असली कमाई

एक समय की बात है एक नगर में बहुत ही धार्मिक प्रवृत्ति का करमचंद नाम का एक  सेठ रहा करता था.  वह जितना समय अपने व्यापार को देता था उतना ही समय प्रभु भक्ति और लोगों की सेवा  करने में भी देता था. 

प्रतिदिन सुबह-सुबह नदी में नहा कर नदी किनारे भगवान शिव के मंदिर में पूजा अर्चना करता उसके बाद ही अपनी दुकान पर जाता थाऔर दुकान भी सिर्फ दोपहर के 2:00 बजे तक ही खोलता था.  उसकी दुकान पूरे नगर में  शुद्ध सामान बेचने के लिए प्रसिद्ध था वो अपने सामानों में कोई भी मिलावट नहीं करता था।  इसलिए उसके दुकान पर सुबह-सुबह ही भीड़ लग जाती थी। 

दोपहर के भोजन करने के बाद सीधे मंदिर चला जाता था और बाकी के समय में वह साधु-संतों को भोजन करवाता,गरीबों की सेवा करता, साधु-संतो को दान-पुण्य करता।



वह अपने व्यापार से जो भी कमाता उसी में प्रसन्न रहता।  कई बार उसके बच्चे और पत्नी भी इस काम के लिए उसे मना करते कि अगर आपकी दुकान इतनी चल रही है तो पूरे दिन क्यों नहीं खोलते हैं।  वह सेठ किसी की नहीं सुनता था वह कहता था कि भगवान ने हमें यह जीवन सिर्फ कमाने के लिए नहीं दिया है बल्कि हम जितना कमाते हैं उनमें से कुछ पैसे दान धर्म के लिए भी उपयोग करना चाहिए। 

सेठ के इस तरह  के व्यवहार से कई बार तो लोग उसे पागल यह महामूर्ख भी कह देते थे कि भला ऐसा कौन करता है जितना कमाओ उसमें से आधा पैसा दान कर दो।  

धीरे-धीरे वह सेठ  पने दान और सेवा भाव के कारण पूरे नगर में प्रसिद्ध हो गया।   जब यह बात उस राज्य के राजा को पता चला कि उसके राज्य में एक ऐसा व्यापारी भी रहता है जो अपनी कमाई का आधा हिस्सा गरीबों की सेवा और मंदिरों के दान में लगा देता है। 

राजा ने सेठ करमचंद को अपने  राज्यसभा में बुलाया।  राजा ने अपने मंत्री से कहा मंत्री जी मैंने एक पगड़ी बनाई है और यह पगड़ी उनको दिया जाता है जो इस राज्य मे सबसे ज्यादा महामूर्ख हैं। और मुझे लगता है कि हमारे राज्य में सेठ करमचंद से ज्यादा मूर्ख कोई नहीं है नहीं तो भला ऐसा कौन करता है जो अपनी कमाई का आधा हिस्सा दान कर देता हो।  मंत्री ने वह पगड़ी सेठ करमचंद को पहना दिया।  लेकिन सेठ  करमचंद ने  कुछ भी नहीं कहा और वह पगड़ी पहन कर सीधे अपने घर वापस लौट आया। 

धीरे-धीरे समय बीता और एक दिन पता चला कि वो राजा बहुत बीमार है।  सेठ करमचंद ने सोचा कि चलकर राजा से उनकी हालचाल  और उनकी तबीयत के बारे में जानकारी लेता हूं। 

जब सेठ राजा के पास पहुंचे तो राजा अपने कक्ष में बहुत बीमार पड़े हुए थे सेठ ने जब उनका हाल पूछा तो राजा ने जवाब दिया भाई अब क्या हाल पूछ रहे हो अब तो मैं  चंद दिनों में  ईश्वर के घर जाने वाला हूं। 

 जब राजा ने यह बात कही तो सेठ ने राजा से कहा,  “महाराज मैं यह जानना चाहता हूं कि जब आप ईश्वर के घर जाएंगे तो क्या आप अपने साथ अपनी स्त्री, पुत्र, धन, गाड़ी और  बंगला सब  लेकर जाएंगे।” 

राजा ने कहा,  “मैंने तुम्हें मूर्ख वाली पगड़ी  देकर कोई गलती नहीं की थी तुम सच में महामूर्ख हो भला ईश्वर के घर भी कोई साथ जाता है वहां से तो सिर्फ अकेले आया जाता है और अकेले ही जाया जाता है। 

वहां पर कोई साथ नहीं जाता ना परिवार, ना ध,न न मित्र वहां तो सिर्फ हमारे कर्म साथ जाते हैं। 

 इसके बाद सेठ करमचंद जोर जोर से हंसा।  महाराज  अब यह मूर्ख की पगड़ी आपको पहनने का वक्त आ गया है कि सब कुछ जानते हुये।  आपने क्या किया सिर्फ अपना  जीवन विलासिता में गुजार दिया आपने अपनी प्रजा के लिए क्या किया कुछ नहीं किया।  जब आप को सब पता था कि ईश्वर के घर में कुछ भी साथ नहीं लेकर जाते तो कम से कम आप राजा थे आपके पास बहुत सारा धन था आप उस धन का उपयोग अपनी प्रजा के विकास में करना चाहिए था।  लेकिन आपने ऐसा नहीं किया है इसीलिए मेरी नजर में सबसे बड़ा महामूर्ख आप हैं इसीलिए यह पगड़ीआप ही पहने तो अच्छा है। 

 दोस्तों हम भी ऐसा ही करते हैं हम पूरा जीवन सिर्फ कमाने-कमाने में बिता देते हैं।  और उस ईश्वर की बंदों की सेवा करना भूल जाते हैं अगर हमारे में समर्थ है तो हमें ईश्वर के बंदो  की सेवा करनी चाहिए, मंदिरो को दान देना चाहिए क्योंकि यही सच्ची कमाई है और इसी का फल हमें आखिर में मिलता है। 

स्वरचित : प्रियंका मुकेश पटेल

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