अंदाज अपना-अपना – करुणा मलिक : Moral stories in hindi

आज पूरे छह महीने के बाद घर में एकदम से सन्नाटा सा पसरा था ।

नीरा को रह रहकर मिनी और अपने पोते ध्रुव की याद आ रही थी । आज सुबह बेटे मोहित , बहु मिनी और नन्हे से ध्रुव के जाने के बाद से ही मन बड़ा उदास था ।

जब छह महीने पहले बहू डिलीवरी के लिए आई तो घर में चहल-पहल हो गई थी । मिनी भी सास से कभी कुछ खाने की फ़रमाइश करती तो कभी कुछ ।एक दिन तो मिनी ने रात के दस बजे कहा – 

माँ , दिल कर रहा है कि सूखे आलू की सब्ज़ी और गर्म-गर्म करारी-करारी पूरियाँ खा लूँ ।

हाँ, तो बना देती हूँ । कौन सा देर लगेगी ? 

पर माँ, अब दुबारा सब कुछ बनाना पड़ेगा । सब खाना खा चुके हैं । कल बना देना ।

ना बेटा , होने वाली माँ को मन नहीं मारना चाहिए , नहीं तो बच्चा लार टपकाता है ।

और नीरा ने उसी समय मिनी की पसंद का खाना बनाकर खिलाया । रसोई से आती सुगंध से नीरा के पति की जीभ भी ललचा गई और उन्होंने भी कह दिया –

भई , एक पूड़ी मुझे भी चखा दो । दो-चार चक्कर काट लूँगा। भूख तो नहीं पर ख़ुशबू से जी ललचा रहा है ।

उसी रात तीन बजे के क़रीब मिनी को हॉस्पिटल ले जाना पड़ा और अगले दिन सुबह नौ बजे मिनी ने बेटे को जन्म दिया ।

उसके बाद तो नीरा और उनके पति हेमंत इतने व्यस्त हो गए कि कब बच्चों के जाने का दिन आ गया , पता ही नहीं चला ।

बिस्तर पर लेटी नीरा को याद आ रहा था कि जब मोहित की शादी हुई तो मिनी को बहू कम बेटी के रूप में सीने से लगाने को लालायित नीरा की मन की इच्छा, उस समय दबी की दबी रह गई जब उनकी ननद ने कहा-

मिनी ! तुम बहुत क़िस्मतवाली हो जो तुम्हें भाई- भाभी के रूप में , सास- ससुर नहीं , माता-पिता मिले हैं । बेटी बनाकर रखेंगे ।

आँटी ,मुझे किसी की बेटी बनने का शौक़ नहीं है । रिश्ते के अनुसार ही व्यवहार अच्छा लगता है ।

कुछ देर पहले आई नई नवेली दुल्हन के मुँह से ये बात सुनकर नीरा का तो दिल ही बैठ गया ।

उसके बाद नीरा चुप सी हो गई । अगले दिन बहू के आने की ख़ुशी में स्वागत- भोज रखा था । सभी रिश्तेदार और मिलने- जुलने वाले आए ,पर नीरा  की इच्छा नहीं हुई कि किसी से भी व्यक्तिगत रूप से बहू को मिलवाए ।

अगले दिन शाम तक सभी रिश्तेदार और मेहमान चले गए । अब घर में गिने- चुने चार प्राणी रह गए । 

नीरा दो दिन बहू के साथ बहुत औपचारिक रही , न जाने क्यों ? अंदर से मन टूट सा गया था । उन्होंने मन को समझा लिया कि जब बहू पहले से ही मन बनाकर आई है कि सास को माँ नहीं, सास ही समझेगी तो वे अकेली क्या कर सकती हैं ।

तीसरे दिन सुबह नाश्ते की टेबल पर मिनी ने सास के बनाए खाने की तारीफ़ करते हुए कहा-

माँ, आपके हाथों में तो जादू है। आप कितना स्वादिष्ट खाना बनाती हो । क्या आप मुझे भी सिखा देगी?

नीरा ने बेमन से कहा- तुम्हारा मन हो तो सीख लेना ।

ऐसा रुखा सा जवाब सुनकर मिनी चुप रह गई ।उसने अपना नाश्ता समाप्त किया और मेज़ से सामान समेटने में नीरा का हाथ बँटाया ।

शादी के दस दिन बाद मोहित मिनी को लेकर मुंबई चला गया। इन दस दिनों में सास- बहू के बीच शीत- युद्ध की सी स्थिति बनी रही । 

मुंबई जाने के बाद मिनी हर रोज़ नियम से सास- ससुर को फ़ोन करती , हाल-चाल पूछती और अपने उत्तरदायित्व में कोई कमी न छोड़ती ।

उधर नीरा अक्सर हेमंत से कहती- 

मेरी तो समझ में ये लड़की ही नहीं आ रही ? आते ही तो सबके सामने ऐसा बम फोड़ दिया था कि किसी के सामने इसका नाम लेने में भी डर लगने लगा और उसके बाद हद से ज़्यादा दिखावा करने में लगी है । सिर घुमा के रख दिया मेरा तो ।

अरे , तुम भी क्या बात लेकर बैठी हो ? पता नहीं? उस समय बहू की मनःस्थिति कैसी रही होगी, बेचारी अपना घर छोड़कर आई थी ।

सारी लड़कियाँ घर छोड़कर आती हैं । मैं तो जीते जी इसकी कही बातों को नहीं भूल सकती ।

तुम्हारे जो जी में आए , करो ।

शादी के चार महीने बाद ही मिनी ने ख़ुशख़बरी दी और बड़े ही लाड़ से कहा- 

माँ, डॉक्टर ने कहा है कि पहले तीन महीने बहुत एहतियात बरतनी होगी । मैं तो आपके पास आना चाहती हूँ पर लंबा सफ़र करने के लिए मना किया है । कुछ दिनों के लिए आप और पापा आ जाइए ना ।

मिनी ने जिस अपनेपन से उसे बुलाया, नीरा मना नहीं कर सकी और हफ़्ते के अंदर ही दोनों मुंबई पहुँच गए ।

धीरे-धीरे कब दोनों सास-बहू एक-दूसरे से मन की बात कहने लगी , कब गपशप करने लगी , कब एक-दूसरे की पसंद- नापसंद का ख़्याल करने लगी, किसी को आभास ही नहीं हुआ।

दो महीने गुज़ारने के बाद जब नीरा और हेमंत वापस लौटने की तैयारी कर रहे थे तो मिनी का उदास चेहरा देखकर नीरा बोली – 

उदास क्यों होती है? सातवें महीने में बुला लूँगी । डॉक्टर ने कहा है ना , कि सब ठीक है । अगर अभी मेरे साथ चलेगी तो मोहित को अकेलापन लगेगा । फिर इसे खाने की भी मुश्किल होगी । 

माँ, आज एक बात पूछूँ ? अगर आप बुरा ना मानें ?

पूछ , बुरा मानूँगी या नहीं । इसका फ़ैसला तो बात को सुनने के बाद ही करूँगी ।

यहाँ आने से पहले आप मुझसे कटी-कटी सी क्यों रहती थी? क्या मैं आपको पसंद नहीं थी ?

पसंद ना होती , तो क्या मैं अपने बेटे से तेरी शादी होने देती ? अपने बोल भूल गई कि घर में घुसते ही किस तरह रिश्तेदारों के सामने कैंची की तरह ज़बान चलाई थी?

मैंने…….? मैंने किसी को क्या कहा था?

अच्छा…..बड़ी भोली ना बन ।

सच में , माँ मैंने क्या ग़लत कहा ? मुझे बिल्कुल भी याद नहीं। प्लीज़ बताइए ना ।

उसके बाद  जब नीरा ने शादी के दिन की घटना दोहराई तो मिनी हँसते हुए बोली-

हाय माँ ! आपने उस बात को इतना दिल से लगा लिया । पर जो मैंने उस दिन कहा , आज भी वही कहती हूँ कि मैं आपकी बहू ही रहना चाहती हूँ, बेटी बनना नहीं चाहती । क्या बिना बेटी बने सास- बहू का रिश्ता मधुर नहीं हो सकता ? मैं अपने मम्मी-पापा की बेटी हूँ , किसी ओर की बेटी नहीं बन सकती। हर रिश्ते की अपनी गरिमा और सीमा होती है । मेरा अपना मानना है कि हर रिश्ता एक सुंदर फूल की तरह है , जिसकी सुगंध ही उसकी पहचान है।

चल तो , ठीक है बहू ! मेरा हुक्म है कि हँसते मुस्कुराते हमें विदा करो और जब मैं बुलाऊँ तो चली आना । 

जी , सासूमाँ !

करुणा मलिक

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