झूठी अमीरी का झूठा दंभ –  पूजा मनोज अग्रवाल

सुशीला,,,, तुम्हें कितनी बार कहा है,,।।
यूं रोज़ रोज़ मेरे सामने बहू की बुराई ना किया करो,,,।। पता नहीं रोज़ की चिक चिक में तुम्हें क्या मज़ा आता है ।

हां – हां !!
मैं ही तो चिक चिक करती हूं,,। तुम्हारी बहू तो दूध की धुली है । तुम जानते नहीं कितनी चालाक है,,,अपने त्रिया चरित्र से मेरे भोले भाले बेटे को फांस लिया है इसने ,,,,।

तुम्हारे पास तो बैठना ही बेकार है,,,
मैं तो मंदिर दर्शन को चला ।।
,,, तुम्हारी फालतू बातें सुनने से बेहतर है,, मैं ईश्वर का नाम लेकर अपना बुढ़ापा ही सुधार लूं,,,।

श्याम लाल जी उठे और मंदिर की तरफ निकल गए ,,,।

उम्र के 75 साल पार कर चुके श्याम लाल जी जानते थे कि वे अपने जीवन के आखिरी पड़ाव पर हैं । योगा करना , पार्क में टहलना , धार्मिक गतिविधियों में हिस्सा लेना और गली में घूमते आवारा कुत्तों की खाने की व्यवस्था करना । इन्हीं सब कार्यों को करने में उनका पूरा दिन निकल जाता था ।

परंतु उधर श्याम लाल जी की पत्नी सुशीला जी बिल्कुल उनके स्वभाव के विपरीत थीं,,।
ना पूजा पाठ में मन लगता और ना किसी की सेवा सुश्रा में,,,। सुशीला जी की बहु बहुत अच्छी और नेक दिल थी नाम था सरिता । सुशीला जी सारा दिन सरिता के पीछे हाथ धो कर पड़ी रहती ,,,हर पल सरिता की अपनी बेटी गौरी से तुलना करती ,,, चाहे वह कितना भी अच्छा काम करती परंतु फिर भी वे अपनी बहू का जीना मुहाल किए रखती थी,। सुशीला जी गौरी के पुराने कपड़े सरिता को पहनने के लिए दे देती । कभी घर का बचा हुआ बासी खाना बहू की थाली में परोस दिया करती थी ,,। जब कभी सत्यम सरिता के लिए बाज़ार से कुछ खरीद कर लाता तो वे किसी भी प्रकार से उससे लेकर अपनी बेटी को दिला दिया करती थी ।

श्याम लाल जी ने कई बार उन्हें समझाने की कोशिश की परंतु उनके कानों पर जूं तक नहीं रेंगती ,,, इस पर श्यामलाल जी की चिढ़ वे बहु सरिता पर निकाला करती थीं ।




विवाह के बाद ससुराल में सरिता सबका दिल जीतने में सफल हो गई थी परंतु एक सुशीला जी थी जो उसके किसी भी प्रयास से कभी खुश ना होती थी ।
कुछ समय पहले सत्यम सरिता को एक अनाथ आश्रम से विवाह लाया था,,। और इधर सुशीला जी अपने बेटे के विवाह के बड़े-बड़े सपने संजोए बैठी थी,, उन्होंने सत्यम के लिए एक लड़की ढूंढ रखी थी जो एक अमीर घराने से थी उन्हें ऐसा लगता था कि अगर बेटे की उससे शादी हो जाएगी तो उन्हें खूब सारा दान दहेज मिलेगा । परंतु अपने इस सपने के टूट जाने के चलते सुशीला जी सरिता से जलती कुढ़ती रहती थी ।

सरिता का इस दुनिया में कोई नहीं था,,, रोज़ की खट- पट के बावजूद सरिता अपने ससुराल में खुश थी । वह हर दिन यही प्रयास करती कि अपनी सास को किसी भी प्रकार से खुश कर सके और इस बहाने उसे अपनी मां का प्रेम भी मिल जाएगा,,, परंतु शायद यह उसकी नसीब में ही ना था ।

दिन बीतते रहे सरिता ने एक प्यारी सी बेटी को जन्म दिया,, श्याम लाल जी सोचते थे बच्ची की किलकारियां घर में रौनक तो लगाएंगी साथ-साथ उसका मासूम सा चेहरा देखकर शायद सुशीला जी के मन में भी सरिता के लिए कुछ बदलाव आ जाए । परंतु वे तो जैसे जड़ बुद्धि की थी उन्हें किसी से भी कुछ असर होने वाला ना था ।

कई बार घरेलू काम और उस पर छोटी सी बच्ची का ध्यान रखना सरिता के लिए एक साथ संभालना मुश्किल हो जाता परंतु मदद मांगने के बाद भी सुशीला जी उसकी किसी काम में सहायता ना करती थी । बल्कि कभी ननंद गौरी सरिता की मदद करने की कोशिश करती तो सुशीला जी उसे भी डांट डपट पर किसी और काम में लगा देती थीं ।

तो सब कहते हैं ना कि हमें अपने गुनाहों की सजा इसी जन्म में मिल जाती है ऐसा ही कुछ सुशीला जी के साथ भी होने वाला था,,,।




एक रोज जब सुशीला जी सो कर उठी तो उन्हे अपने पैरों में और शरीर पर सूजन महसूस हुई,,,। उन्हें देखकर सरिता बोली मां जी आपके पैरों में आज कुछ सूजन लग रही है,,आप जाकर डॉक्टर को दिखा दीजिए,,.।

सुशीला जी ने गुस्से से पलट कर जवाब दिया “हां हां !!
तू तो यही चाहती है मैं डॉक्टर के जाऊं और वह मुझे कोई बड़ी सी बीमारी बताकर अस्पताल में ही रख ले और तेरा हमेशा के लिए मुझसे पीछा छूट जाए,,।

नहीं-नहीं !!!
मांजी ,,,आप कैसी बात कर रही हैं,,??
बहू के बार बार कहने पर भी सुशीला जी अस्पताल जाने को तैयार नहीं थी,,।
दिन बीतते जा रहे थे सुशीला जी की परेशानियां कम होने का नाम ना ले रही थी सूजन बढ़ती जा रही थी चेहरे पर अजीब सी पपड़ी जमने लगी और उनकी त्वचा भी कहीं कहीं से भी काली पड़ने लगी थी ।

एक दिन सुशीला जी की तबियत बिगड़ गई और उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया । सभी जरूरी जांच करने के बाद डॉक्टर ने कहा
” अगर आप मरीज की जान बचाना चाहते है तो उनका लीवर प्रत्यारोपण करना पड़ेगा ,,।”
डॉक्टर की बात सुनकर पूरा परिवार सकते में आ गया था ।
श्याम लाल जी अपनी उम्र की वजह से अपना लिवर डोनेट नहीं कर सकते थे,,,। सत्यम ने अपनी मां को अपने लिवर डोनेट करने का विचार किया । परंतु छुट्टी सुनते ही बॉस ने सत्यम को नौकरी छोड़ देने को कह दिया ।

गौरी भी अविवाहित थी तो उससे भी लीवर नहीं लिया जा सकता था अब बात सुशीला जी के मायके तक गई,,।
लिवर देने की बात सुनकर उनके दोनों भाई यूं गायब हुए जैसे गधे के सिर से सींग ,,,। जिस परिवार की अमीरी का सुशीला जी झूठा दंभ भरा करती थी ,, उस परिवार ने उनकी तरफ मुड़ कर देखना भी उचित नहीं समझा । उल्टा बड़ी भाभी ने सुशीला जी को मुंहतोड़ जवाब देते हुए कहा ,,,।
” वैसे दीदी आप बुरा ना मानना,,,!!
आप तो लकड़ियों में जाने को हो रही हो ,,। क्यों इस बुढ़ापे के शरीर के लिए किसी बेचारे को तकलीफ देती हो ,,, जीवन से मोह छोड़ो और अब आपके अंत समय में राम का नाम लो । भाभी के कड़वे वचन सुनकर सुशीला जी रुआंसी सी हो गई ।




छोटी भाभी ने कहा ,,, काहे चिंता करती हो जीजी सब भगवान पर छोड़ दो सब कुछ ठीक हो जाएगा । सुशीला जी को लगा शायद छोटी भाभी ही उनकी मदद कर सकती है ।

सरिता की जिंदगी में तो कोई नहीं था सिर्फ उसके साथ – ससुर और पति ही उसका सब कुछ थे । उसने सत्यम और अपने ससुर जी से बात की कि वह अपना लिवर अपनी सास को देना चाहती है ।

” पिताजी !! मैं मांजी को अपने लिवर का टुकड़ा दे देती हूं,,, मैंने इस बारे में डॉक्टर से बात कर ली है ,,साथ अपने खून का परीक्षण भी करा लिया है मेरा ब्लड ग्रुप भी मांजी के ब्लड से मैच हो गया है,,ऑपरेशन के कुछ ही समय में हम दोनों स्वस्थ हो जाएंगे ,,।

बहु की बात सुनकर श्याम लाल जी अचंभित होकर बोले,” बेटी ,,,!! तुम ऐसा कैसे कर पाओगी,,,?
तुम्हारी सास तो आए दिन तुम्हें जली कटी सुनाती है और गौरी और तुम में भेदभाव करती है ,,। और एक तुम हो ,,, जो उसके लिए अपने शरीर का अंग भी दे देने को तैयार हो,,,।

पिताजी ऐसा मत कहिए,,,।

मुझ अनाथ के लिए तो वही मेरी मां है ।

डोनर मिल जाने की बात सुनकर सुशीला जी ने सोचा की छोटी भाभी ने ही अपना लीवर उन्हें दान किया है । परंतु वे सच से बिल्कुल अनजान थी ।

अगले हफ्ते सरिता के लिवर का एक टुकड़ा लेकर सुशीला जी का लिवर प्रत्यारोपण कर दिया गया,,। कुछ ही दिनों में दोनो सास बहू को
अस्पताल से छुट्टी मिल गई ,,।

सत्यम सुशीला जी और सरिता को घर ले आया,,,। घर आते ही सुशीला जी ने बहू के प्रति जहर उगलना शुरू कर दिया ।
बस मां,,,!!
अब तो यह सब बंद कर दो,,, आपके मायके की अमीरी का गुमान आपके लिए लिवर का टुकड़ा नही ला पाया ,,, ये बेचारी भाभी ही हैं ,, जिन्होंने अपने छोटी बच्ची की परवाह ना करते हुए आपके लिए इतना बड़ा त्याग किया है,,।




अपनी बेटी के मुंह से यह शब्द सुनकर सुशीला जी अवाक रह गई,,।
क्या ,,,???
यह सरिता ने ,,,???
उफ्फ,,,मुझसे कितना बड़ा पाप हो गया है ,,, मैं इस बेचारी अनाथ बच्ची का कितना मन दुखाती रही ,,, सदा ही तुम में और सरिता में भेदभाव करती रही ,,,शायद ये सब मेरे कर्मो का ही फल है ,,,,आंसू पूंछते हुए सुशीला जी ने गौरी से कहा ।

” अपनी भाभी को बुला लाओ ।”
सरिता कमरे में सुशीला जी के पास आ कर खड़ी हो गई ,,,” बहु मेरे पास आकर बैठो ,,।”
सरिता ,,,बेटा क्या तुम अपनी मां को माफ कर पाओगी ,,,??

अनाथ सरिता तो पहले से अपनी मां का आंचल ढूंढ रही थी ,,, सुशीला जी के शब्द सुनते ही उसने उन्हें झट से गले से गला लिया और बोली ,,,अब मैं अनाथ नही मां ,,,!!

यह दृश्य देखकर पूरे परिवार की आंखें सजल हो गई ।

सुशीला जी ने गौरी और सरिता की ओर देखते हुए कहा अब मेरी एक नही दो बेटियां हैं ,,,।
सुशीला जी की बात सुनकर सत्यम और श्याम लाल जी ने चैन की सांस ली,,।#भेदभाव
स्वरचित मौलिक
पूजा मनोज अग्रवाल
दिल्ली

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