आज सब चुप थे वह बोलती थी – चांदनी झा

अजीब सी चुप्पी थी घर में। आखिर आज भी लड़केवाले, निशा के लिए मना कर के गये। फ़ोटो भेजा था मोबाइल में लड़केवालों को। पर उन्होंने कहा, लड़की थोड़ी हेल्दी है। वो तो दादी बड़बड़ाने लगी तो सबका ध्यान इद्दर-उधर हुआ….. लड़के वाले का फोन आते ही दादी, तो बड़बड़ाने लगी। अरे हेल्दी क्या है? खाते-पीते घर की है। बाल लंबे, गोरी, सिलाई-कढ़ाई सब जानती है। लड़की को देखो ना, पढ़ी-लिखी सब काम में संपन्न। लेकिन नहीं, बस फोटो देखा और मना कर दिया। निशा छत पर टहल रही थी। छत से उतरी और दादी को बड़बड़ाते हुए देख, मुस्काई।



क्या बात है दादी? अब तो मैं 30 की हो गई हूं। एक-दो साल और देख लो। बाकी तो फिर मुझसे छोटे लड़के ही मिलेंगे। दादी ने कहा बेटा तू तो लाखों में एक है। तुम दिल क्यों छोटा करती है? नहीं दादी मैं दिल कहाँ छोटा कर रही, मैं दिल नहीं छोटा कर रही हूं। मैं तो अपनी हकीकत बता रही हूं। जब मैंने स्नातक किया था, इतिहास के साथ-साथ संगीत से भी। तो मैंने संगीत में अपना कैरियर बनाना चाहा। तो आप लोगों ने मना कर दिया। कि हमें कोई कमी थोड़ी है, हम अच्छे घर में शादी करा देंगे। नौकरी तो उन्हें करने की जरूरत होती है, जिन्हें कोई कमी होती है।

फिर ना मैं नौकरी कर पाई, और ना ही अभी तक मेरी अच्छे घर में शादी हो पाई है। निशा की बातें, शायद घरवालों को चुभ रही थी। उन्हें ताना महसूस हो रहा था। पर लड़के वालों के द्वारा बार-बार लड़की अच्छी नहीं है कहना, बार-बार उसे शोपीस बनना। उसके क्या गुण है?क्या खासियत है उसकी?वह क्या है?वह क्या चाहती है, यह तो कोई जानना ही नहीं चाहता। बस बाहरी सुंदरता देखता। और इसी बाहरी सुंदरता को नजरअंदाज करने के लिए निशा कुछ करना चाहती थी।

अपने पैरों पर खड़ा होना चाहती थी। अपना कैरियर बनाना चाहती थी। अपना काम करना चाहती थी। ताकि उसकी काबिलियत को दुनिया देख सके। उसकी खुद की पहचान बने। लेकिन घरवालों ने कहा पैसों की कोई कमी नहीं है। हम अच्छा से अच्छा लड़का करेंगे। पर जब तक कोई आपके साथ नहीं रहेगा, आपको नहीं जानेगा। आप को तो आपके बाहरी दिखावे से ही जानेगा। तो फिर निशा को लड़के वाले नापसंद कर देते थे, तो निशा से ज्यादा घरवालों को चुभती थी। जब भी लड़के वाले के तरफ से मना किया जाता। 

घर में यूं ही चुप्पी, का माहौल छा जाता था। सब एक-दूसरे का मुंह देखते, कोई किसी से बात करना नहीं चाहता। वहीं निशा मुस्कुराती, तंज कसती। क्योंकि जब वह बोलती थी, कहां किसी ने सुना। जब उसकी सुनी ही नहीं गयी, तो वह किसे क्या कहती। पर आज घरों में चुप्पी होती, और निशा बोलती है। जिसकी जिम्मेदार वह नहीं थी, तो फिर वह क्यों गम मनाती।  आज भी निशा के घर वालों को इंतजार है, निशा के लिए कोई अच्छा लड़का मिल जाए। ताकि उनके घर में भी खुशियां आ सके। और रह-रह कर यह जो चुप्पी आती है, यह टूट जाए।

अपनी मैं इस कहानी के जरिए यह कहना चाहती हूं कि अपनी बेटियों को काबिल बनाए। अपनी बेटी के हुनर को मरने ना दे। उसके कैरियर में बाधा न बनें।

उसे इस लायक बनाए कि, बार-बार आपको लड़के वालों के फैसले का इंतजार न करना पड़े।

 

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