राम दयाल एक रिटायर्ड प्रधानाचार्य थे,सारी उम्र कड़े अनुशासन, नियम कानून से कटी,सोचते थे कि रिटायर
होकर चैन से पत्नी और परिवार के साथ दिन काटूंगा,सर्विस के दौरान इधर उधर स्थानांतरण के चलते कभी
सब के साथ रहना ही नहीं हुआ था।
खुशी खुशी घर लौटे लेकिन कुछ ही अंतराल में पत्नी की आकस्मिक मृत्यु हो गई,राम दयाल इस आघात के
लिए तैयार न थे,वो चिड़चिड़े रहने लगे,फलस्वरूप बेटे अक्षय ने अपनी पोस्टिंग उसी शहर में करवा ली और
अपनी पत्नी अनुपमा की जॉब भी छुड़वा दी।
मां तो रही नहीं अब पिताजी को कुछ सुख दे सकें तो अच्छा रहेगा..ये सोचकर वो अनुपमा को लेकर घर चला
आया।
अनुपमा हर संभव कोशिश करती कि अपने ससुर को शिकायत का कोई मौका न दे लेकिन उन्हें अनुपमा की
हर बात बनावटी ही लगती।जीवन भर कार्यक्षेत्र में अनुशासन और व्यवहार में कठोरता ने उन्हें थोड़ा अहंकारी
बना दिया था और पत्नी की मृत्यु ने चिड़चिड़ा और संवेदनहीन।
कभी सब्जी में नमक ज्यादा तो कभी लॉन की घास बड़ी हो रही है..दिखती नहीं?,तो कभी ये वक्त है रात के
खाने का?रात में उड़द की दाल बना दी,पता नहीं मुझे गैस बन जाएगी..इस तरह की उलाहना से अनुपमा का
दिल छलनी करते रहते।वो बेचारी पति के प्रेम की वजह से कुछ न बोलती।उसे लगता कि अपने अच्छे
व्यवहार से मैं पिता सरीखे ससुर का दिल जीत ही लूंगी।
एक दिन तो हद ही हो गई…अनुपमा को फीवर था और वो दवाई लेकर सो गई,सुबह आंख देर से खुली और
ससुर जी ने हंगामा खड़ा कर दिया..
घर में मेरी कोई इज्जत ही नहीं है, कोई टाइम नहीं कब चाय मिलेगी यहां!
अनुपमा बोली,पिताजी!बुखार की वजह से नहीं उठ पाई।
बहाने मत बनाओ बहू!तुम्हारी सास बुखार में भी सब करती थीं पर आजकल तो…
अक्षय सब देख सुन रहा था,वो पिता पर आज बरस पड़ा..
बस पिताजी!आप भी हद करते हैं.. माना कि मां के जाने का सदमा है आपको लेकिन देख रहा हूं आप अनु से
बिल्कुल अच्छे से व्यवहार नहीं करते,मां के न होने का उतना ही दुख हमें भी है फिर इसने अपनी नौकरी तक
छोड़ दी और मुझसे जिद की कि ये आपको दुखी नहीं देखना चाहती,इसे पिता का प्यार नहीं मिला था कभी
लेकिन आपने उसे बेटी समझा कभी?
राम दयाल स्तब्ध थे उस क्षण,कभी मुंह न खोलने वाला बेटा उनके सामने इतना बोल गया लेकिन वो कह भी
तो सब सच रहा था।उन्होंने कभी इस एंगल से सोचा ही नहीं…बेचारी बहू हर बात को करती तो थी ,मेरा ही
दिमाग खराब हो गया था।
अगले ही दिन,सुबह वो लॉन में खुद बैठे पेड़ पौधों की कटाई गुड़ाई कर रहे थे।
पिताजी!चाय ले लीजिए..अनुपमा ने कहा।
ला बेटी! घर के सामान की लिस्ट दे देना, मैं नहा के बाजार जाऊंगा ,लेता आऊंगा।
जी !! आप क्यों परेशान होते हैं..अनुपमा ने अचकचा के उन्हें देखा…बेटी??ओह!काम को भी पूछ रहे हैं और
अभी भी लॉन में लगे थे,ये चमत्कार कैसे?
मुझे माफ कर दे अनु बेटी! राम दयाल बोले तो अनुपमा चौंक गई।
पिताजी! आप ऐसा क्यों कह रहे हैं,आप बड़े हैं,कुछ कह देते हैं तो मुझे बुरा नहीं लगता।
राम दयाल की आंखों में प्रायश्चित के आंसू बह निकले…तू देवी है, मैं अपने अहंकार में तुझे समझ नहीं
पाया,आज से मैं तेरे काम में हाथ बंटाया करूंगा।
अनुपमा उन्हें आश्चर्य से देख रही थी कि आज इन्हें अचानक क्या हुआ है।
तुझे आश्चर्य हो रहा है न..बेटी!मैंने सोचा और यही पाया कि रिश्तों में अहंकार और न समझी की वजह से कुछ
सिलवटें आ जाती हैं लेकिन” माफ कर दो”ये तीन शब्द उन सिलवटों को हटा देते हैं और ये सिर्फ कहने के
लिए ही नहीं,महसूस करने को भी होते हैं,मेरी गलती थी जो मैं तेरे सम्मान और प्यार को न समझा और तुझे
पराया समझता रहा।पर आज से तुम मेरी बेटी समान हो।
अनुपमा की आंखों में खुशी के आंसू बहने लगे,आज उसकी तपस्या रंग जो लाई थी।
डॉक्टर संगीता अग्रवाल
वैशाली,गाजियाबाद
# प्रायश्चित