आंतरप्रेन्योर – कंचन शुक्ला

शोभा अपनी माँ से- अम्मा!! कलेक्टर साहब और परधान का जलवा देखी हो। कितने लोग उनकी गाड़ी के आगे पीछे चलते हैं। सर!! सर!! कहते नही थकते। उनके एक आदेश पर, हैया दैय्या करके दौड़ते हैं। हमको भी ऐसा ही कुछ बनना है।

अम्मा सोभा से- आज हम सप्तमी का व्रत किये हैं, तेरे लिए। सीतला माता ज़रूर अपनी किरपा तुझ पर करेंगी। बस तू मेहनत कर। काहे नही?? हमारी बिटिया ज़रूर अपना, हमारा, सारे गाँव का नाम रोशन करेगी।

धुनकी, उसका पति चंदू और आठ साल की बिटिया सोभा- रीझागाँव में अपना जीवनयापन करते हैं। बापदादा के कारण ही सही, थोड़ी सी खेती करने का सौभाग्य मिल रहा है।

यह एक सुखी,संतुलित और संतुष्ट परिवार है। प्रायः इस आपाधापी भरे जीवन में यह दुर्लभ जान पड़ता है। इंसान की प्रकृति असंतोष के विभिन्न क्षेत्रों की तलाश में लगी रहती है। कम से कम, जो है, उसका ना तो प्रभु को धन्यवाद है ना ही उक्त भावों की स्वीकार्यता सहज आ पाती है।

स्त्रियों को अपने आसपास गढ़ी, स्वरचित दुनिया ही सच लगती है। बिटिया मेहनत करके पढ़ेगी तो निश्चित उसका उद्धार होगा ऐसा मंतव्य लेकर धुनकी और चंदू ने एक ही पुत्री को अच्छा जीवन देने का निर्णय लिया है। गाँव में तो इस बात पर बहुत पंचायत होती है।


धुनकी को तो मुँह पर ही लोग बोल जाते हैं। “तेरा तो क्या है!! पर सोच, सुहावन को कौन आग देगा??” उधर सुहावन तो जोरू के गुलाम का चिन्हित पट्ट, माथे पर लगा तब से जी रहा है, जब से सोभा चार साल की हो गई।

धुनकी हुनरमंद है। सो गाँव के आसपास- कढ़ाई, बिनाई, सिलाई, खाद्यपदार्थों और तमाम ऐसे कामों से वह थोड़ी बहुत आय अर्जित कर लेती है। जो कि उसे और उसके परिजनों को गाँव के सभी लोगों से दिखने, रहने में इतर बनाती है।

कस्बे में इस बार प्रदर्शनी लगनी है। प्रधान और कलेक्टर मुआयना करने गाँव गाँव, विद्यालय और भी कई जगह गए थे। स्थानीय कारीगरी/ हुनर की तलाश में।

प्रदर्शनी संपन्न हुई। बहुत से पुरुष सूची में शामिल थे। बहुत नीचे सूची में धुनकी का भी नाम था।

विद्यालय की दीदीजी कामना, सोभा के घर आयीं हैं। क्या बात है किसी को भी नही मालूम।

कामना दीदी सोभा से- बधाई

हो!! बधाई

हो!! सोभा तूने बताया नही तेरी माँ आंतरप्रेन्योर हैं??”

सोभा कामना दीदी से- ये सब्द तो आपने हमें अभी नही सिखाया दीदी!!! इसका क्या मतलब होता है??

*****इतने में धुनकी गोरु को चारा डालकर और सुहावन खेत से लौटकर घर में प्रवेश करते हैं*****

कामना दीदी धुनकी से- अर्रे!! ले खुशखबरी सुनने तेरे मातापिता भी आ गये। तेरी माँ अब बड़ी व्यावसायिका हो गयी हैं।

*****धुनकी, सोभा और सुहावन विस्मृत हो एकदूसरे और कामना दीदी के मुख को तक रहे हैं।*****

कामना दीदी सब से- धुनकी दीदी!! आपके लिए बहुत बड़ा विदेश से एक लाख का सामान बनाने का आदेश आया है। आपको 10 बेने ( हवा झलने के लिए हाथ का पंखा) , पाँच किलो सूखी हुई बेर और आम के खट्टे मीठे मसालेदार पापड़ और पचास सुंदर सुंदर झालरें जो आप ऊन से बिनती हो, इसका आर्डर है।


सभी इतना सुनते ही प्रफुल्लित हो गए। पैसों का चेक़ कामना दीदी ने सुहावन को पकड़ाना चाहा।

सुहावन दीदी से- इसकी असली हक़दार धुनकी है। जो इतनी मेहनत लगन से हमारी बच्ची सोभा को इतना संस्कार दे रही है। ये सोभा की ही समझदारी थी कि धुनकी का किया हुआ काम उसने प्रधान और कलेक्टर बाबू को दिखाया।

हमने तो एक बार मना भी किया था। काहे परेशान होना, जो है काफी है।

फिर भी सोभा ने कहा बापू ” ट्राइ करने में क्या जाता है??” और देखिए उसका नतीज़ा। ये आप धुनकी और सोभा के हाथ में ही दे दीजिए। तभी इसका उचित सम्मान होगा।”

कामना दीदी सब से- इतना सुखमय और समझदार परिवार देखकर मैं भावुक हो रही हूँ। भगवान आप सबको यूँ ही खुश रखे।

भगवान के आगे दिया लगा, आर्डर की पूर्ति हेतु सामान की सूची बना धुनकी, सोभा और सुहावन अपनी दिनचर्या में लग गए।

मौलिक और स्वरचित

कंचन शुक्ला- अहमदाबाद

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