आपकी पूर्णिमा (भाग 1) – रचना कंडवाल: Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi : पल्लवी और अमित की चार साल पुरानी शादी का अंत हो चुका था। पल्लवी ने उसे कभी दुःख के अलावा कुछ नहीं दिया था।मेजर अमित शर्मा की शादी शहर के सबसे बड़े वकील देवेन्द्र कुमार जी की बेटी से बहुत धूमधाम से हुई थी। दोनों के माता-पिता की अच्छी खासी दोस्ती थी।

पल्लवी जब शादी करके अमित के घर आयी तो उन्हें लगा कि मन की मुराद पूरी हो गई। अमित शर्मा देखने में हैंडसम,बैडमिंटन प्लेयर जो देखे देखता रह जाये। पल्लवी की सहेलियां तो जल उठी थीं।मीनू ने तो उसे कहा कि अगर तू शादी के लिए ना कर दे तो मैं बे हिचक मंडप में बैठ जाऊंगी।पर पल्लवी शादी के बाद अमित के परिवार के साथ सामंजस्य नहीं बैठा पायी। वकील साहब ने अपनी बिगड़ैल बेटी उसके गले में बांध दी थी।

इससे पहले अमित के माता-पिता का पल्लवी से कभी भी ज्यादा मिलना जुलना नहीं हुआ था वह बाहर रह कर ही पढी़ थी। दिखने में भी औसत थी। पर अमित ने अपनी मां को कहा अगर आपको पसंद है तो ‌ठीक है। पल्लवी ने न उसके मां बाप की इज्जत की न उसके लिए कोई लगाव दिखाया।हर समय उसका लापरवाही भरा रवैया उन सबको परेशान करता था।लेट नाइट पार्टीज रात को घर देर से लौटना।न किसी से कुछ पूछना न बताना।

अगर कुछ कहो तो दहेज के केस में फंसाने की धमकी देना यही सब करती  थी। उसके पिता से समझाने को कहा तो उन्हें अपनी बेटी की कभी कोई गलती नजर नहीं आती थी। पिता का साथ पाकर वह अपने ससुराल वालों के सिर पर सवार हो गयी। एक दिन गुस्से में अमित ने उस पर हाथ उठाया तो बात कोर्ट कचहरी तक पहुंच गई आखिर चार साल बाद तलाक हुआ था एक अच्छी खासी रकम देनी पड़ी थी उनको। अब अमित बिल्कुल अकेला हो गया था।

उसका सब पर से विश्वास उठ गया था।वह खामोश रहता था। छुट्टियों में घर आता तो कहीं भी बाहर नहीं जाता था। मां को उसकी बहुत चिंता होने लगी थी। वो ‌कहती बेटा दोबारा शादी कर लो।पर अमित का पल्लवी के साथ इतना बुरा अनुभव था कि दोबारा शादी करने की सोच कर उसको डर लगने लगा था।  मामी जी ने पूर्णिमा से मिलने को उसे अपने पास बुलाया पूर्णिमा मामी जी की गांव की बहन की बेटी थी।

पूर्णिमा की मां की मौत के बाद उसके पापा ने दूसरी शादी कर ली थी सौतेली मां के ताने और दुर्व्यवहार के साथ उसका बचपन बीता था। उसके पापा को भी उसकी कोई परवाह नहीं थी। इसलिए तलाकशुदा लड़के से शादी पर उन्हें कोई आपत्ति नहीं थी। पूर्णिमा बेहद खूबसूरत थी।उसका पहाड़ी गोरा रंग, तीखे नैन-नक्श,गांव में अथक परिश्रम करके सांचे में ढला हुआ शरीर किसी को भी अपनी तरफ खींचने की सामर्थ्य रखता था।

मामी जी को पक्का यकीन था कि अमित अगर एक बार उसे देख लेगा तो मना नहीं कर सकेगा। अमित रानी खेत पहुंच कर वहां की खूबसूरती में खो गया यहां का शांत सौम्य वातावरण उसके मन-मस्तिष्क को अजीब सी शांति पहुंचा रहा था।मामा मामी उसे देख कर बहुत खुश थे। दो दिन बात मामी जी उसे पूर्णिमा के घर ले गयी। पूर्णिमा जब चाय लेकर आई तो अमित सिर झुकाए बैठा हुआ था। चाय नाश्ते के बाद उन्हें कुछ देर के लिए अकेला छोड़ दिया।

अमित ने उसे देखा पहली नजर में वो उसे बेहद मासूम लगी। पहला सवाल पूछा कितना पढी़ लिखी हो? बी.ए किया है। मधुर आवाज में जवाब दिया गया था। मेरे बारे में जानती हो?मेरा तलाक हो चुका है। फिर भी मुझसे शादी करना चाहोगी। तलाक में ज्यादातर पुरुष की गलती होती है ऐसा कहा जाता है।

उसे देखकर लग रहा था कि वो बहुत घबरा गई थी। जो कुछ भी पूछा उसका जवाब सिर हिला कर या संक्षिप्त रूप से दिया गया था। जब मामी ने घर आकर पूछा तो अमित ने दुःखी होकर कहा मामी एक को मां ने पसंद किया था। अब दूसरी आप पसंद कर लो। मामी अब विश्वास करने वाला दिल टूट चुका है।

मामी ने उसके सिर पर हाथ फेरते हुए कहा इस बार तू मेरे विश्वास पर भरोसा कर। पूर्णिमा से तू कभी निराश नहीं होगा। कुछ समय बाद दोनों को एक सादे समारोह में विवाह के बंधन में बांध दिया था। जब वह दुल्हन बन कर आई तो मां ने भरे हुए गले से कहा बहू तुम्हारा घर है जैसे चाहे वैसे रहो। अमित ने तो उससे दूरी बना रखी थी।कभी कभी उसे धीरे धीरे चोरी से निहार लेता था। उसके हाथों में लाल चूड़ियां, माथे पर लाल बिंदी,भरी हुई मांग उसका दमकता हुआ चेहरा, और चेहरे पर प्यारी सी मुस्कराहट उसके रूप को चार गुना बढ़ा देती थी।

शादी को एक महीना बीत चुका था। अमित की एक महीने की छुट्टी बाकी थी। अभी तक वे एक दूसरे के करीब नहीं आये थे पर पूर्णिमा ने कोई सवाल नही किया था।एक दिन सुबह जब वह नहा कर अपनी मांग में सिंदूर लगा रही थी तो अमित ने उसे कहा अगर तुम्हारा मन नहीं हो सिंदूर लगाने का तो मत लगाया करो। क्योंकि उसे याद था कि पल्लवी को एक बार मां ने तीज पर सिंदूर लगाने को कहा था तो उसने बवाल मचा दिया था और मां को कहा था आप तो चाहती हैं कि मैं मांग भर कर सिर पर पल्लू रख कर गंवार बन जांऊ।

मां बेचारी उसे देखती रह गई थी। मां पल्लू रखने जैसे रिवाजों में यकीन नहीं रखती थी।तीज के व्रत पर सिर में पल्लू रख कर पूजा में बैठने को कहा था। जिस लड़की को किसी की परवाह नहीं थी। भला वह कुछ भी क्यों सुनती। किसी भी रीति रिवाज से उसका दूर तक का कोई नाता नहीं था।

क्या ‌अमित पूर्णिमा को अपना पाया??? इसे जानने के लिए दूसरे भाग मे पढ़ें

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© रचना कंडवाल

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