अनकहा बंधन (भाग–2) : Moral Stories in Hindi

सावी सतीश का इजहार- ए- मोहब्बत सुनकर बेहोश हो जाती है। उसे अस्पताल में एडमिट किया जाता है जहां डाक्टर उसकी हालत खराब बताते हैं। सतीश और उसके पिता जगन्नाथ जी अस्पताल में सावी के पास होते हैं।सावी की हालत देख सतीश बेहद दुखी हो जाता है वो उसकी इस हालत के लिए खुद को दोषी समझता है। उसे वो दिन याद आता है जब सावी उसकी भाभी बन कर उनके घर आई थी। मां को तो वो कभी पसंद थी ही नहीं। परन्तु उसने और पापा ने दिल से उसे अपनी जिंदगी अपने घर में जगह दी थी।

अब आगे-

विजय और सावी के विवाह को तीन साल हो गए थे। तीन साल बाद सावी मां बन रही थी कि अचानक साईट पर हुए हादसे में विजय की मौत हो गई। फिर तो जैसे उन सबकी जिंदगी बदल गई। विजय की मां लता ने विजय की मौत का इल्ज़ाम सावी पर मढ़ दिया और उसे मनहूस का तमगा पहना दिया। सावी बिल्कुल खामोश हो गई थी उसके पापा उसे लिवाने आए तो लता ने उनकी बहुत बेइज्जती की कहा अगर इसकी कोख में विजय की आखिरी निशानी न होती तो वह खुद ही इसे धक्के दे कर बाहर निकाल देती। ‌सावी को उम्मीद थी कि बच्चा आ कर उसकी सास को बदल देगा। वो इसी उम्मीद के सहारे जी रही थी कि सतीश के शब्दों ने सब कुछ तहस नहस कर दिया। जगन्नाथ जी अस्पताल में सावी के रूम के बाहर सतीश के साथ बैठे थे। कि नर्स ने आकर उन्हें बताया कि सावी की हालत अब पहले से बेहतर है। “आप लोग उनसे मिल सकते हैं।‌‍”

जगन्नाथ जी थके हुए कदमों से उठ खड़े हुए “चल़ो

सतीश !”

मुझे काउंटर पर जाकर पेपर्स साइन करने हैं। आप मिल लीजिए। कब तक बचोगे उससे??? जब तुमने इतनी हिम्मत की तो अब सामना करो। अगर प्यार करने का जूनून रखते हो तो नफरत सहने की हिम्मत भी रखनी चाहिए।

“पापा नहीं अभी नहीं” उसकी आंखों में आंसू उमड़ आए।

वो सिर झुकाए चला गया।

जगन्नाथ जी ने गहरी सांस ली। वो सावी के पास आ कर बैठ ग‌ए। उन्होंने उसके सिर पर हाथ फेरा “कैसी हो बेटा”

सहानुभूति पा कर उसकी बड़ी-बड़ी आंखों में आंसुओं का सैलाब उमड़ आया। उसने हाथ जोड़ दिए आंखें छलछला आई।

पापा, मैंने कुछ नहीं किया, मैंने कुछ भी नहीं किया।

जानता हूं बेटा

मैं आपसे और मम्मी जी से कैसे नजरें मिलाऊंगी??

विजय को क्या मुंह दिखाऊंगी???

पता है पापा उसके सलोने मुखड़े पर दर्द की लकीरें खिंच आई। विजय मुझे हर रोज रात सपने में मिलने आते हैं। हम दोनों अपने बच्चे के बारे में बात करते हैं। वो मुस्कराते हैं कहते हैं सावी मैं यही हूं तुम्हारे पास

पर जब से यहां आई हूं पिछले चार दिनों से नहीं आए।

पापा! कहीं विजय भी अपनी सावी को चरित्रहीन……. उसकी हिचकियां बंध गई।

सावी बच्चे ! मत रो कहते कहते जगन्नाथ जी खुद बुरी तरह रो पड़े। जवान बेटे को खोने का सदमा बड़ी मुश्किल से बर्दाश्त कर पाए थे। सावी और उसके होने वाले बच्चे को विजय की अमानत के रूप में सहजने का प्रयास करके अपने दुःख भूलने की कोशिश कर रहे थे।

सावी के माता-पिता पिछले चार दिनों से अस्पताल में ही थे।

सावी की मां अभी घर से उनके लिए नाश्ता लेकर आई थी। वो जगन्नाथ जी को नमस्कार करके बोली। भाईसाहब ! मैं बिटिया को अपने साथ ले जाना चाहती हूं।

कुछ वक्त हमारे साथ रहेगी तो थोड़ा माहौल बदल जाएगा।

पहले सावी ने उनके साथ जाने को मना कर दिया था। जगन्नाथ जी उलझन में थे। कि क्या कहें??

सावी ने उदास नजरें उनकी तरफ घुमा दी।

पापा ! पापा मैं मां-बाबा के साथ जाना चाहती हूं।

सावी बेटा जैसे तेरी मर्जी जगन्नाथ जी का स्वर विचलित हो उठा।

सतीश छोड़ आएगा।

नहीं पापा, हम लोग ऑटो से चले जाएंगे। जगन्नाथ जी ने विरोध नहीं किया।

वो जानते थे कि सतीश और सावी का रिश्ता उस एक बात से किस मोड़ पर पहुंच चुका था??

क्या ये ही अंत था??? या फिर विधाता एक न‌ई कलम से उनका भाग्य लिखने को तैयार था??

अनकहा बंधन ( अंतिम भाग  )

अनकहा बंधन (अंतिम भाग ) : Moral Stories in Hindi

अनकहा बंधन (भाग–1)

अनकहा बंधन (भाग–1) : Moral Stories in Hindi

© रचना कंडवाल

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