अनकहा प्यार – प्रियंका त्रिपाठी ‘पांडेय’

 

काले काले बादलो ने आसमान मे डेरा डाल दिया।मुक्ता तेजी से लान की तरफ दौड़ी, सूखे हुए कपड़ो को हटाने के लिए। बूंदो ने झमा झम बरसना शुरू कर दिया।

 

कपड़े उतारते-उतारते मुक्ता काफी भीग चुकी थी।अन्दर आते ही उसने छींकना शुरू कर दिया।

 

मा॑ बड़बड़ाते हुए बोली – “मुक्ता मैंने तुझसे कितनी बार कहा भीगा मत कर, लेकिन तू मानती ही नही।मुझे आवाज दे देती मै उतार लाती कपड़े।”

 

मुक्ता ने शान्त भाव से कहा – “मां आप सो रही थी इसलिए मै खुद ही चली गई। मां आप जाती तो आप भी तो भीग जाती ना।”

 

मां दुलारते हुए बोली -“मेरी बेटी मां को इतना प्यार करती है।”

 

हूं – “मुक्ता ने सिर हिलाते हुए कहा और मां के कांधे से लिपट गई।”

 

“तू पूरी तरह से भीग गई है जा जाके तौलिए से बाल सुखा ले और कपड़े बदल ले।मैं तेरे लिए तुलसी अदरक वाली चाय बना के लाती हूं।”- कहते कहते मां चाय बनाने चली गई।

 

मुक्ता कपड़े बदल कर सिर पर तौलिया लपेटे हुए सोफे पर आकर बैठ जाती है।

 

“ले गरम-गरम चाय पी ले और चाय पी कर आराम कर”- मां चाय देकर दूसरे काम के लिए किचन मे चली जाती है। 

 

मुक्ता खिड़की से बारिश की बूंदों को गिरते हुए देखती है और देखते-देखते पुरानी यादों मे खो जाती है।

 

आफिस जाने के लिए मुक्ता बस स्टॉप पर खड़ी बस का इंतजार कर रही थी तभी एक नौजवान उसकी बगल मे आकर खड़ा हो जाता है। सुंदर कद काठी का “महत्व” आफिस के लिए लेट हो रहा था।आज उसकी बाइक खराब हो गई थी। महत्व रह रहकर कभी अपने हाथ की घड़ी को तो कभी बस को देख रहा था।

 


तभी एक बस आ कर खड़ी हो जाती है।सब लोग बस मे जल्दी-जल्दी चढ़ने लगते हैं । मुक्ता और महत्व भी बस मे चढ़ने के लिए बस के डोर को पकड़ते है। महत्व का हाथ मुक्ता के साथ पर रख जाता है। महत्व भीड़ मे ध्यान नही देता परन्तु मुक्ता सहम सी जाती है और वह बस से दूर जाकर खड़ी हो जाती है। महत्व जल्दी से बस मे चढ़ जाता है।बस कुछ दूर निकल जाती है महत्व बस मे चारों तरफ नजरें दौड़ाता है उसे मुक्ता कहीं भी नही दिखाई देती। महत्व को भी कुछ महसूस होता है वह बस से उतर जाता है और बस स्टाप की तरफ कदम बढ़ाता है।मुक्ता वहीं पर खड़ी बस का इंतजार कर रही थी।

 

महत्व मुक्ता के पास आकर मुक्ता से पूछता है – “आप बस मे क्यों नही चढ़ी।”

 

मुक्ता बहुत ही शालिनता से – जी बस यूं ही…भीड़ बहुत ज्यादा थी इसलिए।

 

दूसरी बस आकर खड़ी हो जाती है। मुक्ता बस मे चढ़ती है…फिर महत्व भी बस मे चढ़ जाता है। मुक्ता का आफिस आ गया…मुक्ता बस से उतर जाती है। कुछ देर बाद महत्व का भी आफिस आ जाता है और महत्व भी बस से उतर जाता है।

 

शाम को आफिस छूटने के बाद दोनो इत्तफाक से उसी बस मे चढ़ते है। दोनो एक दूसरे को देखते है और हल्की सी स्माइल देते है।

 

अब दोनों प्रतिदिन एक ही बस से आते-जाते।यह सिलसिला साल भर चलता रहा।ये मुलाकातें एक दूसरे से बोले बिना ही कब प्यार मे बदल गया पता ही नही चला।

 

एक दिन दोनो बस स्टॉप पर खड़े थे।काले बादलों ने घुमड़-घुमड़ कर शोर मचाना शुरू कर दिया।महत्व मुक्ता से कहता है- मौसम कितना सुहाना है…क्यों ना कहीं घूमने चले।

 

मुक्ता- “लेकिन आफिस “

 

“आज आफिस को गोली मारो…मैं बाइक लेकर आता हूं बाइक से घूमने चलेंगे। तुम मेरा यही इन्तजार करना मैं बस दो मिनट मे आया, कहकर महत्व बाइक लेने चला जाता है।”

 

महत्व बाइक लेकर आ गया। महत्व ने अपना हाथ मुक्ता की तरफ बढ़ाया मुक्ता ने अपना हाथ महत्व के हाथ पर रख दिया और बाइक पर बैठ गई। दोनो घूमते-घूमते बहुत दूर निकल गए।


 

जब बहुत देर हो गई तब मुक्ता ने कहा काले बादल घने होते जा रहे हैं और अंधेरा भी हो रहा है अब हमें चलना चाहिए बारिश कभी भी शुरू हो सकती है।

 

महत्व ने बाइक स्टार्ट की मुक्ता पीछे बैठ गई दोनो चहकते हुए चले जा रहे थे।काले बादलों ने झम-झम बरसना शुरू कर दिया। मुक्ता ने दोनों हाथों से महत्व को कस के पकड़ लिया।महत्व भी प्यार की मिठी धुन मे गाड़ी चला रहा था।

 

आगे गड्ढा था जिसमे पानी भरा हुआ था।महत्व ने ध्यान नही दिया। बाइक गड्ढे में जा गिरी जिससे महत्व और मुक्ता बुरी तरह जख्मी हो गए। दोनो को कुछ लोग हस्पताल लेकर पहुंचे। महत्व की हस्पताल पहुंचते ही मौत हो जाती है। मुक्ता भी बेहोश थी जब होश आता है तब उसे महत्व की मौत का पता चलता है।

 

महत्व की मौत से मुक्ता अन्दर से टूट जाती है। मुक्ता सोचती है – “अनकहा प्यार अनकहा ही रह गया।”

मुक्ता की आंखो से आंसू गिरने लगते है।

 

मुक्ता…मुक्ता किन यादो मे खो गई…देख तेरी चाय ठंडी हो गई।चल छोड़ मैं दूसरी बना के लाती हूं। मां और मुक्ता दोनो साथ चाय पीते है।

 

मां कहती है – “मुक्ता महत्व को याद कर रही थी।”

 

मुक्ता लम्बी गहरी सांस लेते हुए कहती है – “हां मां ! मां बस आप ही समझ सकती हो महत्व का मेरे जीवन मे क्या महत्व था। मम्मी पापा के चले जाने के बाद मैं बिल्कुल अकेली हो गई थी। फिर महत्व मेरे जीवन मे आया मेरी दुनिया ही बदल गई थी लेकिन वो भी मुझे छोड़ कर चला गया।मैं बिल्कुल टूट कर बिखर गई थी। महत्व के चले जाने के बाद आपने मुझे संभाला।आप महत्व की ही मां नही है आप मेरी भी मां हो।अब आप मेरी जिम्मेदारी हो।मैं आपको छोड़ कर कहीं नही जाऊंगी।

#बरसात

प्रियंका त्रिपाठी ‘पांडेय’

प्रयागराज उत्तर प्रदेश

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