औलाद की उपेक्षा का दंश – सुषमा यादव

जिएं तो जिएं कैसे बिन तुम्हारे,,

**** ,,, कुछ दर्द बह जाते हैं, आंसू बनकर,,

कुछ दर्द चिता तक जातें हैं,,,****

,, कुछ स्मृतियां ऐसी होती हैं, जो कभी भी धूमिल नहीं होती हैं, जिंदगी में कुछ अपने बहुत ही अज़ीज़ होते हैं, जो हमसे बिछड़ जाते हैं,,हम उन्हें विस्मृत नहीं कर पाते,बस समय की धुंध उन पर छा जाती है,,,,

,,,, कुछ ही गिनें चुनें लोगों को बुलाया गया था,, कुछ बड़े भाई के दोस्त, कुछ मेरी ख़ास सहेलियां और कुछ उसके प्रिय दोस्त,,,, एक टेबल पर बड़े से केक के साथ मोमबत्तियां सजी थीं, एक थाली में आरती, गुलाबों की बड़ी सी माला, फूल और एक गुलदस्ता,, एक बड़ी सी प्लेट में तरह तरह की मिठाईयां रखीं थीं,सब लोग अपने अपने स्थान पर खड़े हो गए,, ख़ामोश से,, मोमबत्तियां जलाई गई, लेकिन ये कैसा जन्म दिन मनाया गया,, नाम ही तालियां बजीं ना ही ,, हैप्पी बर्थडे,,का खुशनुमा स्वर उभरा,, और ना ही कोई मोमबत्तियां फूंकने आगे बढ़ा,,ना ही किसी ने केक काटा,, मोमबत्तियां जल जल कर बुझती रहीं,, और इन सबके बीच मात्र सिसकियों के स्वर रह रह कर सुनाई दे रहे थे,,, खामोशियों और सिसकियों के बीच मनाया गया एक अविस्मरणीय जन्म दिन,,,,




भाई ने आगे बढ़ कर केक काटा,,उसे खिलाने को आगे बढ़ा,तो मां के साथ साथ सबकी दबी हुई रुलाई फूट पड़ी,, क्यों कि जिसका जन्म दिन मनाया जा रहा था,, वो तो एक तस्वीर बन गया था,केक काटने वाला तो एक गुमनाम सितारा बन गया था,,जो तमाम सितारों के बीच जाने कहां गुम हो गया था,,,

,,,,, मैं एकटक ख़ामोश उस निश्छल, मासूम, खूबसूरत चेहरे को निहारती रही,, और मेरी आंखें सावन,भांदो बरसाती रही,,,, एकाएक मुझे लगा कि जैसे वह व्यंग्य भरी मुस्कान से कह रहा हो,,,,,अब मेरा जन्म दिन मेरी इच्छानुसार मना रहे हो,,जब मैं बहुत दूर जा चुका हूं,, मैं कितनी मिन्नतें करता, सबसे मनुहार करता,, जैसे मेरे दोस्तों का जन्म दिन मनाया जाता है, एक बार मेरा भी मना दीजिए, प्लीज़,,पर किसी ने भी मेरी नहीं सुनी,,अब पछताने और रोने धोने से क्या फायदा,अब तो मैं बहुत दूर जा चुका,,,,, अलविदा,, अलविदा,,

,,,जो कुछ किया गया, उसकी इच्छानुसार ही किया गया, उसकी आत्मा की शांति के लिए,,,

**** वह मेरा मंझला भाई था,,लंबा,गोरा, खूबसूरत,,, अतिमहत्वाकांक्षी,आकाश में छलांगें लगाने की तमन्ना,, चंचलता उसमें कूट कूट कर भरी थी,, अपने लच्छेदार बातों से वो सबका मन मोह लेता था,, तमाम खूबियों से भरपूर,,गायन, डांस, किसी भी प्रतियोगिता में भाग लेना,, भाषण,लेखन,, खेल वगैरह,, और इसमें भाग लेने वो

विभिन्न जिलों में जाता,, प्रिंसिपल और सभी शिक्षकों और दर्शकों, तथा दोस्तों का चहेता, तथा लोकप्रिय था, शुद्ध साहित्यिक भाषा में बोलता, कहानी, कविताएं लिखता और मधुर आवाज़ में सुनाता,,सब उसे अमिताभ बच्चन की उपाधि देते,उसका नाम ही,,अमित,, पड़ गया था,,




,, जितना बाहर वह लोकप्रिय था, घर में उतना ही उपेक्षित था,सब उसके साथ दुर्व्यवहार करते, उसके प्रतिभा, उसके गुणों को किसी ने भी तारीफ नहीं की,बस डांट,डपट और मार ही पड़ती,, पिता जी कहते, ये दुनियादारी, ये सब छोड़ो, पढ़ाई में ध्यान दो,, लेकिन जब वो बारहवीं कक्षा में प्रथम आया तो भी किसी ने उसको बधाई नहीं दिया,, जबकि वो गणित विषय लेकर जिले में प्रथम आया था,

,,, उसमें बहुत ही विलक्षण प्रतिभा थी पर एक अवगुण था, वो बहुत ही संवेदनशील और भावुक था,, किसी की विपत्तियों और परेशानियों में आधी रात को जाकर मदद करना,, कोई भी कार्य हो,सब मोहल्ले वाले उसे ही आवाज देते,,इस पर हम सब गुस्सा हो जाते,, अपनी पढ़ाई का नुक़सान करके बस सबकी तीमारदारी करते रहो,,

सबकी बेरूखी और उपेक्षा सह कर धीरे धीरे उसमें उदासी और नैराश्य भावना भरती गई,,बस यही कहता,, पता नहीं क्यों बाबू जी मुझसे इस तरह का व्यवहार करते हैं,, क्यों मेरी उपेक्षा करते हैं।

,,वह इंजीनियर बनना चाहता था,,पर उसके प्रवेश परीक्षा की तारीख और भाई के विवाह की तारीख एक दिन ही निकली,, वो बहुत रोया धोया , बहुत अनुनय विनय किया,कि शादी की तारीख बदल दें,,पर किसी ने नहीं सुना, मुझे तो शादी करके वैसे ही पराई कर दिया गया था,, मेरी कौन सुनता,, उसके सभी दोस्त परीक्षा में पास हो गये, और उन्होंने इंजीनियरिंग कॉलेज में दाखिला ले लिया,,ये देखकर वह हताश हो गया ।।




एक चंचल मस्त अल्हड़, खिलखिलाता वो किशोर एकदम ख़ामोश हो गया,,,ना किसी से बोलना,ना किसी से कुछ कहना, बुलाने पर भी किसी की कोई मदद नहीं करना,,बस गुमसुम सा हो गया,,भाई कहता, मेरी शादी से इसे जलन हो रही है,,पर किसी ने भी उसकी अन्तरात्मा में झांकने की‌ कोशिश नहीं की,,, किसी ने उसका दर्द नहीं समझा,,,

,,,वह अपऩो के ही‌ उपेक्षा का शिकार होकर मेरे पास अपनत्व पाने,, वही पढ़ने के उद्देश्य से आया,, कालेज में एडमिशन ले लिया,,, बहुत जल्द ही उसने वहां भी अपनी उपलब्धियां और बुद्धिमत्ता के झंडे गाड़ दिये,, बारहवीं कक्षा में बहुत अच्छे नंबरों से पास होने पर,,उसे सम्मानित किया गया और अभिनंदन समारोह आयोजित कर के अभिनंदन पत्र प्रदान किया गया,,पर उसने घर वालों को नहीं बताया,, कहने पर उदासीन भाव से कहा,, दीदी, उन्हें बताने का कोई मतलब नहीं,, उनके पास मेरा पत्र पढ़ने का भी समय नहीं है,,उस समय फोन कोई नहीं जानता था ।।

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,, फिर मैं वापस अपने मायके आ गई, , वो वहीं रहकर पढ़ाई करने लगा,उसने वहां से लेटर भेजा, मैं एयरफोर्स के लिए इंजीनियरिंग प्रवेश परीक्षा में पास हो गया हूं।

फर्स्ट ईयर के तीन पेपर दे चुका हूं,दो पेपर देने के बाद मैं ट्रेनिंग के लिए चला जाऊंगा,, मैंने पत्र पढ़ते ही खुशी के मारे चिल्ला कर कहा,, आपका बेटा, आसमां में उड़ गया,,उसका बरसों का सपना पूरा हो गया, मुझे नहीं मालूम था कि अचानक ही मेरे मुंह से निकली बात सच साबित हो जाएगी, वो तो सचमुच अनंत आकाश में उड़ चला था।

पिता जी ने आकर पत्र पढ़ा और गुस्से से पत्र लिखकर सख्ती से कहा,,,तुम्हे यही नौकरी मिली थी,,, जिसमें जिंदगी का कोई ठिकाना नहीं रहता,, पढ़ाई पूरी नहीं हुई और चल दिए, नौकरी करने,, कहीं नहीं जाना है, सीधे परीक्षा दो, और अब तुम यहीं आकर पढ़ोगे,,




,,,बस और नहीं बस और नहीं,,

,ग़म का दरिया और नहीं,

सहने की शक्ति अब खत्म हो गई,, रही सही उम्मीद भी चली गई, शायद उसने यही सोचा होगा,,,, गायत्री मां का भक्त,, दीदी का दुलारा, एकादशी व्रत भी

धारण किए ,**** 

***** सबके देखते, देखते,, रेल्वे स्टेशन से आती हुई ट्रेन के सामने छंलाग दिया,****

इस तरह एक होनहार, मेधावी बेटा अपने ही माता पिता की उपेक्षा का शिकार हो गया, और

अपने पिता को आजीवन इस उपेक्षा का दंश चुभा गया, जिसकी वेदना से वो आजीवन नहीं उभर पाए।।

इस सच्ची कहानी के माध्यम से मैं बस इतना ही कहना चाहूंगी कि,, अपने बच्चों से मित्रवत व्यवहार करिये,,उनको बराबर का प्यार दीजिए,, उनकी बातें ध्यान से सुनिए,, वरना बाद में जिंदगी भर पछताना पड़ेगा,, वो दर्द हमारे दिल में हमेशा के लिए एक नासूर बन कर रह जायेगा,, मेरे पिता जी भी ग़म में पागल हो गए थे,,जब उन्हें पता चला कि एयरफोर्स वालों ने पूरे विधि विधान से अपने भावी इंजीनियर को सलामी दी है,,




,,,आज सबके पास सब कुछ है, नहीं है तो बस वो प्यारा सा बेटा, प्यारा सा भाई,,

,,औलाद वालों फूलो फलो,

अपने जिगर के टुकड़े की भी सुनते चलो।।।,,

सुषमा यादव, प्रतापगढ़, उ प्र,

स्वरचित, मौलिक,, अप्रकाशित

#औलाद

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