं तो पानी ही तो है, सूख जाएगा। कौन सा उसने बाल्टी भर पानी आपके सोफे पर उड़ेल दिया है। जिस बात की अपेक्षा आप दूसरों से रखती हैं ना, कभी कभी खुद पर भी लागू कर लिया कीजिए…”




       उसकी इस बात पर पड़ोसन भौंचक्क रह गई। निधि ने पुन: शांत स्वर में उससे कहा,”मिसेज मेहरा, चाहती तो मैं भी आपकी बात का जवाब आप के ही तरीके से दे सकती थी मगर ऐसे हंगामा खड़ा करने से और कड़वाहट घोलने से कोई फायदा नहीं है और बच्चों से गलतियां हुई हैं तो हम उन्हें समझा देंगे। बस बात खत्म… चलिए, अब आप भी अपना मूड सही कीजिए। और मैंने हलवा बनाया है। थोड़ा आप भी ले जाइए और चख कर बताइए कैसा बना।” और थोड़ा हलवा एक डब्बे में पैक करके मैसेज मेहरा के हाथों में थमा दिया। उसके इस अप्रत्याशित सौम्य व्यवहार पर मिसेज मेहरा की बोलती बंंद हो गई और वो थोड़ा सकपका गई। फिर “थैंक यू” बोलकर हलवे का डब्बा पकड़ा और मोहित का हाथ पकड़ कर अपने घर चली गई।

         उसके जाते ही विनीता फूट पड़ी निधि पर ,”-यह क्या है निधि? वह तुमसे अनाप-शनाप बके जा रही थी और तुमने इतनी शांति से जवाब दिए जा रही थी।और तो और हलवे का डब्बा भी पकड़ा दिया..हद हो गई…”

        निधि मुस्कुरा पड़ी,”शांत हो जा माते, शांत हो जा !!…अरे मैंने उनसे अपनी बात तो कह ही दी ना.. पर उनकी तरह चीखना चिल्लाना मेरा स्वभाव नहीं है। और तुमने देखा न..कैसे उनकी बोलती बंद हो गई। और एक बात और याद रख, उन्होंने जो व्यवहार किया उसमें उनके संस्कारों की झलक थी और मैंने जो व्यवहार किया उसमें मेरे… अपने अपने संस्कारों की बात है…..चल अब जल्दी-जल्दी हलवा खा, ठंडा हो रहा है।”

       उसकी इस बात पर विनीता भी मुस्कुरा पड़ी और उसने एक चम्मच हलवा उठाकर अपने मुंह में डाल लिया। हलवे का स्वाद उसके मुंह में बिल्कुल घुल गया। उसने चटखारे लेते हुए कहा,”-यह हलवा तो बहुत ही स्वादिष्ट है और मीठापन बिल्कुल तेरे संस्कारों जैसा.”….और दोनों सखियां खिलखिला पड़ीं।

निभा राजीव “निर्वी”

सिंदरी, धनबाद, झारखंड

स्वरचित और मौलिक रचना

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