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बहू का दर्द – किरन विश्वकर्मा

बहू रिया अस्पताल से जैसे ही अपनी बिटिया को लेकर घर के बाहर गाड़ी से उतर कर खड़ी हुई तो घर को फूलों से सजा देखकर बहुत खुश हुई और खुशी से मेरी ओर देखते हुए बोली की……मम्मी जी मैं बहुत खुश हूं मुझे पता है यह सब आप ही ने किया है।

अरे पहली बार मेरी पोती घर में कदम रख रही है तो इतना स्वागत तो बनता ही है……कविता बोली और पोती को गोद में लेकर बहू रिया को उसके कमरे तक पहुंचा आई। रिया कविता के गले लग कर बोली मम्मी जी थैंक्यू जो आपने इतना सब किया।

कविता ने कहा क्या फर्क पड़ता है….बेटी हो या बेटा बस शिशु का आगमन घर में हुआ यही खुशी की बात है बस मैं इसी खुशी को मना रही थी। उधर सासू मां विमला जी ड्राइंग रूम में मुंह फुलाए बैठी थी कि भला कोई बिटिया के होने पर इस तरह से खुशी मनाता है क्या……..पर कविता उनको अनदेखा कर रिया के रूम में आ गई। लो बेटा यह सोंठ का पेड़ा और गरम-गरम दूध ले लो। रिया को दूध देकर कविता रसोई में आ गई और दलिया बनाने लगी।

कविता को दलिया बनाते हुए देखकर गुस्से में विमला जी बोली तुम्हें पता है ना कि हमारे यहां छः दिन तक जच्चा को अन्न नहीं दिया जाता है और मैंने तुम्हें भी नहीं दिया था तो फिर तुम अपनी बहू को कैसे दे सकती हो। उनकी बातों को अनसुना कविता दलिया बनाने में लगी रही तभी कविता की पति रमेश जी बोले कि तुमने सुना नहीं कि माँ ने क्या कहा है फिर भी तुम यह कर रही हो।




हां मैंने सुन लिया है….मां जी की बातों को पर शायद आपको और माजी को मेरे दर्द का एहसास नहीं है मुझे आठ दिनों तक भूखे रहने के दर्द का एहसास अभी तक है मुझे अच्छी तरह से याद है जब मेरी बिटिया होने वाली थी तब दो दिन तक मैं दर्द से तड़प रही थी और दर्द, उल्टी के कारण मैं ना कुछ खा पा रही थी ना पी पा रही थी फिर जब बिटिया हुई तो छः दिन तक मुझे सिर्फ दो टाइम चाय और दो टाइम पानी मिला हुआ दूध मिलता था और उस पर भी माँ जी मुझे सुनाती थी कि तुम्हें तो यह मिलता है मुझे तो यह भी नहीं मिला था तो क्या मां जी आप मुझसे बदला ले रही थी  कम से कम दूध ही ढंग से देती तो भी मेरा पेट भरता आप बताएं जब एक औरत मां बनती है और उसका बच्चा उसका दूध पीना शुरू करता है तो उसे कितनी भूख लगती है और आपको मेरा तड़पना मेरा रोना कुछ भी नहीं दिखाई दिया मेरी माँ ने तो हॉस्पिटल में कहा भी था कि खाना ना सही ब्रेड और बिस्किट तो दे ही सकते हैं पर पति महोदय आपने तुरंत मना कर दिया कि ब्रेड और बिस्किट में भी अन्न पड़ा होता है। मैं भूख से बिलबिला रही थी और अपने पेट को पकड़ कर रोती थी मुझसे भूख बिल्कुल भी बर्दाश्त नहीं हो रही थी और मेरा तड़पना देखकर तब आप ही बोलती थी कि…..मां बनी हो इतना भूख सहना तो आना ही चाहिए क्यों!!क्यों!! आखिर क्यों इतना सहना?  मैं मां बनी थी कोई गलती नहीं की थी आपने भी तो उन परिस्थितियों को झेला है आप भी उस परिस्थितियों से गुजरी होंगी……भूख से बिलबिलाई होंगी फिर आपको मेरा दर्द क्यों नहीं दिखाई दिया पर मुझे उस दर्द का अच्छी तरह से एहसास है और मैं जो मेरे साथ हुआ वह मैं अपनी बहू के साथ नहीं होने दूंगी मैं वह हर जरूरी चीज दूंगी जो एक जच्चा को देना चाहिए मैं नहीं मानती ऐसे रीति-रिवाजों को जो एक मां को इतने दिनों तक भूखा रखकर उसे भूख से तड़पने को मजबूर कर दे यह कहते हुए कविता दलिया लेकर बहू के कमरे में चली गई आज दोनों लोग कविता का जवाब सुनकर चुप हो गए क्योंकि कविता ने उन्हें आईना जो दिखा दिया था।

किरन विश्वकर्मा

लखनऊ

#बेटियां  #पाँचवा जन्मोत्सव कहानी -5

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