इंसानियत – कंचन श्रीवास्तव

रिया के होने के साथ ही रेखा की चिंताएं बढ़ने लगी बढ़ना लाज़िमी भी है बेटी जो ठहरी ,भले आज जमाना बदल गया है बेटियां बेटों से कंधे से कंधा मिलाकर चल रही पर देख भाल रहन सहन चाल ढाल का ख्याल तो रखना ही पड़ता है उसे ऐसी परवरिश देनी होगी जिससे आगे चलकर वो  हर परिस्थितियों का सामना आसानी से  कर सके । ये  बराबरी का भ्रम जो लोगों ने पाल रखा है ना वो कहीं न कहीं गलत है ।खैर जो भी हो मैं तो अपनी बेटी को एक अच्छे संस्कार दूंगी ‌साथ ही अपनी सुरक्षा वो खुद कर सके इसके लिए उसको कराटे की ट्रेनिंग भी दिलवाऊंगी।

पढ़ाई लिखाई शान शौकत अपनी जगह और मान मर्यादा बोल भाषा अपनी जगह ये थोड़े की पढ़ लिखकर बदजुबानी करें अरे पढ़ने का मतलब और अच्छे से रहना।

जब तक लोग देखकर ये न कहें कि क्या लड़की है भगवान ने जिसने खूबसूरत नैन नक्श दिए उतने ही अच्छे संस्कार भी ।

इतनी पढ़ी लिखी नौकरी पेशा होने के बाद भी कितनी सौम्य और शालीन है ।गर ऐसी न हो तो मां की परवरिश पर धिक्कार है।

खैर वक्त बीतता गया धीरे धीरे रिया जवान हो गई अब ब्याह की चिंता सताने लगी पर उसके अनुसार कुछ समय उसे और चाहिए जब तक की वो नौकरी न कर ले।

इस पर ये मान गई।

और ईश्वर की ऐसी मर्जी इसकी नौकरी भी लग गई।

और जब नौकरी लग गई तो शादी के लिए रास्ता साफ हो गया।

पर कोई रिश्ता मानने को तैयार नहीं वजह सिर्फ इतनी  वर्षों पहले जब रिया उसके पेट में नौ महीने की थी तो अचानक पति के  आत्महत्या की खबर एक ऐसी जगह से मिली जहां लोग जाना तो छोड़ो नाम लेना पसंद नहीं करते और जब ये वहां गई तो राकेश की शव को उनसे घिरा पाया ।

इसे भरे पेट देख उसमें से एक सामने आया और इसकी 



दाह संस्कार से लेकर क्रिया कर्म करने तक में इसकी सहायता की यहां तक कि  दसवां के दिन ही इसे लेबर पेन हुआ तो वो इसे अस्पताल ले गया ।फिर वहां इसको एक चांद सी बेटी हुई।

जिसे देखकर वो तो बहुत खुश हुआ पर ये रोने लगी और जब इसने वजह  पूछा  तो ये बोली आज के इस भेड़िया समाज में अकेले इसकी परवरिश कैसे करूंगी इस पर इसने कहा परेशान मत हो आज से ये बेटी हमारी है इसकी जिम्मेदारी हम दोनों की है। इस तरह धीरे धीरे ये  दोनों एक  अच्छे दोस्त हो गए फिर तो अक्सर ही वो इसके घर आया जाया करता।जिसे लेकर लोग बहुत बातें बनाते।पर इसे इसकी कोई परवाह नहीं कि कौन क्या कहता है इसके अनुसार आखिर तब लोग  कहां थे जब मैं पति के इंतकाल के बाद अकेली हो गई थी।

उस समय तो मेरा साथ किसी ने नहीं दिया और आज जब हम अपनी दुनिया में खुश हैं तो लोग दस बातें बना रहे।

पर समस्या तब जटिल हो गई जब रिया के  लिए आए अच्छे अच्छे रिश्ते हाथ से निकलने लगे।

इस पर इसने कहा सुनो  यदि तुम बुरा न मानों तो मेरे समाज से भी लोग अच्छे पढ़ें लिखे हैं वहां चर्चा करें।

जो कि रिया ने सुन लिया।उस समय तो वो चुप रही पर उसके जाते ही अपनी मां से बताया कि वो क्या है ना कि मेरे कार्यालय में एक लड़का है जो रहता  किन्नर समाज में  पर है लड़का और मुझे उससे प्यार है गर तुम बुरा न मानों तो उससे शादी कर ले ।

ये सुन इसे तकलीफ़ तो हुई पर राकेश की मृत्यु के बाद उन अपनों ने साथ छोड़ दिया जिसकी उसे जरूरत थी।

उस समय भगवान की तरह एक किन्नर आकर सामने खड़ा हुआ।

तो क्यों न हम उसी के समान पले बड़े एक लड़के से शादी करे आखिर बुराई क्या है।

सोचते हुए उसने हां में सिर हिलाकर रजामंदी दे दी।

और धूम धाम से शादी की ।

कितनी अजीब बात है ना एक किन्नर ने उसकी परवरिश की तो दूसरे ने उसी समाज में रह कर आज एक लड़की से शादी कर ली।

और एक सभ्य समाज को चाटा मारा कि माना हम थर्ड जेंडर है पर तुम लोगों की तरह स्वार्थी नहीं है निस्वार्थ सेवा भाव रखते हैं और सबसे बड़ी बात हममें इंसानियत  जिंदा है।

 

स्वरचित

कंचन श्रीवास्तव

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