अकेलेपन का दर्द – मुकेश कुमार

मैं ऑफिस में काम कर रहा था तभी मेरी पत्नी का फोन आया कि बाबू जी सीढ़ीयों से गिर गए हैं उनकी रीढ़  की हड्डी मे चोट आई  है तुरंत आपको आगरा जाना होगा। मैंने पत्नी से कहा कि मैंने बाबूजी को लाख बार कहा है कि अब  आपकी उम्र नहीं है अकेले रहने की अब आपको हमारे साथ रहना चाहिए लेकिन नहीं !  उनको जिद है कि मैं अपना घर छोड़कर कहीं नहीं जाऊंगा परेशानी हमें होती है आखिर है तो पिता ना।  बड़े भैया को तो कोई फर्क पड़ता ही नहीं वह तो भूल ही गए हैं इस  दुनिया में उनका कोई पिता भी है। ठीक है मानसी मैं अभी घर आता हूं तब तक मेरा बैग पैक करो मैं आज ही आगरा के लिए निकलूंगा। 

मैं आगरा अपने घर पहुंच चुका था। घर में घुसा तो बाबूजी के पास हमारा नौकर चंदन बैठा हुआ था उसने बताया कि डॉक्टर ने चाचा जी को तीन हफ्तों का बेड रेस्ट करने को कहा  है और आज शाम को ही फिजियोथेरेपी कराने के लिए बुलाया है।  वैसे तो इस उम्र में गिर जाना बुजुर्ग के लिए एक आम समस्या है।  मैं खड़ा होकर चुपचाप बाबूजी की चेहरे को देखने लगा। देखने से ऐसा लग रहा था कि बाबूजी अब कभी उठेंगे ही नहीं शरीर में सिर्फ हड्डी ही रह गई थी मांस तो लगता था शरीर मे है ही नहीं ।  उम्र भी 80 के पार हो गई थी।   लेकिन हिम्मत और जज्बा इतना कि एक 15 साल का किशोर  बच्चे में ना हो। 



बाबूजी को देखकर मैं सोचने लगा कि मेरी उम्र अब 53 साल है और बाबूजी की 80 साल 7 साल बाद में नौकरी से रिटायर हो जाऊंगा पता नहीं तब तक बाबूजी जिंदा रहेंगे कि नहीं यह सोचकर ही मैं सिहर गया क्या सचमुच बाबू जी ऐसे ही हमें छोड़कर चले जाएंगे इस दुनिया से, मां तो  बाबूजी के सामने ही इस दुनिया से रुखसत हो गई इसीलिए माँ ने अकेलापन नहीं देखा लेकिन अकेलापन भुगतना पिताजी के नसीब में था।  या यूं कहें तो जबर्दस्ती अकेलापन भुगत रहे थे कितनी बार मैंने बाबूजी को कहा कि बाबूजी आप यहां अकेला मत रहिए आप हमारे साथ दिल्ली में रहिए। 

 लेकिन बाबूजी का भरा पूरा परिवार होते हुए भी अकेलेपन का दर्द झेल रहे हैं कैसे रहते होंगे अकेले मैं सोचकर ही डर जाता हूं। 

शुक्रगुजार हूं मैं चंदन का जो बाबूजी को अपने पिता की तरह सेवा करता है भले ही वह इस सेवा के बदले पैसे लेता है लेकिन हमसे तो बेहतर है हम बेटा होकर भी पिता को वह सुख ना दे पाए जो चंदन नौकर होकर बाबूजी को दे रहा है। 

  चंदन ने आवाज लगाई भैया जल्दी से फ्रेश हो लीजिए मैंने नाश्ता बना दिया है।   नाश्ता करने के बाद मैं बाबूजी के पास ही बैठा रहा।  बाबूजी नींद में थे तो मैंने जगाया नहीं बाबू जी की जब नींद खुली तो  उन्होंने देखा कि मैं उनके पैरों के पास बैठा हुआ हूं बाबूजी अंदर से बहुत खुश हुए बेटा तू कब आया।  अच्छा किया आ गया एक तुझसे ही तो आस है बाकी तेरे बड़े भाई तो कभी महीने में भी फोन करके अपने पिता का हाल भी नहीं पूछता उसके पिता जिंदा है या मर गए। 

 दोपहर में मैंने चंदन को साथ लेकर डॉक्टर के पास फिजियोथैरेपी करने के लिए ले गया। 



 शाम को मैं बाबूजी के पास ही बैठा था चंदन रात के खाने की तैयारी कर रहा था तभी अचानक से बिजली कड़की और घर की लाइट चली गई।  मैंने चंदन से कहा चंदन इनवर्टर ऑन करो,  चन्दन  ने बताया भैया इनवर्टर भी दो-तीन दिन हो गए खराब हुए मैं उसे ठीक कराने ही वाला था तब तक चाचा जी सीढ़ियों से गिर गए फिर समय ही नहीं मिला इनवर्टर ठीक कराने का।  मैंअपने मोबाइल का टॉर्च जलाकर घर में मोमबत्ती ढूंढने लगा। 

बाबू जी ने कहा, “बेटा क्या ढूंढ रहे हो” मैंने बाबू जी से कहा कि मोमबत्ती ढूंढ रहा हूं।  बाबू जी ने अपने बेड के नीचे से ही मोमबत्ती निकाल कर मुझे पकड़ा दी बोले यह लो बेटा। 

 मैंने कहा मोमबत्ती आप अपने पास ही रखे हुए हैं।  बाबूजी मुस्कुराते हुए बोले हां बेटा अकेले रहने के कारण कई तरह की व्यवस्था रखनी पड़ती है मेरे साइड टेबल की दराज खोल कर देख  मैंने जैसे ही दराज खोली तो उसमें विक्स  से लेकर दर्द की मरहम और टॉर्च आदि सब कुछ था एक दराज तो ऐसा लगता था छोटी सी मेडिकल की दुकान हो उस दराज में बुखार से लेकर पेट दर्द और चक्कर आने तक हर प्रकार की दवाइयां मौजूद थी यह सब देख कर मन ही मन एक अंदर खुशी हुई और मैं हंस पड़ा बाबू जी आपने तो छोटी मोटी दवाई की दुकान खोल रखी है इतनी सारी व्यवस्था तो हमने अपने दिल्ली वाले घर में नहीं रखा है छोटी सी चीज की भी जरूरत पड़ती है तो दुकान पर भागना होता है। 

 बाबूजी हंसते हुए बोले, “सब करोगे बेटा उम्र सब कुछ करवा देता है एक दिन तुम भी मेरे इस उम्र के पड़ाव पर जब पहुंच आओगे तो उस दिन सब तरह की व्यवस्था अपने आप कर लोगे जरूरत इंसान को सब कुछ सिखा देती है यह कहकर बाबूजी के चेहरे पर अचानक से उदासी छा गई।” 

 बाबूजी के दिल का अंधेरा मेरे  दिल को भी दूर तक अंधेरा कर गया मैं सोच में पड़ गया।  1 दिन इस पड़ाव से हमें भी गुजरना ही है कोई भी हो सकता है हम दोनों में से मैं या मेरी पत्नी मानसी।”



हां बाबू जी आपने हमेशा हमें अच्छे संस्कार ही दिए हैं हमेशा आपने हमारा मार्गदर्शन किया है।  अचानक से मैं गंभीर हो गया और मैंने बाबू जी से कहा बाबू जी मुझे यह अच्छा नहीं लगता है कि आप यहां अकेले रहें दिल्ली में मैं और आपकी बहू भी तो अब अकेले ही रहते हैं आप के पोते पोतिया दोनों विदेश रहते हैं वहीं पर पढ़ाई करते हैं आप भी यहां अकेले  रहते हैं इससे अच्छा कि आप हमारे साथ चलिए आप यहां अकेले रहें यह मुझे बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगता बाबूजी। 

 बाबूजी ने बड़े प्यार से मेरी तरफ देखा और कहा नहीं रे तू अपने दिल में कोई भी ऐसी वैसी बात मत रख मुझे तुमसे कोई शिकायत नहीं है तू तो मेरा लाडला है रे मैं क्या तेरे चेहरे को पढ़ नहीं पाता हूं मुझे  तुझ पर बहुत विश्वास है कर ना पाना और करना ही ना चाहना दोनों अलग बातें है। एक तुम पर ही तो विश्वास है जिससे मैं यहां अकेले रह पाता हूं जिस दिन मैं बिस्तर से नहीं उठ पाऊंगा उस दिन तुम्हें ही तो करना है।  तू चिंता मत कर तुझे बहुत मन करता है ना अपने  बाबूजी का सेवा करने का मैं अब बिना सेवा कराएं इस दुनिया से नहीं जाने वाला। 

मैंने बाबू जी से कहा बाबू जी आपने देखा ना कि आप कैसे सीढ़ी से गिर गए जैसे ही आपकी बहू ने मुझे फोन कर कहा कि आप सीढ़ियों से गिर गए हैं मैं तुरंत ऑफिस से घर आकर आपके पास चला आया आपकी हमेशा चिंता लगी रहती है बाबूजी। 

 बेटा तू इतनी चिंता मत कर दुर्घटना यह देख कर थोड़ी आती है कि मैं  दिल्ली रहूंगा तो नहीं आएगी और आगरा रहूंगा तो आ जाएगी अगर सीढ़ियों से गिरना है तो मैं दिल्ली में भी गिर सकता हूं।  लेकिन बाबू जी वहां कम से कम हम आपके देखभाल करने के लिए तो हैं।  अरे यहां भी तो है हमारा चंदन बेटा से कम नहीं है क्यों चंदन करेगा ना तू अपने चाचा जी की सेवा।  चंदन ने हां में हां मिलाते हुए कहा हां चाचा जी मैं कहां जाने वाला हूं मैं भले आपका नौकर हूं लेकिन मैं आपकी सेवा अपने पिता  की तरह करता हूं।   मेरे पिता बचपन में ही गुजर गए हमने तो एहसास भी नहीं है कि पिता कैसे होते हैं लेकिन आपको देखकर पिता की कमी महसूस नहीं होती है। 

 मैं मन ही मन सोच रहा था कि मुझसे अच्छा तो यह चंदन है जो बाबू जी के सानिध्य में है।  हमारी क्या जिंदगी है हम बाबूजी को छोड़ कर अकेले दिल्ली में रहते हैं और बेटा और बेटी अभी से हमें छोड़कर अमेरिका रहने लगे। 

 थोड़ी देर में बिजली आ गई और  बाबूजी  ने चंदन को कहा भैया के लिए खाना निकाल चंदन। 



थोड़ी देर में मैं खाना खाकर चंदन से कहा कि खाना लाओ आज बाबू जी को मैं अपने हाथों से खिलाऊंगा खाना खाते हुए बाबू जी ने कहा अरे पगले साल भर का प्यार क्या एक साथ देना चाहता है पगले तू चला जाएगा तो कौन हमें खिलाएगा। 

 बाबूजी के खाना खाने के बाद मैंने चंदन से कहा चंदन मेरी चारपाई भी बाबूजी के बेड के बगल में लगा दे मैं बाबूजी के साथ ही सोऊंगा। 

 सुबह चिड़ियों की चहचहाहट से नींद खुल गई मैंने  पलट कर जब पिताजी की तरफ देखा तो पिताजी अपने बेड पर ही बैठकर प्राणायाम कर रहे थे और रेडियो में समाचार सुन रहे थे। 

 मैं जैसे ही उठा बाबू जी ने  चंदन से कहा चंदन भैया के लिए चाय लेकर आओ और मेरे लिए भी।  थोड़ी देर में चंदन चाय लेकर आया और खिड़की की पर्दे को सरका दिया हम बाप बेटे चाय का आनंद लेने लगे खिड़की से मैंने देखा कि बाहर क्यारियों  में बाबूजी ने राई पालक से लेकर हर मौसमी सब्जी उगा रखे थे। 

बाबूजी ने मुझसे कहा देखा बेटा यह हरी हरी साग सब्जियां यह सब तुम्हारे दिल्ली में कहां नसीब होने वाली है यह सब चंदन की मेहनत है  मेरे साथ चंदन दिन भर लगा रहता है। 

मैंने बाबू जी से कहा बहुत अच्छा किया आपने आज तो मेरा मन भी अपने हाथों से हरा धनिया और राई तोड़ने का हो रहा है अचानक से मैं दरवाजा खोलकर बाहर चला गया थोड़ी राई और धनिया तोड़ लाया पर हाथ  मिट्टी से शन गए थे बाहर नल से धोकर गिले पैर के साथ कमरे में आ गया बाबू जी ने देखा तो बोले तेरी बचपन की आदत अभी तक नहीं गई गीले पैरों से पूरा घर गंदा कर देता था।  पैरों की तरफ गद्दे के नीचे पुराने कपड़े के टुकड़े रखे हुए हैं पोछ  ले। 

 उसके बाद मैं बाथरूम चला गया बाथरूम से आया तो चंदन ने बाबूजी  का शरीर पोंछकर  कपड़ा चेंज कर दिया था बाबूजी शुरू से ही सफेद कपड़े पहनते थे और 1 दिन भी बिना नहाए नहीं रहते थे चाहे कितनी भी कड़ाके की ठंड ही क्यों ना हो अभी नहा नहीं सकते थे लेकिन कपड़े रोजाना चेंज करते थे। 

मैं बाथरूम से निकला तो चंदन रसोई में नाश्ता तैयार करने चला गया तभी थोड़ी देर में मैंने देखा कुछ लोग दरवाजे से अंदर आ रहे हैं।  सब  बाबूजी के उम्र के ही लोग हैं कुछ बाबू जी से बड़े उम्र के कुछ छोटे तो कुछ बराबर उम्र के सब लोग अपने आप चेयर लेकर बाबू जी के पास ही बैठ गए। 



सब लोग मिलकर आपस में देश दुनिया की बातें की  उसके बाद सब लोग अपने घर लंच करने चले गए 

मैंने बाबू जी से कहा बाबू जी आज शाम की ट्रेन से मैं दिल्ली निकलने वाला हूं मैं तो कहता हूं कि आप भी हमारे साथ ही चलिए 

 बाबूजी ने दोबारा से कहा,”‘‘लेकिन यह तो सोचो न बेटा, जब  तुम्हें अपने काम से तुम्हारा मन उदास हो जाएगा तो आखिर कहां जाओगे  कम से कम तुम्हारे आने के लिए भी तो एक घर है कहां जाओगे और कौन इंतजार करेगा तुम्हारा।  मेरे बच्चे जब आते हैं तो मेरे लिए वे सब से खुशी के दिन होते हैं और तुम्हें भी खुशी होती है कि बाबूजी के पास जा रहे हैं जिस दिन इस जिंदगी के लायक नहीं रहूँगा , इतनी अशक्त हो जाऊंगा , उस दिन तुम्हीं करोगे तुम्हीं संभालोगे मुझे लेकिन अभी तो मुझे सार्थक जीवन जीने दो बेटा जब तक हो सकेगा हाशिए पर नहीं आना चाहता मैं,’’ बाबूजी का स्वर आर्द्र हो गया मैं  अपलक बाबूजी  का चेहरा देखने लगा मैं आत्मनिर्भरता और आत्मगौरव से चमक रहा था मुझे  संतोष हुआ और मैंने  समझ लिया कि मैं  बाबूजी  को जितना दयनीय और मजबूर समझ रहा था, वैसा कुछ भी नहीं है बाबूजी  की जिंदगी में व्यवधान पैदा करना गलत होगा बाबू जी  खुश हैं, उन को अपना जीवन सार्थक लग रहा है

‘‘क्या हुआ बेटा?’’ मुझे सोच में डूबा देख कर बाबूजी ने मुझे  हिलाया

‘‘कुछ नहीं बाबूजी , सोच रहा था आप से तो बहुत कुछ सीखना बाकी है और  हमेशा ही सीखा है आप से।  आप तो दूसरे बुजुर्गों के लिए भी उदाहरण हैं’’

‘‘नहीं बेटा, ऐसा कुछ नहीं है बस, मुझे मालूम है कि मेरे बच्चों का प्यार मेरे साथ है, वे मेरी चिंता करते हैं और जब मुझे जरूरत होगी तो वे मेरे पास होंगे बस, यही मानसिक मजबूती मुझे हमेशा खुश और संतुष्ट रहने की प्रेरणा देती है’’

 चंदन को बुलाकर मैंने समझाया बाबूजी का अच्छे से सेवा करना तुम्हें अगर और पैसे की जरूरत है तो मुझे फोन कर देना मैं अकाउंट में भेज दिया करूंगा।  और हां चंदन बाबूजी को छोड़कर कभी मत जाना खासकर पैसे के लिए तुम्हें कहीं और जितना पैसा मिलेगा उससे ज्यादा पैसा हम तुम्हें दे देंगे। 

उसी दिन शाम की ट्रेन से मैं दिल्ली वापस आ चुका था। 

 ज्यादातर केस में तो बेटा मां बाप को रखना ही नहीं चाहते हैं लेकिन अगर कई बार बेटा अपने मां-बाप को रखना चाहते हैं तो मां-बाप ही नहीं रहना चाहते हैं लेकिन ऐसा नहीं है कि वह बेटे के साथ रहना नहीं चाहते हैं जो जहां रह गया है उसका मन वहीं  लगता है जो गांव में रह गया है उस उनको लाकर आप शहर में रख देंगे तो उनका मन बिल्कुल नहीं लगेगा ऐसा लगेगा कि आपने उन्हें सोने के पिंजरे में लाकर कैद  कर दिया है। 

अगर आप  अपने माता पिता के साथ जाकर नहीं रह सकते और सक्षम हैं तो अपने मां पिताजी की कम से कम जहां पर रहते हैं इतना व्यवस्था कर दें कि उनको बुढ़ापा में कष्ट ना हो।

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!