मां मुझे वापस कोटा नहीं जाना है। – सुषमा यादव

मेरी बेटी अभी बोर्डिंग स्कूल से दसवीं पास करके आई नहीं कि हम दोनों ने उसे कोटा कोचिंग के मेडिकल प्रवेश टेस्ट में बैठा दिया, वो मना करती रही कि अभी मुझे पढ़ने दीजिए, बारहवीं पास करने दीजिए। पर हम नहीं माने, और वो पास हो गई,।

हमने सबको बड़ी खुशी से बताया, बेटी कोचिंग करने कोटा जा रही है,पर वो बिल्कुल खुश नहीं थी, मां, मुझे नहीं जाना, मैं वापस अपने स्कूल जाना चाहती हूं,पर बेटा तुम तो चाहती थी ना कि तुम्हे डाक्टर बनना है, तो अभी हर्ज ही क्या है, वहीं से बारहवीं भी कर लेना।

हम उसे एक अच्छे से किराए के घर में छोड़कर आ गये,उसकी मकान मालकिन बहुत अच्छी थी,

बगल में ही एक बिहार का परिवार रहता था। अपने दो बेटियों और एक बेटे को कोचिंग कराने के लिए उनके पापा ने वहीं अपना ट्रांसफर करवा लिया था,

सबने हमसे वादा किया कि आप निश्चिंत होकर जाईए,हम आपकी बेटी का पूरा ख्याल रखेंगे।

कुछ दिनों के बाद उन सबका फोन आया कि नीरू खाना नहीं खाती,उसका टिफिन बाहर ही पड़ा रहता है,ना तो किसी से बात करती है,ना ही पूछने पर कोई जवाब देती है, लगता है कि ये डिप्रेशन में जा रही है,आप तुरंत आ जाईए,।

हम लोगों ने कोटा के बारे में बहुत कुछ उल्टा सीधा सुना था, बच्चे पढ़ाई के दबाव में आकर आत्म हत्या जैसे गलत कदम उठा लेते हैं, उसके पापा ने फौरन मुझे भेजा,।




मैंने आकर देखा तो हैरान रह गई,

लगा ही नहीं कि वो मेरी खूबसूरत बेटी है, एकदम दुबली, कमजोर,रूखा चेहरा, झुंझलाती,चिड़चिड़ाती, बात बात पर गुस्सा करती।

ये देखकर मैं बहुत घबरा गई,

एक दिन मैंने उससे बड़े प्यार से पूछा, मेरी गोद में सिर रखकर रोने लगी, मम्मी, मैं अपनी सहेलियों से मिलकर नहीं आई, अचानक आपने यहां भेज दिया,

मुझे उन सबकी बहुत याद आती है, यहां एक तो पढ़ाई का बहुत प्रेशर है दूसरे इसके साथ ही ग्यारहवीं की भी पढ़ाई करो, यहां का ये मिर्च मसाला वाला अजीब सा खाना मुझसे नहीं खाया जाता, मैं क्या करूं। मुझे यहां बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगता है।

मेरे आंखों से भी आंसू बहने लगे, मैंने उसे दिलासा दिया,बेटा अब तो बहुत देर हो चुकी है,अब तुम अपने स्कूल वापस नहीं जा सकती, वो अब तुम्हें इतने दिनों बाद वापस नहीं लेंगे,अब तो हर हाल में तुम्हे यहीं रहना होगा,

इन परिस्थितियों से समझौता करना होगा, मैं बस इतना कर सकती हूं कि मैं तुम्हारे साथ ही रहूंगी।

पर मम्मी,आपकी नौकरी,




कोई बात नहीं बेटा, मैं बिना वेतन के अवकाश में रहूंगी, मेरे लिए तुम बहुत प्यारी हो, और धीरे धीरे उसमें सुधार होने लगा,।।

पर शायद वो दिखावा था, दीपावली के अवकाश में मैं उसे लेकर उसके पापा के पास इंदौर आई तो छुटिटयों के बाद उसने जिद पकड़ लिया,

,, मां मुझे वापस कोटा नहीं जाना है,,

हम दोनों ने बहुत समझाया पर वो किसी तरह मानने को तैयार नहीं,

अगर मुझे जबरदस्ती भेजा तो मैं कुछ कर लूंगी,उसका दूसरा साल था, बारहवीं की परीक्षा, मेडिकल प्रवेश परीक्षा भी पास आ रही थी,

उसका तो भविष्य दांव पर लग गया था, अब हम क्या करें,

ये अपनी बेटी को बहुत चाहते थे,

बेहद दुखी हो कर बोले,हम लोगों से बहुत बड़ी ग़लती हो गई है, हमें इसके ऊपर अपना निर्णय नहीं थोपना था, जबरदस्ती करता हूं तो अपनी बेटी को खो दूंगा, वो हमसे नफरत भी करने लगेगी, मैं अब क्या करूं, कुछ समझ में नहीं आता है।

बड़ी ही कठिन डगर हो गई थी हमारे लिए। इधर कुंआ तो उधर खाई।




 एक दिन मैं अनमनी मायूस हो कर सोच रही थी कि अचानक मैंने उसके कोचिंग सेंटर के डायरेक्टर को फोन लगा कर सब कुछ बताया, और कहा,सर, मेरी बेटी पढ़ाई में सर्वोत्तम है, वो अपने बोर्डिंग स्कूल की सर्वश्रेष्ठ छात्रा रही है,उसकी ये परेशानियां हैं,जब उसका आपके यहां मंथली टेस्ट में बीस बच्चों में नाम नहीं होता तो वह डिप्रेशन में चली जाती है, कहती है, उससे नहीं हो पायेगा, और वो वापस कोटा आना ही नहीं चाहती, आप उसे समझाएं, वरना एक अच्छी भावी डाक्टर को आप खो देंगे,

हम सब तो निराश हो गए हैं,अब आप ही कुछ कर सकते हैं,पर उसे हरगिज़ पता नहीं चलना चाहिए कि मैंने आपको फ़ोन किया है।

उन्होंने कुछ देर बाद ही बेटी को फोन किया, कोचिंग शुरू हो गई है, तुम अभी तक आई नहीं,

तुम्हारे सर ने आज मुझे बताया,

नहीं,सर, मैं अब नहीं आऊंगी, क्यों बेटा, ख़ैर,जो भी हो, क्या तुम मेरा कहना मानकर एक बार मुझसे मिलने आ सकती हो,

और हां, मेरे घर पर आना, साथ में दीपावली की मिठाई लेकर, तुम्हारी आंटी को एक होनहार भावी डाक्टर से मिलवाना चाहता हूं,आओगी ना मेरी बच्ची, बड़े प्यार से उन्होंने कहा, जी,सर, आती हूं,।

मम्मी, मुझे मेरे सर ने बुलाया है,चलिए,कोटा,

बेटी उनसे मिलने उनके घर गई, उनकी पत्नी ने बहुत प्यार से बिठाया, दोनों ने कहा, बेटी, हमारे दो बेटे हैं, हमें बेटी की बहुत इच्छा है, क्या तुम हमारी बेटी बनना पसंद करोगी,हम तुम्हें अपनी बेटी बनाना चाहते हैं,




वो बहुत खुश होकर बोली, जी सर, बिल्कुल, तो बताओ अब तुम हमारी बेटी हो तो क्या हमें छोड़कर वापस चली जाओगी या यहीं रहोगी,हम तुम्हारे ऊपर छोड़ते हैं, बेटी कुछ देर सोचती रही फिर बोली मैं अब वापस नहीं जाऊंगी, उसके सिर पर हाथ फेरते हुए दोनों ने कहा, बेटी, ख़ुश रहो, और कल कक्षा में आ जाना, मैं हर दिन एक पीरियड लेने आया करूंगा,।।

उसने घर आकर चहकते हुए अपनी मां को सब बताया, मम्मी, मैं यहीं रहूंगी, मैंने भगवान और डायरेक्टर सर का शुक्रिया अदा किया, और राहत की सांस ली,

कुछ दिनों बाद उसने कहा, मम्मी,मेरा शेरू डाग ला दीजिए, मैं खूब मेहनत से पढ़ूंगी, पापा ने मेरे कार्यस्थल से दो दिनों का लंबा सफर तय करके बेटी की खुशी के लिए एक गाड़ी से उसके प्रिय डाग शेरू को उसके पास पहुंचा दिया,

बेटी को हमेशा ही वो सर प्रोत्साहित करते रहे,हर हाल में उसका मनोबल बढ़ाते रहे, मैंने भी अवैतनिक अवकाश लेकर उसे हरदम सहारा दिया,

उसने बारहवीं कक्षा प्रथम श्रेणी में पास किया और सभी मेडिकल प्रवेश परीक्षाएं उत्तीर्ण की, 

 सर ने हमेशा उसका ख्याल रखा, कहां से एम बी बी एस करना है, कैसे जाना है, कहां ठहरना है,सब वो ही तय करते, यहां तक कि जब भी कहीं परीक्षा देने जाना होता, वो रेल्वे स्टेशन पर पानी, टिफिन लेकर विदा करने जरूर आते, इतने सालों बाद भी हम उनकी मेहरबानियां नहीं भूल सके हैं, मेरी सूझबूझ से और उनके कृपा से मेरी बेटी लंदन में आज एक सफल डाक्टर है।




हम सब उनके एहसान को कभी नहीं भूल सकते, उन्होंने एक जिंदगी बरबाद होने से बचा लिया।

,, दोस्तों,आज इतनी पुरानी कहानी लिखने का तात्पर्य मेरा ये है कि आज तो कोटा कोचिंग स्कूल की बहुत ख़राब हालत है, अभिभावक  अपने बच्चों की इच्छा जाने बगैर जबरदस्ती कोटा भेज रहें हैं, इसमें कोई शक नहीं कि वहां बहुत बेहतर कोचिंग होती है,पर आप अपने बच्चे का पहले रुझान पता करिए कि वो क्या चाहता है, कहां जाना चाहता है, क्या करना चाहता है, हमारे जैसे गलती कभी नहीं करिएगा, सबको ऐसे डायरेक्टर सर नहीं मिल जाएंगे,

आप आये दिन कोटा के अध्ययन रत छात्रों के बारे में समाचार पत्रों में पढ़ते ही होंगे,मेरा मकसद आपको भयभीत करना नहीं, बल्कि सतर्क करना है,

मेरी सतर्कता से तो मेरी बच्ची बच गई, पर उसी साल कितने ही बच्चे,,,, भगवान सबकी रक्षा करें, सबको सद्बुद्धि दें। 

बच्चों, आपका जीवन अमूल्य है,आपके माता पिता की आप जान हो,जो भी आपके मन में हो, उससे उन्हें अवगत कराओ,

जहां मर्जी हो, वो सही रास्ता चुनो,पर ग़लत कदम कभी नहीं उठाना, क्यों कि,, ये जिंदगी मिलेगी ना दोबारा,, ।।

सुषमा यादव, प्रतापगढ़ उ प्र

स्वरचित मौलिक अप्रकाशित

## बेटियां, जन्मोत्सव, तृतीय कहानी।।

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