अनुरोध – गोमती सिंह

शाम का समय था । सूर्य देवता अस्तांचल की ओर रवाना करनें लगे थे । पक्षी वृन्द अपनें अपनें नीड़ की ओर वापस हो रहे थे । वातावरण में अंधेरा छाने लगा था। अंधेरे में डूबते इस दृश्य को देखकर सुनीता का मन उदासी के सागर में खोने लगा ।

              वह सोंचने लगी कि क्या हमारे देश के पुरूषों की छवि इस अस्त होते सूर्य की भाँति अंधेरे में समा जाएगी ? क्या यह वही देश है जहाँ श्री रामचन्द्र जी ने एक पत्नी व्रत पुरूष का आदर्श स्थापित किया था , जहाँ अखिल विश्व ब्रम्हाण्ड के नायक नें सगुण रूप अवतरित हुए थे ।जहाँ गुरू नानक, महावीर , पीर पैगम्बर आदि महापुरूषों नें जन्म लिया था , और समूचे विश्व को मानवता और सभ्यता का पाठ पढाया था । जिन्हें भुलाकर आज के समाज के नवयुवक चरित्रहीन होते जा रहे हैं। 

       आज सुनीता को एक महिला द्वारा सुनाई गई आप बीती याद आनें लगी।  जिसे वह एक जन्मदिवस समारोह में सुनी थी जो उसके मस्तिष्क में चल-चित्र की भाति चलने लगा ।

       गोरे चेहरे पर धंसी आँखे तथा नाक के ऊपर बने झांई के निशान साफ-साफ दर्शा रहे थे कि इस महिला को किसी गहरी चिंता ने जकड़ लिया है,

          मैं जन्मदिन समारोह में  उस महिला के पास जाकर बगल में कुर्सी लगाकर बैठ गई।  क्योंकि पत्रकारिता का पेशा ही ऐसा है कि वह हर समस्या का समाधान अपनी लेख के माध्यम से करना चाहता है ।

       इसीलिए कलम को तलवार भी कहा जाता है जिससे समाज के किसी भी दानव का संहार तथा समाज को सही दिशा दिखिने का कार्य  शान्ति पूर्ण तरीके से किया जा सकता है ।

          अतः मैं उस महिला को उसकी  चुप्पी से  बाहर निकालने के लिए कुरेदने का प्रयास किया ताकि उसके समस्या का हल निकल सके ।

       मैंने उसके पास जाकर बैठ कर पूछा – क्या बात है दीदी ! सब हंस-हंस कर बाते कर रहे हैं और जन्मदिन का जश्न मना रहे हैं और आप चुपचाप बैठे हुए हैं ।


          तब उस महिला ने कहा– ” क्या बताऊँ बहन , मैं भी कभी सुख और ऐश्वर्य में डूबी रहती थी । ” मेरा सुख भगवान को नहीं देखा गया , मेरे हंसते खेलते परिवार से मेरे पति को ले गये।  और मुझे मेरे बेटा-बेटी के साथ बेसहारा कर दिए। 

       मेरे स्व .पति के कंपनी के प्रावधानों  व अधिकारियों की दया से मुझे अनुकंपा नियुक्त मिल गई और मैं माँ-बाप दोनों की जिम्मेदारी निभाते हुए जीवन यापन करने लगी । तब सिर्फ यही चिंता रहती थी कि किसी भी तरह दोनों बच्चों के लिए रोटी , कपड़ा और मकान की ब्यवस्था हो जाए।  महिला ने आगे कहा–“मगर अब मेरी बिटिया 16 वर्ष की उम्र की हो गई अब…..” ऐसा कहते हुए उसने जबान पर आई बात पर लगाम लगाते हुए  एकाएक विराम लगा लिया ।तब मैंने बोला ” चुप क्यों हो गई दीदी ? आप कुछ छुपा रही हैं, बोल डालिए दीदी! दिल का बोझ हल्का कर लीजिए, क्योंकि बांटने से दुख हल्का होता है ।”फिर उस महिला ने कुछ सहज होकर बोली- मेरी बेटी बहुत सरल एवं सीधी है , भगवान ने उसे खूबसूरती से नवाजा है  ।जो आज किसी विधवा की बेटी होने के कारण अभिशाप बन गया है।

       मैं घर से आठ-आठ घंटे बाहर रहती हूँ और मेरी बिटिया अपने छोटे भाई के साथ अकेले रहती है ।

         मैंने कहा-” तो इसमें चिंता की क्या बात है दीदी!”उसने कहा- चिंता तो यहीं से शुरू होती है बहन !

         मेरे काॅलोनी में कुछ नवयुवकों का झुण्ड है , जो किसी भी महिला को छेड़ने से नहीं चूकते । बातचीत में मशगूल होते हुए भी उसकी छठी इंद्रिय घर पर छोड़ आई अपनी बेटी पर लगी हुई थी।  जिसका ख्याल आते ही वह महिला चौकन्नी हो गई, पर्स में रखी हुई अपनें मोबाइल घड़ी में समय देखने लगीं जिसमें रात्रि के 9:30 ,बज रहे थे ।

   काफी रात हो गई बहन अब मैं चलती हूँ। इतना कहते हुए उसने किसी के साथ हो लेने की जरूरत नहीं समझी और लंबे लंबे कदमों से चलने लगी ।और मेरे मन में ऐसे चंद नवयुवकों की वजह से पुरूष जाति पर नफरत का एक और पन्ना पुख्ता कर दिया।

               क्या पुरुष जाति को अपने चरित्र की ज़रा सी भी चिंता नहीं रहती ? क्या वो अपने गिरते छवि के लिए सजग होकर कोई ठोस कदम नहीं उठाएंगे ? इन नवयुवकों को अपने बेहतर भविष्य की चिंता क्यों नहीं रहती !!! मैंने पत्रकारिता के क्षेत्र में अनेकों लेख प्रकाशित कराया है मगर ऐसे दानव रूपी मानवों के लिए कुछ भी नहीं लिख पा रही हूँ। 

        बस ऐसे नवयुवकों के पालको से अनुरोध है कि वे उनके उज्वल भविष्य के प्रति सतर्क होकर काम करें और महिलाओं को भी स्वछन्द वातावरण में विचरने का अवसर प्रदान करें

      ।।इति।।

       -गोमती सिंह

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