प्रहार एक प्रतिभा पर – ज्योति अप्रतिम

निमिषा आज अत्यधिक उदास थी। रह रह कर आँखें भर कर आ रहीं थीं।पिछले दो सालों का घटनाक्रम उसकी दिमाग में चलचित्र की तरह घूम रहा था।

मैडम ,मेरी दो साल की ट्रेनिंग कम्पलीट होने या रही है।मुझे यहाँ नौकरी मिल जाएगी न !

ओह यस !योर अपॉइंटमेंट इज़ श्योर।लेट द रिजल्ट बी डिक्लेअर्ड एंड देन यू मे जॉइन।

और शानदार रिजल्ट आया।निमिषा ने एक अच्छी सैलरी पर ऑफिस जॉइन कर लिया।

कंपनी द्वारा संचालित एक स्कूल में उसके दोनों बच्चे अच्छी शिक्षा लेने लगे।जिंदगी की आर्थिक पटरी अब मजबूत होने की आशा बंधने लगी थी।

लेकिन वो कहते हैं न!एक औरत ही औरत की दुश्मन होती है।निमिषा की ट्रेनिंग पूरी होते ही सासू माँ ने गाँव से आकर डेरा जमा लिया।निमिषा का जॉब करना उन्हें जरा भी हज़म नहीं हो रहा था।

ऑफिस का काम ,बच्चों की सार सम्हाल , दिन रात की कलह और माँ के आगे पति की चुप्पी निमिषा को अत्यधिक परेशान कर रही थी।

अब हमेशा खुश रहने वाली  निमिषा थकी सी और उदास रहने लगी।

और आज आखिर वह कयामत का दिन आ ही गया जब उसने आते ही बताया।

“मैडम ,मैं कल से ऑफिस नहीं आ पाऊँगी।”

” क्यों डिअर ! मैंने तुम्हें चालीस प्रशिक्षुओं में से चुना और आज तुम मना कर रही हो और वह भी बिना किसी नोटिस पीरियड के।”

मैडम ने थोड़े सख्त लहज़े में कहा।

बदले में निमिषा बेतहाशा रो पड़ी। रोते बिलखते उसने बताया , “वे मेरे बच्चे को बना हुआ खाना परोसकर भी नहीं देतीं हैं ,घर पूरा गन्दा मचा कर रखतीं हैं ।ससुरजी को भड़काती रहतीं हैं।”

“मैडम मैं उनसे नहीं जीत सकती।मुझे नौकरी छोड़ना ही होगी।मैं आपका विश्वास तोड़ने के लिए केवल आपसे माफ़ी माँग सकती हूँ।”

निमिषा अपनी रुलाई रोकती हुई ऑफिस से निकल गई हमेशा के लिए एक घरेलू महिला बनने के लिए।उसकी प्रतिभा केवल एक ही प्रहार में टुकड़े टुकड़े हो गई।

गैरों के नहीं ,अपनों के ही हाथों हार गई निमिषा!

ज्योति अप्रतिम

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