चार धाम की यात्रा पर जाने की तैयारियों में व्यस्त कामिनी जी के पैर अचानक ठिठक गए जब कमरे से आती आवाजें उनके कानों तक पहुंची
“बस भैया कल घर के कागज़ों पर मां के साइन लेने हैं फिर आप अमेरिका और मैं कनाडा” छोटे बेटे ने कहा
“और मांजी का क्या?” दोनो बहुएं एक साथ बोली
“मां तो चार धाम जा रही है ना उन्होंने जो मन्नत मांगी वो पूरी हो गई और अब हमारी मन्नत पूरी हो जाए बस इस घर के कागज मिल जाएं तो मां से छुटकारा भी मिल जायेगा।
उनके आगे पीछे घूमते घूमते थक गया हूं मैं “
बड़े बेटे की आवाज़ ने तो जैसे उनके शरीर से प्राण छीन लिए हों
उनके आंखों से अविरल अश्रू धारा बह निकली और सारी गलतफहमियां आंसुओ के साथ बह निकली
जिन बेटे बहुओं के लिए खुद के पति से लड़ती रही ,उनकी गलतियों पर पर्दा डालती रही, उनकी ये हकीकत देख उन्हें खुद से नफरत होने लगी। सच कहते थे मेरे पति अपने बेटों को इतना लाड़ प्यार में मत बिगाड़ कि बाद में वो तेरे ऊपर ही हावी हो जाएं। तुमने दोनों को ज़िद्दी बना दिया और दादा दादी , ताऊ ताई, बुआ सबसे दूर कर दिया। एक दिन ऐसा न हो कि वो तुम्हे ही खुद से दूर कर दे और आज सच में ऐसा हो रहा था
कामिनी ने पति सुरेश जी की बात हमेशा हंसी में उड़ा दी और कभी भी बेटों को बड़ों का आदर करना नहीं सिखाया ।
सिखाया तो बस मनमानी करना और अब ये ही मनमानी उस पर भारी पड़ रही थी।
सुरेश जी के एक बड़ा भाई और एक बहन थी । दोनों के पास दो दो लड़कियां थी पर सबसे पहले अपनी दादी सास को पड़पोते का सुख कामिनी ने दिया। उसके ससुर के भी दो भाई और थे पर किसी की बहु ने भी बेटे को जन्म नहीं दिया। दोनों बहुओं को बेटी पैदा हुई और दादी सास के सोने की सीढ़ी चढ़ने की तमन्ना अधूरी रह गई पर जब कामिनी के पैर भारी हुए तब दादी सास को उसने पड़ पोते का मुंह
दिखाने का वादा किया । और जब कामिनी दो जुड़वां बेटों की मां बनी तो दादी सास फूली नहीं समाई । बहुत ही बड़ा आयोजन हुआ था दादी सास के सोने की सीढ़ी चढ़ने का और दोनों बेटों को दादी सास की छत्र छाया में बड़े ही लाड चाव से पाला गया। उसके जेठ की बेटियों को कभी इतना लाड़ नहीं किया । कामिनी भी बेटों के प्यार में अंधी हो गई थी ऊपर से दादी सास की शह मिलती थी तो वो सास ससुर की
भी नहीं मानती थी। कभी कोई अच्छी बात बच्चों को सिखाना चाहते थे या कभी गलती से भी डांट देते तो कामिनी चिल्ला कर पूरा घर सर पर उठा लेती।अपने पति से भी जो चाहे बोलती थी
दादी सास के गुजर जाने के बाद उसने अपना अलग घर बना लिया था। नाते रिश्तेदारों से कम ही मतलब रखती थी। उसे बस पैसा चाहिए था और अपने बेटों की खुशी। ससुराल ही नहीं बल्कि मायके से भी उसने दूरी बना ली थी
जेठानी की बेटियों और ननद की बेटियों को भी राखी,या तीज त्यौहार पर भी कभी शगुन नहीं देती थी। पर उसके पति सुलझे हुए इनसान थे ।वो हमेशा अपने माता पिता, भाई भाभी और बहन और बच्चो का ध्यान रखते थे। एक शहर में ही रहते थे पर कामिनी न कभी उन्हें बुलाती न ही जाती। यहां तक कि सास ससुर के मिलने पर पैर भी नहीं छूती थी।
सुरेश जी नियम से अपने माता पिता और भाई भाभी से मिलने आते रहते थे।
कामिनी जी से छुपकर अपनी बहन और बच्चों की भी मदद कर दिया करते थे।
परिवार के सदस्य कामिनी के स्वभाव से परिचित थे इसलिए उस पर ध्यान नहीं देते थे । घर की शांति भंग नहीं करना चाहते थे।
वैसे भी सबने हमेशा पहल की कामिनी से संबंध सुधारने की लेकिन जब कामिनी ही राज़ी नहीं थी तो सबने उसे उसके हाल पर छोड़ दिया।
समय के साथ बच्चे बड़े हो गए। दोनों की अच्छी नौकरी लग गई और पसंद की लड़की से शादी भी।
उधर जेठानी और ननद की लड़कियां भी पढ़ लिखकर अपने पैरों पर खड़ी हो गई और उनकी भी गृहस्थी बस गई
सुरेश जी अब रिटायर्ड हो चुके थे और बीपी शुगर के मरीज़ भी।
अब अपने माता पिता से कम ही मिलने जा पाते थे। कामिनी के बच्चे भी अपनी मां की तरह परिवार में कम ही आते जाते थे। अपनी जिंदगी में मस्त रहते थे।
कामिनी ने कभी भी एक बहु होने का फर्ज नहीं निभाया। सास_ ससुर का मन बहुत दुखता था । वो सामने कभी कुछ नहीं बोलते पर कामिनी का इस तरह उनकी इज़्ज़त नहीं करना उन्हें बहुत अखरता था और कभी कभी बोल भी देते कि उसके ये कर्म उसके आगे जरूर आएंगे।
समय बीतता गया । सास ससुर भी बहु और पोतों की राह देखते देखते स्वर्ग सिधार गए। कामिनी और बच्चे जीते जी तो कभी उनके आशीर्वाद लेने नहीं आए पर सुरेश जी के कहने पर उनके अंतिम संस्कार में शामिल ज़रूर हो गए थे।
पहले ससुर जी और फिर सासु मां एक साल के अंतर में चले गए।उनकी पूरी सेवा पूजा कामिनी की जेठानी ने की ।शायद उसी का फल था कि उनकी आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं होते हुए भी उसकी बेटियों को बहुत ही अच्छा ससुराल मिला था और बिना दहेज़ की शादी हुई थी। वो भी अपने परिवार को साथ लेकर चल रही थी जैसे उनकी मां।
जबकि कामिनी के दोनों बेटों ने लव मेरिज की थी और विदेश में बस गए थे। कामिनी बड़े गर्व से अपने बेटों का गुणगान करती थकती नहीं थी। बेटे मां पिता को विदेश ले जाने के लिए कभी कहते तो सुरेश जी मना कर देते थे । उन्हें अपने देश को छोड़कर जाना कतई गंवारा नहीं था। कामिनी अकेली ही एक दो बार जाकर आई थी । वहां हमेशा के लिए रुकना संभव नहीं था क्योंकि यहां भी उसका बड़ा महल जैसा घर था जिसे कामिनी ने बड़े प्यार से सजाया था ।
सुरेश जी की तबियत भी कुछ अच्छी नहीं रहती थी लेकिन उनके मन में चार धाम की यात्रा करने की इच्छा ज़रूर थी इसलिए उन्होंने अपना और कामिनी का टिकट बनवा लिया था दिवाली बाद का
लेकिन दिवाली आने से पहले ही उन्हें अचानक हार्ट अटैक आ गया और वो हमेशा के लिए कामिनी को छोड़कर चले गए।कामिनी अब बिल्कुल अकेली पड़ गई थी। घर परिवार से उसने पहले ही संबंध कम कर दिए थे। बेटे बहु विदेश में बसे हुए थे। महल जैसे घर में वो अकेली कब तक रह पाएगी यही सोचकर उसने घर को बेचने का फैसला करके बेटे बहुओं के साथ रहने का निश्चय किया।
वहीं दूसरी तरफ बेटे भी घर को पाने की लालसा में अपना अलग ही खेल रचा चुका थे। दोनों ने मकान के नए कागजात बनवा लिए थे और मां के साइन करवाने के लिए भारत आ रहे थे। उन्होंने फोन करके कामिनी को सूचना दी कुछ इस तरह
“मां, हमारी बहुत इच्छा है कि आप चार धाम की यात्रा पर जाओ। पिताजी और आप जा नहीं सके पर अब आप आराम से होकर आओ , हम कल घर आ रहे हैं और आपके लौटने तक वहीं रहेंगे। आप फिकर मत करो”
“सच बेटा, तुमने मेरी मन की अधूरी इच्छा पूरी कर दी। ऐसे बेटे बहु भगवान सबको दे। आशीर्वाद देते हुए कामिनी खुशी से फूली नहीं समा रही थी।”
अगले दिन बच्चे आ गए थे और कामिनी भी चार धाम की यात्रा की तैयारियों में व्यस्त हो गई।न तो कामिनी ने घर को बेचने का जिक्र बच्चों से किया, ना ही बच्चों ने अपने निर्णय के बारे में मां को बताया।
बच्चों को पता था मां उनकी इच्छा का विरोध नहीं करेगी इसलिए वो घर के कागजात को लेकर आश्वस्त थे और मां के चार धाम पर जाने से पहले उनके साइन लेने वाले थे।
लेकिन होनी को कुछ और ही मंजूर था शायद कामिनी को अपने किए का प्रायश्चित करना अभी बाकी था इसलिए कमरे से आती आवाजों ने उसका ध्यान अपनी ओर खींच लिया
जिन बेटों को वो बुढ़ापे का सहारा मान रही थी वो ही उनसे किनारा करने की सोच रहे थे।
सही कह रहे थे मेरे पति कि मैने उन्हें सबसे दूर किया अब वो ही मुझे खुद से दूर करने की सोच रहे हैं। काश समय रहते मैने उनकी बात मान ली होती तो आज अपने परिवार के साथ रहती, ऐसे अकेली नहीं पड़ी होती
सोच सोच कर उनकी आंखों से आंसू बहे जा रहे थे । जो इतनी कठोर हृदय थी वो आज बच्चों की तरह अपनी गलती का प्रायश्चित शायद रोकर , कर रही थी
दबे पांव कमरे में वापस आई और एक कागज़ पर कुछ लिखने लगी।
“आदरणीय भाभीजी और भाईसाहब और प्यारी दीदी
मैने आज तक आप लोगों को सिर्फ दुख ही पहुंचाया है। कभी आपको एक परिवार नहीं समझा। मां पिताजी का हमेशा अपमान किया। बच्चियों को कभी चाची और मामी का प्यार नहीं दिया। इसी की सजा शायद मुझे मिल रही है कि मेरे अपने बेटे मुझे खुद से दूर करना चाहते हैं। मै अपनी की हुई गलतियां तो नहीं सुधार सकती पर माफी जरूर मांग सकती हूं और अपने किए का प्रायश्चित करना चाहती हूं और भगवान भी मुझे प्रायश्चित करने का एक मौका देना चाहते थे इसलिए मुझे हकीकत समय रहते पता लग गई।
मैने अपना घर बेचने का फैसला कर लिया है। इसको बेचने का हक मै भैया आपको दे रही हूं। और मिले हुए पैसे आप चारों बच्चियों में बराबर बांट दे ऐसी मेरी इच्छा है।
मेरे बेटों से कहे कि अब कभी उनके पास लौट कर नहीं आऊंगी।
ये घर मेरा है और मेरा ही रहेगा।
कामिनी…
खत को कामिनी ने अपने तकिए के नीचे रखा और सुकून की नींद सो गई।
सुबह जब बच्चे आए तो कामिनी हमेशा हमेशा के लिए सो चुकी थी। सारा घर परिवार इकट्ठा हुआ और कामिनी के प्रायश्चित का इतना अनोखा रूप देखकर हर कोई दंग था।
दोस्तों घर परिवार में छोटी मोटी कहा सुनी होती रहती है पर सम्बन्ध खत्म कर लेना किसी समस्या का समाधान नहीं होता। कोई गलतफहमी हो भी तो आपस में बैठकर सुलझाई जा सकती है। बड़े बुजुर्गों के आशीर्वाद से खुद को दूर करना उचित नहीं। माता पिता की सेवा , आदर सत्कार हमे जाने अनजाने में अनहोनी से बचाते हैं और आने वाली पीढ़ी को भी अच्छे संस्कार मिलते है
इसलिए माता पिता ,परिवार जनों का साथ हमे कभी नहीं छोड़ना चाहिए। प्रायश्चित कर लेने से मन की संतुष्टि जरूर मिल सकती है पर जो गलती हम कर चुके होते हैं माता पिता के दिल दुखाने की, उसका फल हमे प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से मिलता ही है।
ये मेरे अपने विचार हैं , आपकी क्या राय है?
अपनी प्रतिक्रिया देकर मेरा उत्साहवर्धन करना न भूलें
धन्यवाद
निशा जैन