आपकी पूर्णिमा (भाग 2) – रचना कंडवाल: Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi :

अमित के पल्लवी से तलाक के बाद पूर्णिमा से शादी हुई थी।अब आगे पढें आखिरी भाग–

पूर्णिमा का हाथ सिंदूर लगाते हुए रुक गया।पहली बार उसने नजरें उठा कर उसे देखा था।

 उसने धीरे से कहा आपको पसंद नहीं है। नहीं ये बात नहीं है मैंने तो बस ऐसे ही… वो मुस्कुराई ये सिर्फ सिंदूर नहीं मेरा सौभाग्य है ।जो आपको और मुझे एक दूसरे से बांधता है। और मुझे पसंद है। और अगर मैं कहूं “कि मुझे पसंद नहीं है तो” तो आपके लिए छोड़ दूंगी।

“तुम इन सब बातों में यकीन करती हो” “शायद हां”मैं इन सब से अपने आप को खूबसूरत महसूस करती हूं। उसने माथे पर बिंदी लगाते हुए कहा। उसका चेहरा खिल उठा था। अमित उसकी प्रत्येक गतिविधि देख रहा था। मां पापा के साथ तो एक महीने में ऐसी घुल-मिल ग‌ई थी जैसे जाने कब से जानती हो। हां अमित से बात कम करती थी।हर काम में माहिर थी। शायद उसके मायके के वातावरण ने उसे समय से पहले सब कुछ सिखा दिया था।

रात को जब बेडरूम में आती तो अमित उससे बचना चाहता था इसलिए जल्दी से सो जाने का बहाना करता था। डिनर के बाद जब वो बेड रूम में आई तो अमित ने उसे कहा चलो बाल्कनी में बैठते हैं आज बहुत खूबसूरत चांदनी रात है। वो बाहर आ गई। सुनो कुछ पूछना चाहता हूं। ठंडी हवा चल रही थी उसके बाल खुले थे और लहरा रहे थे चांदनी उसके चेहरे को और खूबसूरत बना रही थी। वो बालों का जूड़ा बनाने लगी तो अमित ने धीरे से कहा ऐसे ही रहने दो।

उसने बालों को खुला छोड़ दिया।आप कुछ कह रहे थे। तुम्हारे कुछ सपने रहे होंगे अपने पति के लिए।वह खिलखिलाकर कर हंस पड़ी। मैं सपने नहीं देखती। क्यों? क्योंकि सच बहुत कड़वा होता है। एक बिन मां के बच्चे को आजादी से सपने देखने की इजाजत नहीं होती। जिस लड़की को वह गंवार समझ रहा था वह लड़की कैसी बातें कर रही थी। काफी देर तक बातें करते हुए अचानक से पूर्णिमा ने कहा कॉफी पियेंगे आप। कॉफी से नींद गायब हो जाती है।

फिर मुझे नींद नहीं आयेगी। चलो ठीक है बना दो।वह दो कप कॉफी बना कर ले आई। अमित बोलने लगा अरसा हो गया है ऐसे सुकून के पल गुजारे हुए। बेडरूम में आकर अब अमित अपने आप को हल्का महसूस कर रहा था। ओह कॉफी पीकर नींद नहीं आयेगी। आइए आप यहां पर बैठिए मैं सिर में मालिश कर देती हूं। नींद आ जाएगी।वह धीरे-धीरे उसके सिर पर मालिश करने लगी। उसके कोमल हाथों में जैसे कोई जादू था। उसे सच में नींद आने लगी थी।

सुबह जब उठा तो पूर्णिमा नाश्ता तैयार कर रही थी। तुमने मुझे क्यों नहीं उठाया।रात आप देर में सोये थे।देर में तो तुम भी सोयी थी।तो क्या घर की बहू नौ बजे उठेगी।वह मुस्करा दी। जाने इन कुछ दिनों में उसने क्या कर दिया था कि अमित हर समय उसका साथ चाहने लगा था। कभी मां के साथ कभी पापा की बातों में दिन का पता ही नहीं चल रहा था। डिनर के बाद जब वह देर से रुम में आई तो वह टीवी देख रहा था। पिंक कलर की नाइटी में वह बहुत खूबसूरत लग रही थी।

आप अभी तक नहीं सोये। इतनी देर तक क्या कर रही थी? मांजी के साथ टीवी देख रही थी। पति का साथ नहीं चाहिए तुम्हें। पन्द्रह दिन बाद मैं वापस चला जाऊंगा।उसका चेहरा उदास हो उठा। वह चुपचाप से बैठी हुई थी। वह उठ कर बाहर चला गया। बड़ी देर बाद टहल कर जब वह वापस लौटा  तो पूर्णिमा सो चुकी थी।

उसके खुले बाल तकिये पर फैले हुए थे। चेहरे पर बालों की लटें बिखरी हुई थी।वह उसे गौर से देखता रहा आखिर उसके सब्र का बांध टूट गया। उसने धीरे से उसके बालों को चेहरे से हटाया। पूर्णिमा की नींद खुल गई।उसे अपने इतने करीब पा कर वह  सिमट गई। वह धीरे से उसके कान के पास आकर बोला। सॉरी बगैर इजाजत के तुम्हें…. शरमा कर ‌‌ पूर्णिमा ने अपने आप को उसकी मजबूत बांहों में सौंप दिया। सुबह पूर्णिमा ने अमित को देखा तो वह उसे देख कर मुस्कुरा रहा था।

वह नहा-धोकर तैयार हो चुकी थी। अमित ने उसे जबरदस्ती खींच कर अपनी बाहों में समेट लिया। मैंने तुम्हें कोई गिफ्ट नहीं दिया। बताओ क्या चाहिए तुम्हें? पूर्णिमा ने उसकी आंखों में झांकते हुए कहा आपने मुझे अपना बना कर मुझे सब कुछ दे दिया “आप मेरी जिंदगी मेरा पहला प्यार हैं जो मैंने  पा लिया है ।अब मैं आपकी चाहत बनना चाहती हूं ” ईश्वर आपको सलामत रखे।

   अमित को तो पूर्णिमा के रूप में सारी खुशियां मिल गई थीं।

©रचना कंडवाल

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