• infobetiyan@gmail.com
  • +91 8130721728

आस निरास भई – कमलेश राणा

कमलेश राणा

बात 1981की है यह घटना जब भी याद आती है चेहरे पर एक बड़ी सी मुस्कुराहट आ जाती है। ट्रांसफर के अनवरत क्रम में उस समय उन दिनों हम एक छोटे कस्बे या यूँ कह लीजिये कि सड़क किनारे बसे बड़े से गांव में पहुंचे।

उन दिनों वहाँ नई ब्रांच खुली थी बैंक की और पापा ब्रांच मैनेजर थे लेकिन वह कस्बा हाई वे पर होने के कारण मूलभूत आवश्यकताओं की कोई कमी नहीं थी वहाँ।

जब बात एडमिशन की आई तो बड़ा ही धर्मसंकट उपस्थित हो गया। उस साल मैं बी ए फर्स्ट ईयर में थी। वहाँ लोग लड़कियों को को -एजुकेशन में पढ़ाना पसंद नहीं करते थे चूंकि स्टाफ में महिला टीचर थी इसलिए सिर्फ ऑफिसरों की लड़कियाँ ही पढ़ती थी।

हमारी क्लास में 70 लड़के थे और मैं अकेली लड़की, इसी तरह सेकंड ईयर में एक और फाइनल ईयर में दो यानि कुल मिलाकर हम चार लड़कियाँ थे। अब व्यवस्था इस तरह बनाई गई कि टीचर के साथ ही हम लोग क्लास में जाते और उन्हीं के साथ बाहर आ जाते क्योंकि जिस माहौल से लड़के आते थे उनके लिए हम अलग से थे।

हमारे और लड़कों के बीच संवाद नहीं के बराबर था। एक लड़का था हमारी क्लास में जो मुझे बहुत घूर घूर कर देखता था पर मुझे इससे कोई फर्क नहीं पड़ता था। मेरा उद्देश्य केवल पढ़ना था वह कई बार मुझसे नोट्स मांगता पर मैं हमेशा मना कर देती।

एक बार मेरी तबियत खराब हो गई तो कई दिन कॉलेज नहीं गई। वह लड़का मेरे घर आया और मेरी मम्मी से बोला प्लीज़ आप मुझे नोट्स दिलवा दीजिये। मम्मी ने कहा… दे दो न।

मम्मी आप जानती नहीं है इसको, मना कर दो, मुझे यह सब पसंद नहीं है।

पर पता नहीं क्यों मम्मी को उस पर बड़ा तरस आ रहा था बोली.. मेरे कहने से आज दे दे।

तो मैंने उसे अपनी कॉपी दे दी अगले दिन उसने मुझे कॉपी वापस की घर आते समय तो मैं लेकर चली आई। घर आकर जब कॉपी खोली तो बड़ा गुस्सा आया सीधे दनदनाती हुई मम्मी के पास पहुंची.. बहुत प्यार आ रहा था न आपको उस पर अब देखो क्या लिखा है यह… क्या क्या रच के भेजा है उसने।

मम्मी भी अवाक् थी उसमें स्त्री वशीकरण मंत्र के साथ बड़े ही श्रृंगार रस से पूर्ण बिहारी के दोहे लिखे हुए थे। गुस्से से बुरा हाल था मेरा क्योंकि इस तरह की भाषा और क्रिया कलाप उसी के अच्छे लगते हैं जिसकी तरफ आपका रुझान हो वरना तो खून खौल जाता है और फिर वशीकरण मंत्र से यह क्या सिद्ध करना चाहता है यह सोच सोच कर दिमाग की नसें फटी जा रही थी क्या वह यह ख्वाब सजा बैठा था कि उसे देखते ही मैं उसके वश में हो जाऊंगी।

अनेकानेक ख्याल परेशान करते रहे सारी रात सुबह जैसे ही कॉलेज पहुंची महाशय असर देखने के लिए गेट पर ही खड़े मिल गये। उसकी आशा भरी निगाहें मेरे चेहरे पर जमी हुई थी मैंने कठोर नज़र से उसे देखते हुए सैंडिल की तरफ जैसे ही हाथ बढ़ाया वह भागता हुआ नज़र आया 😂 बेचारे की आस निरास में बदल गई थी और साथ ही अंधविश्वास की भी  चूलें हिल गई होंगी।

स्वरचित एवं मौलिक

कमलेश राणा

ग्वालियर

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!