अपनापन – बालेश्वर गुप्ता : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi : बेटा, बबलू सुना है अपनी रश्मि को देखने वाले आये थे,बंसी ने तो कुछ बताया नहीं, पता नही क्या हुआ?तुम पता तो करो।

ठीक है,पापा मैं सूरज भैय्या से बात करूंगा,तभी पता चल पायेगा।

       शांति शरण और बंसीधर दोनो सगे भाई थे।पिता बनारसीदास के गुजर जाने के बाद दोनो भाई स्वेच्छा से अलग अलग अपना कारोबार चलाने लगे।बनारसी दास जी दो अच्छे बड़े घर बना कर छोड़ गये थे,शायद अपने दो पुत्रों को ध्यान में रखकर ही ऐसा किया होगा,सो दोनो ने एक एक घर भी बाट लिया। शांति शरण जी के एक ही बेटा था जिसको वे बबलू के नाम से ही पुकारते थे,जबकि बंसीधर के एक बेटा सूरज तथा एक बेटी रश्मि ,दो संतान थी।शांति शरण जी ने बंसी के पड़ोसी से सुना था कि कल तो रश्मि को देखने वाले आये थे।

          बबलू को कुछ सूरज से तो कुछ अन्य जानकर से ज्ञात हुआ कि रश्मि राजेश से प्यार करने लगी थी और उसी से शादी करना चाहती थी,यह बात रश्मि ने अपनी मां को बता दी थी।राजेश होनहार लड़का था,इस कारण बंसी और उसकी पत्नी को कोई एतराज नही था,पर राजेश ने संकोचवश रश्मि से प्रेम संबंधी बात अपने घर नही बतायी थी।बंसी अपने पुत्र के साथ रश्मि के राजेश से रिश्ते के लिये सामान्य रूप में राजेश के घर पहुँच गये और राजेश का हाथ रश्मि के लिये मांगा।इसी क्रम में राजेश के घरवाले रश्मि को देखने उनके घर आ थे।रश्मि सुंदर समझदार होनहार थी,न पसंद की कोई गुंजाइश थी ही नही।राजेश के माता पिता को रश्मि पसंद आ गयी।राजेश रश्मि को अलग से बातचीत का अवसर दिया गया।इसी बीच राजेश के पिता ने बंसीधर जी से मारुति कार तथा दो लाख नगद की डिमांड रख दी।उन दिनों मारुति कार नयी नयी आयी थी,और दो ढाई लाख की कीमत की थी।

         शांतिशरण जी का काम बंसीधर के मुकाबले काफी बेहतर चल रहा था।बंसीधर और उसकी पत्नी ने यूँ तो रश्मि की शादी के लिये काफी सामान एकत्रित किया हुआ था पर अतिरिक्त रूप में दो लाख रुपये और कार देने की सामर्थ्य उनमें नही थी।मन मारकर रश्मि की इच्छा को पूरी न कर पाने की कसक लिये वे विचार करने लगे कि क्या बेचा जाये जिससे बेटी की खुशी पूरी हो जाये।रश्मि सबकुछ समझ रही थी उसने घर मे एलान कर दिया कि शादी नही करेगी।इस एलान का मतलब बंसीधर जी खूब समझ रहे थे,बेटी अपनी खुशियों का त्याग हमारी मजबूरी के आगे कर रही है।आँसुओं को पीते हुए  वो कुछ भी कहने की स्थिति में नही थे।

      इधर शांतिशरण जी को जब सब बातचीत का पता चला तो उन्होंने रश्मि की शादी कराने का निश्चय कर लिया।वे जानते थे बंसी उनसे कुछ नही कहेगा,ऐसे ही घुटता रहेगा,रश्मि का जीवन दाव पर लग जायेगा,तो उन्होंने एक उपाय सोच लिया।वे स्वयं राजेश के घर गये और उसके पिता से मिले,अपना परिचय दिया और बताया कि रश्मि उनकी भी बेटी है।उन्होंने पाँच लाख रुपये रखे हुए एक बैग को उनके समक्ष रखते हुए कहा कि सेठ जी ये पाँच लाख रुपये है इसमें कार भी आ जायेगी और दो लाख से अधिक ही बच भी जायेंगे।आप कृपया बंसीधर को इस विषय मे कुछ भी न बताकर रश्मि को स्वीकार करने का संदेश भेज दे।राजेश के पिता कुछ शर्मिंदा से तो हुए पर आयी माया को भी कैसे छोड़े सो उन्होंने शांतिशरण जी का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया।

        खुले तौर पर कार और दो लाख की मांग करने वाले राजेश के पिता द्वारा बिना मांग पूरी किये ही रश्मि से राजेश की शादी की हामी भरने पर बंसीधर जी को आश्चर्य तो हुआ पर सोचा भगवान ने ही यह सब संयोग जोड़ा होगा।वे रश्मि राजेश की शादी की तैयारी में जुट गये।

       तय तिथि को रश्मि राजेश की शादी धूम धाम से सम्पन्न हो गयी। शांतिशरण जी द्वारा दिये पांच लाख के विषय मे किसी को नही पता नही था।रश्मि और राजेश अपनी जीवन मंजिल को पा बेहद खुश थे।सोने में सुहागा तो तब हो गया जब उनकी शादी के पंद्रह दिनों बाद ही उनके लिये मारुति कार आ गयी।मारुति कार के आगमन पर राजेश का माथा ठनका ,उसे विश्वास ही नही था कि उसके पिता कार खरीद लेंगे।पर उसने अपने मन को दिलासा दे ली कि शादी की अत्याधिक खुशी ने पिता को दरियादिल बना दिया होगा।

      एक दिन जब राजेश ने अपने पिता को मां से बातचीत करते सुना तो वह भौचक्का रह गया कि कार पिता की दरियादिली नही बल्कि रश्मि के ताऊ जी का मौन त्याग था।उसका मन अपने पिता के प्रति वीरक्ति से भर गया।राजेश ने यह बात रश्मि से छुपाई नही बल्कि उसने रश्मि के ताऊ जी से मिलने की इच्छा जाहिर की  जिन्होंने निःशब्द रश्मि राजेश के सहजीवन का मार्ग प्रशस्त किया था।

       रश्मि को अब अहसास हुआ कि ओह तो यह बात थी जिसके कारण राजेश के पिता हमारी शादी को तैयार हो गये थे।अगले ही दिन राजेश और रश्मि शांतिशरण जी के घर गये।उनको देख पूरे घर मे उत्सव का सा माहौल हो गया।दामाद जी घर आये है,सब उनकी खातिरदारी में जुट गये।इतना सम्मान बिना किसी दिखावे के राजेश अभिभूत हो गया।शांतिशरण जी से जैसे ही राजेश का अकेले में मिलना हुआ तो राजेश ने उनके चरण स्पर्श करते हुए कहा बड़े पापा आपका अहसान जिंदगी पर भी नही उतार पायेंगे, आपने ही मुझे और रश्मि को जीवनदान दिया है,पापा आप बहुत ऊंचे हो।अचकचा कर शांतिशरण जी ने राजेश को अपने सीने से चिपका लिया अरे रश्मि मेरी भी तो बेटी है रे।तू ये क्या कह रहा है?चल बड़ी बड़ी बात मत कर।आ चाय ठंडी हो रही है।

     बालेश्वर गुप्ता,पुणे

मौलिक एवं अप्रकाशित

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