अनमोल त्याग – लतिका श्रीवास्तव : Short Stories in Hindi

Short Stories in Hindi : इतना बड़ा त्याग आप ही कर सकते हैं….एक बड़ी सी फूल माला मुझे पहनाते हुए उन्होंने कहा….

मैंने क्या त्याग किया!!आनंदजी सोच रहे थे….त्याग तो मेरे दोस्त ने किया था मेरे लिए …!उन्होंने तो अपने दोस्त के बेटे को अनाथ होने से बचाया अपने दोस्त को दिया वादा निभाया …बस…!

वास्तव में त्याग वही होता है जब दूसरों की खुशी के लिए हम अपने हितों और छोटे उद्देश्य पूर्ति का त्याग करे।

आनंद और अमित गहरे दोस्त ….बचपन में पन्नाधाय नाटक में अमित  राजकुमार उदय सिंह का और आनंद  पन्नाधाय के बेटे चंदन का किरदार बखूबी निभाया करता  था….पर  बनबीर की तलवार से आनंद के मरने पर अमित का फूट फूट कर रोना वह कभी नहीं भूल पाता …!आनंद के हंसने पर वो हमेशा कहा करता था तुझे झूठ मूठ में भी मरते नहीं देख सकता हूं मेरे दोस्त!ये चंदन का रोल मुझे दे दे…मैं सच मे तेरे लिए मर भी सकता हूं…!

…..पन्ना धाय  एक ऐसी राजभक्त जिसने  राजमद में अंधे जल्लाद बनवीर की रक्त पिपासु तलवार की धार के सामने अपने स्वयं के इकलौते पुत्र की बलि चढ़ाकर राज गद्दी के असली उत्तराधिकारी उदयसिंह के प्राणों की रक्षा की थी….

देवतुल्य त्याग ये होता है….पन्ना धाय के इस देवतुल्य त्याग का इतिहास तो साक्षी है ही …छोटे से आनंद का दिल दिमाग भी पन्नाधाय की उस उत्कट अपराजेय दृढ़ता के समक्ष तभी से नतमस्तक था….कई बार इस नाटक की मंच प्रस्तुति हुई और हर बार अपार दर्शक लोकप्रियता मिली…परंतु हर बार अमित के ज़िद करनेके बाद भी चंदन का रोल हमेशा आनंद ने ही निभाया….!

अमित और आनंद दोनों ही साथ साथ पढ़े बढ़े भी और नौकरी भी एक ही ऑफिस में !!शादी भी दोनों ने साथ ही की.. दोनों के परिवार भी आपसे खूब घुल मिल के रहते थे हर सुख दुख में त्योहार में साथ साथ…. ज़िंदगी इतनी खुशगवार होती है आनंद अक्सर सोचा करता था।

दोनों के एक एक पुत्र था जिनमें भी गहरी दोस्ती थी….पर कहते हैं ना खुशी को भी नज़र लग जाती है …




एक दिन ऑफिस में दो कस्टमर आए और किसी बात पर आनंद से बहस बाजी हो गई आनंद आमतौर पर शांत प्रवृत्ति का इंसान था पर उस दिन उसे भी गुस्सा आ गया क्योंकि वो दोनों कुछ लेन देन करके उससे कोई गलत काम करवाना चाहते थे…

आनंद उनकी बात मानने से साफ इंकार कर रहा था….बात हद से बढ़ गई तो ऑफिस के गार्ड ने उन दोनों को करीब करीब धकेल कर बाहर निकाल दिया ……..वो दोनों जाते जाते आनंद को देख लेने की धमकी भी दे गए…..!

अमित को जैसे ही ये पता लगा उसने तुरंत वहां आकर आनंद को शांत करने की कोशिश की और घर जाने के लिए कहा ….किसी तरह शांत होकर आनंद बेमन से घर जाने के लिए अपनी कार में बैठा …

बहुत स्टार्ट करने के बाद भी उसकी कार स्टार्ट ही नहीं हुई …उसका गुस्सा बढ़ता देख अमित ने अपनी कार की चाबी उसे दी और आनंद की कार गैरेज में सुधार के लिए भेज दी….!

शाम को ऑफिस बंद होने तक आनंद की कार सुधर कर आ चुकी थी और अमित उसमें बैठ कर घर की तरफ रवाना हुआ…..आधे रास्ते में पहुंचने पर अचानक सामने से आ रही एक ट्रक ने उसकी कार में टक्कर मार दी और कार के साथ अमित की इहलीला भी तुरंत समाप्त हो गई थी…..!

सबकी नजरों में ये महज भयंकर हादसा था पर आनंद ही ये जानता था कि ये हादसा सुनियोजित तरीके से उन दोनों बहस करने वाले गुंडों द्वारा आनंद की हत्या के लिए गढ़ा गया था पर दुर्भाग्य से उस दिन उसकी कार में अमित था ये शायद उन गुंडों को नहीं पता था।

……..निशब्द आनंद ……ने ही अमित के अंतिम संस्कार से लेकर अमित की पत्नी और बच्चे की देख रख का इंतजाम पूरी शिद्दत से किया था वो तो जैसे अंदर से मर ही गया था……उसी दिन से अमित के परिवार की खुशहाली और उसके बेटे का कैरियर ही आनंद की ज़िंदगी जो उसे अमित के कारण मिली थी …का मकसद बन गया था……!

….आज वो दिन आ ही गया जब अमित का बेटा उसी ऑफिस में सीनियर मैनेजर बन कर ज्वाइन कर रहा है जो अमित की दिली ख्वाहिश थी।

…..ज्वाइन करते ही अमित के बेटे ने आनंद के ही पैर छुए और बहुत आदर से कहा था…” अंकल आज मैं जो भी हूं सब आपके ही त्याग तपस्या और संघर्षों का परिणाम है….पापा के जाने के बाद आपने कोई कमी महसूस ही नहीं होने दी …मैं ताउम्र आपका ऋणी रहूंगा…!”

….और आंखों में आंसू लिए आनंद सोच रहा था ….ऋणी तो मैं रहूंगा उम्र भर अपने मित्र अमित का जिसके खामोश त्याग ने मुझे ये जिंदगी दी ….त्याग तो अमित ने किया था मेरे लिए ….!अपना जीवन ही त्याग दिया…!

आज फिर पन्ना धाय नाटक का चंदन याद आ गया था ….इस बार चंदन की भूमिका अमित ने निभाई थी ….!

#त्याग

लेखिका : लतिका श्रीवास्तव

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