बेटा और बेटा ‘जैसा’ होने में बहुत फर्क होता है

निर्मला अपने पति राकेश को बार-बार फोन लगा रही थी लेकिन राकेश का फोन नॉट रिचेबल आ रहा था।

वह अपने IVF रिपोर्ट के बारे में बेसब्री से जानना चाह रही थी। राकेश रिपोर्ट लेने हॉस्पिटल गया हुआ था।

उसकी शादी हुये 15 साल हो गए थे लेकिन ऐसा लग रहा है उसकी किस्मत में संतान का सुख नहीं लिखा हुआ है। निर्मला अपने ससुराल में सबसे बड़ी थी उससे छोटी देवरानी और एक ननंद थी उसकी शादी हो चुकी थी और सब के बच्चे भी हो चुके थे लेकिन वह अभी तक मां नहीं बन सकी थी सब लोगों ने उसको आखिरी में यही सलाह दी कि आप एक बार IVF करा कर देख लो आजकल इस तकनीक के द्वारा आसानी से मां बन सकते हैं।

लेकिन दोस्तों सब कुछ इंसान के हाथों में नहीं होता है हमारे जीवन की गाड़ी का ड्राइवर तो ऊपर वाला है जो वह चाहता है वही होता है वो जिस राह ले जाना चाहता है हम उस राह अपने आप चले जाते हैं।



थोड़ी देर बाद राकेश रिपोर्ट लेकर घर आया उसके चेहरे पर मायूसी साफ देखी जा सकती थी। निर्मला ने राकेश से पूछा, “क्या हुआ तुम ऐसे उदास क्यों लग रहे हो सब कुछ ठीक तो है ना?” राकेश ने बिना लाग लपेट के निर्मला से कह दिया, “निर्मला हमारी किस्मत में संतान का सुख नहीं लिखा है अब हमें अपना जीवन बंजर पेड़ की तरह गुजारनी होगी।” निर्मला सुबह से बहुत खुश थी लेकिन यह खबर सुन वह भी निराश हो गई जो एक आखिरी आशा की किरण थी वह भी बुझ चुकी थी।

निर्मला अब उदास रहने लगी थी ऐसा लगता था उसके शरीर मे से किसी ने आत्मा निकाल लिया है।

क्योंकि वो इस घर में सबसे बड़ी थी तो उसने अपने छोटे देवर सतीश को अपने बेटे की तरह पाला था जब निर्मला शादी करके आई थी तो सतीश मात्र 8 साल का था।

सतीश को अपनी भाभी का दुख देखा नहीं जा रहा था उसने अपनी भाभी से कहा, “भाभी आप ऐसे निराश होंगी तो कैसे काम चलेगा मेरा बेटा बलराम वह भी तो आपके बेटे जैसा ही है।

निर्मला बोली,” हां देवर जी आप सही कह रहे हैं बलराम भी तो हमारा ही बेटा है लेकिन इस दिल को कैसे समझाऊं यही सब सोचकर तो अपने आप को संभाल लेती हो कि इस घर के सारे बच्चे भी तो मेरे ही बच्चे हैं।

लेकिन कभी-कभी मेरे अंदर की ममता उमड़ पड़ती है। मैं भी अपने बच्चे को सीने से लगाकर अपना दूध पिलाना चाहती हूं। देवर जी, आपने कहा ना कि बलराम आपके बेटे जैसा है यह जो बेटे ‘जैसा’ शब्द है ना रिश्तो में दूरी का एहसास करा देता है।

सतीश को अपनी भाभी का दर्द बर्दाश्त नहीं हुआ उसने अपनी पत्नी रिया और सभी घरवाले को इकट्ठा किया।

सतीश ने सभी घर वालों के सामने उसने वादा किया उसका अगली संतान जो भी होगा लड़का या लड़की वह अपनी भाभी निर्मला को पालने के लिए दे देगा।

निर्मला के ससुर ने अपने बेटे सतीश से कहा, “सतीश यह तुमने बहुत अच्छा सोचा है आखिर परिवार वाले ही तो परिवार का साथ देते हैं। तुम्हारे इस नेक काम से बड़ी बहू का गोद भी हरी हो जाएगी।



लेकिन सतीश की पत्नी रिया अपना अंश किसी को देना नहीं चाहती थी लेकिन वो घर वालों के सामने कुछ नहीं बोली चुप रही लेकिन रात के समय रिया, सतीश से बोली, “सतीश तुम ये अकेले कैसे फैसला कर सकते हो मैं अपनी संतान किसी को भी नहीं दूंगी। इतना बड़ा फैसला लेने से पहले तुम्हें एक बार तो मुझसे कम से कम पूछना चाहिए था कि मैं अपना बच्चा देने के लिए तैयार हूं भी या नहीं। उन्हें बच्चा ही पालने का शौक है तो किसी अनाथ आश्रम से कोई बच्चा गोद क्यों नहीं ले लेती हैं।” सतीश बोला, “रिया यह कैसी बात कर रही हो हम अपने बच्चे को किसी गैर के हाथों में नहीं सौंप रहे हैं बल्कि भैया-भाभी को ही दे रहे हैं और मुझे पूरा यकीन है कि वो लोग हमसे ज्यादा हमारे बच्चे की केयर करेंगे। “रिया, भाभी जब इस घर में आई थी तो मैं बहुत छोटा था भाभी के आने के बाद मुझे कभी भी एहसास नहीं हुआ कि मेरी मां नहीं है मुझे तो अपनी मां के बारे में ठीक से याद भी नहीं है मैंने तो निर्मला भाभी को ही माँ माना है और मुझे यकीन है कि हमारे बच्चे को भी बहुत प्यार करेंगी।

सतीश ने रिया को समझा दिया था रिया तैयार हो गई थी अपना बच्चा निर्मला को देने के लिए।

6 महीने बाद पता चला कि रिया मां बनने वाली है जब यह खबर निर्मला ने सुना तो वह बहुत खुश हुई क्योंकि देवर जी ने कहा था कि जो भी हमारा संतान पैदा होगा वह हम आप को पालने के लिए दे देंगे। उस दिन के बाद से निर्मला अपनी देवरानी का खूब ख्याल रखने लगी क्योंकि उसकी देवरानी के पेट में जो बच्चा पल रहा था पैदा होने के बाद निर्मला के पास ही रहने वाला था।

समय बीता और निर्मला की देवरानी रिया ने एक सुंदर से बच्चे को जन्म दिया। धीरे-धीरे बच्चा 1 साल का हो गया था कहने को तो बच्चा निर्मला को दे दिया गया था लेकिन ज्यादातर रिया ही इसे अपने पास रखती थी। उसका अंदर से दिल नहीं करता था अपने बच्चे से दूर होने का ।

देवर सतीश ने यह महसूस किया कि अगर रिया यहां रहेगी तो वह अपने बच्चे से दूर नहीं हो पाएगी और जब तक वह अपने बच्चे से दूर नहीं होगी भाभी को भी इस बच्चे से लगाव नहीं होगा।

सतीश अपने ही ब्लॉक में जूनियर इंजीनियर था उसने पैरवी लगाकर अपना ट्रांसफर अपने घर से 100 किलोमीटर दूर करवा लिया।

अब रिया की मजबूरी थी सतीश के साथ जाना। रिया को अपना बच्चा निर्मला भाभी को देखकर जाना पड़ा उन्होंने प्यार से इस बच्चे का नाम कृष्णा रखा था। अब कृष्णा को उसकी यशोदा मैया निर्मला पालने लगी।

धीरे-धीरे समय बीता कृष्णा अब 22 साल का हो चुका था। उसे पता तो था कि निर्मला उसकी जन्म देने वाली मां नहीं है लेकिन निर्मला से उसे इतना प्यार मिला कि वह निर्मला को ही अपनी मां मानता था।

सुबह हुई थी कि निर्मला का देवर सतीश का फोन आया वह फोन पर ही रोने लगा निर्मला के बड़े भाई राकेश सतीश से पूछे जा रहे थे क्या हो गया सतीश तू क्यों रो रहा है जल्दी बता। सतीश रोते-रोते बोला, “भैया आपका बेटा बलराम अब इस दुनिया में नहीं रहा सुबह जिम से बाइक पर चढ़कर लौट रहा था तभी पीछे से एक ट्रक वाले ने जोर से धक्का मार दिया और स्पॉट डेथ हो गया।”



यह खबर सुन घर में उदासी छा गई सब लोग जल्दी से छोटे भाई के यहां पहुंच गए। उधर सतीश की पत्नी अपने बेटे की मौत की खबर सुन अपना होश खो चुकी थी ऐसा लग रहा था अपने बेटे के गम में पागल हो जाएगी। कृष्णा अपने जन्म दात्री मां रिया को गले लगा कर चुप करा रहा था और कह रहा था, माँ होनी को कौन टाल सकता है फिर मैं भी तो तुम्हारा ही बेटा हूं।”

इतना सुनते ही रिया ने कृष्णा को जोर से पकड़ लिया और कहने लगी, “हां हां तू मेरा बेटा है मैं तो भूल ही गई थी कि मेरा एक और भी बेटा है अब मैं तुझे कहीं नहीं जाने दूंगी मैं अपने कलेजे के टुकड़ों को अपने पास अपने सीने से लगा कर रखूंगी।”

क्रिया कर्म होने के बाद सब लोग अपने अपने घर को लौटने लगे, कृष्णा भी अपनी मां निर्मला के साथ लौटने लगा लेकिन रिया ने अपने बेटे से कहा, “तू कहां जा रहा है कृष्णा अब तू कहीं नहीं जाएगा अब तू हमारे साथ ही यही रहेगा।”

तभी रिया के पति सतीश बोला रिया यह कैसी बात कर रही हो तुम भूल गई हो क्या कि हमने कृष्णा को भाभी को सौंप दिया है अब कृष्णा उन्हीं का बेटा है,खुद सोचो रिया, तुम्हारा बड़ा बेटा बलराम नहीं रहा तो तुम्हें कितना दुख हो रहा है अगर तुम भाभी से उनका बेटा कृष्णा छिन लोगी तो उनको कैसा एहसास होगा अब कृष्णा पर हमारा कोई अधिकार नहीं है यह कृष्णा पर निर्भर करता है कि वह क्या चाहता है।

कृष्णा अपनी मां रिया से निर्मला के बारे में बोला,”यह मेरी यशोदा मैया है भले आप ने मुझे जन्म दिया लेकिन पाला तो इन्होंने ही है हां यह सच है कि आप ने मुझे जन्म दिया है और इसका फर्ज भी मैं निभाऊंगा आपसे मिलने आता जाता रहूंगा लेकिन मैं साथ तो यशोदा मैया के ही रहूंगा भैया का जाना तो एक एक्सीडेंट था जिस पर किसी की मर्जी नहीं चल सकती थी लेकिन जानबूझकर किसी मां से उसका बेटा छीन लेना यह तो अपराध है ना मां।” रिया कृष्णा से बोली, “सच में रे तू कितना बड़ा हो गया है जैसा तेरा नाम है कृष्णा वैसे ही तेरी सोच है मुझे अपने बच्चे पर गर्व हो रहा है। लेकिन तू अपनी देवकी मैया को भूल ना जाना।”

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